Cauvery river water dispute: बहुत पुरानी है कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवाद की जड़

कावेरी नदी कोडागू जिले से निकलकर बंगाली की खाड़ी तक जाती है। इस बीच वह तमिलनाडु होते हुए केरल और पुडुचेरी के कुछ भागों से गुजरती है। 1881 में जब तत्कालीन मैसूर (अब कर्नाटक) ने कावेरी नदी पर बांध बनाने की मांग शुरू की, तब तमिलनाडु ने इसका विरोध करने लगा ।

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21 सितंबर को कावेरी नदी जल विवाद (Cauvery river water dispute) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश के तहत कर्नाटक (Karnataka) सरकार के तमिलनाडु को हर दिन 5,000 क्यूसेक पानी देने के फैसला पर किसानों की कर्नाटक जल संरक्षण समिति सहित कई किसान, कई कन्नड़ समर्थक संगठनों और मजदूर यूनियनों ने 26 सितंबर को बेंगलुरु में बंद बुलाया। इन संगठनों ने 29 सितंबर को भी बंद का ऐलान किया है। ये संगठन राज्य में खेती के लिए अपर्याप्त पानी का हवाला देते तमिलनाडु (Tamil Nadu) को पानी देने के फैसले का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि बेंगलुरु (Bengaluru) में पीने के साथ ही मांड्या में खेती के लिए पानी का मुख्य स्त्रोत कावेरी नदी ही है। एक नजर डालते हैं कावेरी नदी जल विवाद के इतिहास पर-

आजादी के पहले से है विवाद
कावेरी नदी कोडागू जिले से निकलकर बंगाली की खाड़ी तक जाती है। इस बीच वह तमिलनाडु होते हुए केरल और पुडुचेरी के कुछ भागों से गुजरती है। 1881 में जब तत्कालीन मैसूर (अब कर्नाटक) ने कावेरी नदी पर बांध बनाने की मांग शुरू की, तब तमिलनाडु ने इसका विरोध करने लगा । 1924 में अंग्रेजों के दखल से कावेरी नदी के जल पर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच क्रमशः 177टीएमसी और 556टीएमसी पानी के अधिकार का समझौता हुआ। लेकिन बाद में केरल और पुडुचेरी की तरफ से भी मांग होने लगी। इस पर 1972 में एक समिति का गठन किया गया । इस समिति ने 1976 में चारों राज्यों के बीच एक समझौता कराया। लेकिन यह समझौता इन राज्यों को संतुष्ट नहीं कर पाया।

पर्यावरण में बदलाव के साथ बढ़ता गया विवाद
जैसे- जैसे पर्यावरण में बदलाव हुआ। बारिश कम होने लगी और पानी की मांग बढ़ती गई। उसके साथ ही ये विवाद भी गहराता गया। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा, लेकिन फिर भी मसले का हल नहीं निकला। इससे पहले भी तमिलनाडु सरकार दो मर्तबा कर्नाटक के जलाशयों से प्रतिदिन 24,000 क्यूसेक पानी छोड़ने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है। प्रत्येक बार कर्नाटक सरकार ने तमिलनाडु की याचिका का जम कर विरोध किया। केंद्र ने तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पुडुचेरी के बीच उनकी जल-बंटवारे क्षमताओं के संबंध में विवादों पर मध्यस्थता करने के लिए 2 जून, 1990 को कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया था। लेकिन वह विवाद निपटाने में असफल रही। बता दें कि तमिलनाडु की मांग पर ही अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम के तहत 1990 में गठित ट्रिब्यूनल ने तमिलनाडु को कावेरी नदी का निर्धारित जल मिलेगा। लेकिन यह भी फैसला सर्वमान्य नहीं हो सका।

सिंचाई और पीने के पानी का प्रमुख स्रोत है कावेरी नदी
कावेरी जल दोनों राज्यों के लोगों के लिए सिंचाई और पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने सहित आजीविका का प्रमुख स्रोत है। हालांकि, डीएमके नेताओं का कहना है कि अंतरराज्यीय स्तर पर किसी भी नदी, निचले राज्य या क्षेत्रों को पानी देने से इनकार नहीं कर सकते। पर, उनका ये तर्क कोई सुनने को राजी नहीं है। कर्नाटक पिछले कुछ महीनों में सूखे का सामना कर रहा है। इसलिए मुश्किल है कि कर्नाटक सरकार ‘कावेरी जल विनियमन समिति’ की सिफारिश माने। न मानने का एक कारण ये भी है कि चुनाव में उन्होंने कावेरी का मुद्दा उठाया था, प्रदेश की जनता से भरपूर पानी देने का वादा किया था। इस लिहाज से वह तमिलों को शायद ही पानी दें। कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर 1991 और 2016 का विवाद तो हिंसात्मक हो गया था। इसमें कई लोगों की जानें भी चली गई थीं।

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