अग्निपरीक्षा का एक साल

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महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार का एक वर्ष उसकी अग्निपरीक्षा का काल रहा। 28 नवंबर 2019 को इस सरकार का गठन हुआ और उद्धव ठाकरे ने मुंबई के शिवाजी पार्क में मुख्यमंत्री पद का शपथ ग्रहण किया। उसके बाद अब तक मातोश्री से रिमोट कंट्रोल से सरकार और पार्टी चला रहे उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के सरकारी आवास ‘वर्षा’ से खुद सरकार चला रहे हैं।

संघर्ष का काल, एक साल
उद्धव सरकार का यह एक साल काफी संघर्षपूर्ण रहा। उनके लिए सीएम पद कांटों का ताज साबित हुआ। कोरोना की महामारी, निसर्ग चक्रवात,ओला-दुष्काल और अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मामले ने उन्हें कभी भी चैन से बैठने नहीं दिया। इन सब में सबसे ज्यादा टेंशन उन्हें दिया सुशांत सिंह राजपूत मामले और इसी के बाद कंगना रनौत तथा शिवसेना के बीच बढ़े विवाद ने।

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कोरोना का कहर
उद्धव सरकार का पहला बजट सत्र शुरू ही हुआ था कि एक सप्ताह बाद ही पूरे देश के साथ ही महाराष्ट्र में भी कोरोना का कहर शुरू हो गया। इसका महाविकास आघाड़ी सरकार पर बहुत ही बुरा असर पड़ा और उसे इस सत्र को जल्दी ही खत्म करने पर मजबूर होना पड़ा। मार्च महीने से शुरू हुआ कोरोना का प्रकोप अभी भी जारी है। हालांकि इसके संक्रमण के आंकड़ों में कमी आई है लेकिन अभी भी इसके खतरे को कमतर नहीं आंका जा सकता । नवंबर 2020 के अंतिम हफ्ते में भी प्रति दिन नये मरीजों की संख्या 6 हजार के करीब है। साथ ही कोरोना की दूसरी लहर आने का खतरा भी बना हुआ है। हालांकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने यह स्पष्ट रुप से कहा है कि राज्य में लॉकडाउन फिर से लागू नहीं किया जाएगा।

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निसर्ग तूफान ने बढ़ाई परेशानी
एक ओर कोरोना संकट तो दूसरी ओर निसर्ग चक्रवात ने राज्य सरकार की परेशानी बढ़ा दी। निसर्ग की वजह से रायगढ़ और रत्नागिरी जिले में सबसे ज्यादा तबाही मचाई । कई घर गिर गए और पेड़ उखड़ गए। इसके साथ ही किसानों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा। इस वजह से सरकार को प्रभावित लोगों को मदद करनी पड़ी। सरकार ने रायगढ़ जिले को 100 करोड़, रत्नागिरी को 75 करोड़ और सिंधुदुर्ग को 25 करोड़ की मदद राशि देने का ऐलान किया।

केंद्र सरकार ने किया निराश
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि पहले से ही महाराष्ट्र पर बढ़ा हुआ कर्ज अब पहाड़ बन गया । कोरोना काल में उद्योग-धंधे बंद होने से राज्य की आर्थिक हालत पस्त हो गई। इस हाल में उसे केंद्र से मदद की उम्मीद थी लेकिन मदद तो दूर जीएसटी का 38 हजार करोड़ रुपए का बकाया भी उसने नहीं दिया। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इसे लेकर केंद्र के प्रति नाराजगी भी जताई थी लेकिन केंद्र पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।

सुशांतसिंह राजपूत मामले में सरकार की बदनामी
अभिनेता सुशांत सिह राजपूत आत्महत्या मामले की जांच को लेकर पूरे देश में सरकार की बदनामी हुई। सुशांत के पहले उनकी पूर्व मैनेजर दिशा सालियन आत्महत्या मामले में एक नेता का हाथ होने की चर्चा होने से उद्धव सरकार की परेशानी काफी बढ़ गई। उसके बाद अभिनेत्री कंगना रनौत के आरोप के बाद उनके और शिवसेना सांसद संजय राऊत के बीच चली बयानबाजी ने भी सरकार की परेशानी बढ़ा दी। साथ ही इससे इससे सरकार की इमेज को भी नुकसान पहुंचा। इसके बाद रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी द्वारा कई तरह के लगाए गए गंभीर आरोप ने भी सरकार की नींद उड़ा दी। दो वर्ष पहले इंटिरियर डिजाइनर अन्वय नाईक और उसकी मां की आत्महत्या मामले में अर्णब की गिरफ्तारी को लेकर भी सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।

बंपर बिजली बिल ने बढ़ाई परेशानी
लॉकडाउन के दौरान बिजली कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं को भेजे गए बंपर बिजली बिल सरकार के लिए अब तक सरदर्द बने हुए हैं। ऊर्जा मंत्री नितिन राऊत द्वारा बिजली बिल मामले में उपभोक्ताओं को राहत देने का भरोसा दिलाने के बावजूद उद्धव सरकार ने इस बारे में कोई निर्णय नहीं लिया। इसके विरोध में मनसे ने उग्र विरोध प्रदर्शन कर अभी तक सरकार को संकट में डाल रखा है।

 

 

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