ऐसा है माहिम किला! आक्रांताओं को झेला, कट्टरवादियों से क्षरण हुआ

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माहिम किला मुंबई शहर की ऐतिहासिक धरोहर है। जिसे प्रथम श्रेणी के संरक्षित धरोहरों में रखा गया है। लेकिन यह बीते दिनों तक कागजों पर ही रहा क्योंकि अब इस किले के ऊपर बने अवैध निर्माणों को ढहाए जाने का कार्य शुरू हो गया है। जिससे समुद्र किनारे खड़ा यह किला एक दिन फिर मुंबई के पश्चिमी छोर को घेरे अरब सागर के सामने सीना तानकर खड़ा होगा।

माहिम किले का प्राचीन इतिहास
माहिम दुर्ग (किला) भारत के प्राचीन इतिहास का साक्षी है। परंतु, इस पर लगातार हमले होते रहे और आक्रांताओं ने अपने हितों के लिए इसका उपयोग किया। यह दुर्ग 13वी-14वीं शताब्दी के बीच में राजा प्रताप बिंब के शासनकाल का है। प्रताप बिंब ने जब कोकण (मुंबई) समुद्र तट पर अपना साम्राज्य विस्तृत किया तो राजधानी के रूप में महिकावती (माहिम) का चयन किया। महिकावती देवी के नाम को ही कालखंड में माहिम का नाम दिया गया।

आक्रांताओं के हमले झेले
इतिहास को देखें तो वर्ष 1516 में, पुर्तगाली कमांडर डोम जोआओ डी मोनोय ने महिकावती पर हमला किया और वहां का तत्कालीन कमांडर को हराया। वर्ष 1661 में, पुर्तगालियों ने इस द्वीप को इंग्लैंड के चार्ल्स द्वितीय को दहेज के रूप में भेंट कर दिया। अंग्रेजों द्वारा किले पर नियंत्रण प्राप्त करने के बाद, इसे 1684 में सर थॉमस ग्रांथम ने रणनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ किया और इसी काल में संभावित हमलों से रक्षा के लिए निरीक्षण के गुंबद बनाए गए। वर्ष 1772 में, पुर्तगालियों ने इस किले पर हमला करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें तोप की मार से अंग्रेजों ने खदेड़ दिया।

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अंग्रेजी दासता से मुक्ति के बाद माहिम किला खाली हो गया, परंतु मुंबई में बढ़ती जनसंख्या की मार माहिम किले पर पड़ी। यहां एक विशेष पंथ के लोगों ने कब्जा करना शुरू कर दिया और पिछले चार दशकों में इस किले को झोपड़ियों से घेर लिया।

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