वीर सावरकर का सम्मान, राष्ट्र का उत्कर्ष

स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 140वीं जयंती पर नए संसद भवन का लोकार्पण एक बड़ी घटना है। पिछले नौ वर्षो में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के सम्मान में सरकार ने कई कदम उठाए हैं।

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स्वातंत्र्यवीर सावरकर

करुणा शंकर

स्वातंत्र्यवीर सावरकर का जीवन एक ऐसा ग्रंथ है, जिसे जब भी और जितना भी पढ़ो उसके उतने आयाम निकलते हैं। वे यद्यपि कानून की पढ़ाई में पारंगत हुए थे और राष्ट्र स्वातंत्र्य के लिए क्रांतिकार्य को आत्मसात कर लिया था, लेकिन उन्हें जनभावना, सामाजिक विसंगतियां, राष्ट्रीय अखण्डता, राष्ट्र स्वातंत्र्य और विदेश नीति क्या होनी चाहिये इसका प्रदीर्घ ज्ञान था। इसीलिए वीर सावरकर की नीतियां आज भी पथ प्रदर्शक हैं। जिस वीर सावरकर का सम्मान करते हुए स्वतंत्र भारत की सरकार को उन्हें अपने नेतृत्व दल में रखना चाहिये था, वह मदांध शासकों की भांति पड़ी रही। जिसका परिणाम यह हुआ कि, साठ वर्षों पश्चात राष्ट्र को वीर सावरकर का स्मरण हुआ, इसके लिए जनता को पूरी सत्ता ही बदलनी पड़ी, तब जाकर वीर सावरकर का महत्व राष्ट्र के सामने आया है।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन को सामान्य जन की दृष्टि से देखें तो उसके चार चरण थे, जिसमें बाल्यकाल या किशोरावस्था, युवाकाल या क्रांति काल, समाजसेवा काल और जीवन का अंतिम चरण रहा मनन चिन्तन काल। स्वातंत्र्यवीर के जीवन के यह सभी चरण एक जीवन संघर्ष थे, किशोरावस्था में स्वातंत्रता की अलख जलाने के लिए किये गए कार्य ने बचपन के उन क्षणों की छीन लिया, जो एक किशोरावस्था के बच्चे के विकास में सहायता करते हैं। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के मन पर पारतंत्रकाल में ब्रिटिशों के अन्याय ने ऐसा प्रभाव छोड़ा कि, वे समय से पहले ही एक क्रांतिकारी, त्याग पुरुष की भांति जीवन जीने लगे। इसी प्रकार युवा काल के जीवन में क्रांतिकार्यों में संलिप्तता इतनी रही कि, जिस जीवन रस को एक साधारण युवक भोगता है, वह विनायक सावरकर के जीवन से छिन गया था। इसी काल में देश को पहला झंडा उन्होंने दिया, इसी काल में जोसेफ मैजिनी की पुस्तक की प्रस्तावना का उन्होंने भाषांतरण किया। यह क्रांतिकारियों के लिए गीता बन गई। जीवन का यही काल था, जब स्वातंत्र्यवीर सावरकर नामक क्रांति प्रणेता विश्व के असंख्य क्रांतिकारियों के मार्ग प्रदर्शक बन गए थे। जब ब्रिटिशों ने वीर सावरकर नामक धगधगते क्रांति सूर्य को अपनी कैद में बांधने का प्रयत्न किया तो वे मार्सेलिस के अथाह सागर में कूद पड़े। परंतु, ब्रिटिशों के षड्यंत्रों के आगे न्याय नतमस्तक था और भारत लाकर स्वातंत्र्यवीर सावरकर को पचास वर्षों के दोहरे कालापनी की सजा दे दी गई। कालापानी की सजा के लिए अंडमान भेज दिया गया, जहां स्वातंत्र्यवीर सावरकर के बड़े बंधु बाबाराव सावरकर भी बंदी बनाकर रखे गए।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन का तीसरा चरण रत्नागिरी से शुरू होता है। जहां ब्रिटिशों ने उन्हें स्थानबद्धता में रखा था। यद्यपि, स्थानबद्धता बहुत से नियमों के अधीन थी, परंतु जलप्रपात को रोकना ब्रिटिशों के हिम्मत में तो था नहीं। क्रांतिकार्य नहीं तो समाजकार्य प्रारंभ कर दिया। हिंदुओं में चली आ रही सप्त बंदी की प्रथा तोड़ने का कार्य हाथ में ले लिया। रत्नागिरी में स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने हिंदु युवाओं को हुनर की शिक्षा के प्रति भी प्रेरित किया, उनके कार्यों में सहायता की। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के सप्त बंदियों में से बाहर निकले अमृत कलश का नाम था, अश्पृष्यता निर्मूलन। इसी काल में हिंदू महासभा का कार्य भी वीर सावरकर ने हाथ में लिया, रत्नागिरी की स्थानबद्धता समाप्ति के पश्चात वीर सावरकर ने राजनीतिक कार्यों की शुरुआत की। हिंदू महासभा उस काल में कांग्रेस को टक्कर देनेवाला एकमात्र दल था। पारतंत्रकाल में जिस स्वातंत्र्यवीर सावरकर के विरुद्ध ब्रिटिशों ने षड्यंत्र रचा था, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत की सरकार ने भी वैसे ही काम किया और झूठे प्रकरण में फँसाकर स्वातंत्र्यवीर सावरकर के राजनीतिक भविष्य का गला घोंट दिया गया। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की आयु भी अपने चतुर्थ चरण में प्रवेश कर रही थी, वहां नेताओं से मिलना, सरकार को विभिन्न मुद्दों पर सलाह देना शुरू रहा। जब लगा कि, अब राष्ट्र कार्य नहीं हो पाएगा तो एक अजातशत्रु की भांति अनंत को स्वीकार कर लिया।

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स्वातंत्र्यवीर सावरकर को समझने, उनके त्याग को आत्मसात करने में साठ वर्षों का समय देश की सरकार को लगा। 2014 में जब भाजपा नेतृत्व वाली नई सरकार आई तो, स्वातंत्र्यवीर सावरकर के राष्ट्र कार्यों का उत्कर्ष हुआ। इस काल में कई ऐसे निर्णय लिये गए, जिनके प्रति दशकों पहले स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने आगाह किया था। इसमें जम्मू कश्मीर को लेकर नीति, विदेश नीति क्या हो और चीन से संबंध कैसे रखा जाए। हिंदुत्व को लेकर स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने जो परिभाषा दी वह अलौकिक ही है, यदि उसका पालन किया जाए तो राष्ट्र से तुष्टीकरण, जातिवादी मानसिकता और विघटनकारी शक्तियों से मुक्ति मिल जाएगी। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के आदर्शों को अभी गहराई से समझना होगा, क्योंकि, बिन दीपक के बाती किस काम की और बिन राष्ट्र के जाति किस काम की।

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