राजस्थान : जब हो गए साथ तो कोर्ट में क्यों है विवाद?

राजस्थान सरकार पर छाए बादल छंट गए हैं। पायलट और गहलोत खेमा मिल गया है। लेकिन कोर्ट में अब भी पुराना विवाद चल रहा है जिसको लेकर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर जब एक ही पार्टी में और सरकार में साथ हैं तो कोर्ट में समझौता क्यों नहीं हो रहा है?

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राजस्थान में कांग्रेसी नेताओं की कट्टी खत्म हुए चार महीने हो गए हैं। लेकिन कोर्ट में अभी भी इनके वकील लड़ रहे हैं। सचिन पायलट खेमे के विधायकों द्वारा दायर इस मामले में संविधान की 10वीं अनुसूचि के अंतर्गत की गई कार्रवाई को चुनौती दी गई है।

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जयपुर हाईकोर्ट में बागी विधायकों द्वारा दायर की गई याचिका में आठ पक्ष हैं। इसमें याचिकाकर्ता समेत 19 विधायक जिसमें सचिन पायलट भी शामिल हैं। इसके अलावा विधान सभा के अध्यक्ष सीपी जोशी, अध्यक्ष कार्यालय, विधान सभा सचिव, भारत सरकार। इस याचिका में विधायकों पर संविधान की 10वीं अनुसूचि के तहत की गई कार्रवाई को चुनौती दी गई है। एक महीने से अधिक खिंचे इस विवाद का पटाक्षेप उसी समय हो गया था जब राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने विश्वास मत प्राप्त कर लिया था। लेकिन हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका अब भी जीवित है। सभी पक्षों के वकील मामले की जिरह के लिए पेश हो रहे हैं। हालांकि इस मामले में एक पक्ष मोहन लाल नामा ने कोर्ट में जानकारी दी कि इस मामले के सभी पक्षों में राजनीतिक समझौता हो गया है। इसके बाद सभी पक्षों ने विधान सभा में एक साथ मतदान किया और सरकार ने विश्वास मत हासिल किया। इसलिए यह मुद्दा अपने आप ही खत्म हो गया है।

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क्या है मामला?

जुलाई 2020 में सचिन पायलट ने अचानक राजस्थान के मुख्यमंत्री से विद्रोह कर दिया। पायलट के समर्थक विधायकों ने कांग्रेस विधायक दल की बैठक (सीएलपी) का बहिष्कार कर दिया। इसको लेकर कांग्रेस के चीफ व्हिप महेश जोशी ने विधान सभा के अध्यक्ष से भेंट की और सचिन पायलट सहित बागी विधायकों को 14 जुलाई को नोटिस जारी किया गया। विधायकों पर बाद में दलबदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई भी की गई। जिसे तोडाभीम से विधायक और सचिन पायलट के समर्थक पृथ्वीराज मीणा ने सचिन पायलट सहित 18 विधायकों के साथ हाइकोर्ट में चुनौती दी। इस मामले की सुनवाई अब जब दोनों पक्षों में सुलह हो गई है तब भी चल रही है।

ये है दल बदल कानून

भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची जिसे लोकप्रिय रूप से ‘दल बदल विरोधी कानून’ कहा जाता है, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के द्वारा लाया गया है। इसी के अनुरूप राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष ने विधायकों का निलंबन किया था। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।

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