किसान आंदोलन के बीच पांच प्रदेशों में चुनाव!…. जानिये किसे होगा लाभ और किसे नुकसान?

कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसान आंदोलन कब खत्म होगा, इस बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है। इस बीच देश के पांच राज्यों में चुनाव कराए जा रहे हैं।

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कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग को लेकर करीब साढ़े तीन महीने से किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। इस बीच देश के चार राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव कराए जा रहे हैं। इन राज्यों में पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी (केंद्र शासित) शामिल हैं। इनमें से दक्षिण के राज्यों तमीलनाडु, केरल और पुडुचेरी में किसान आंदोलन का शायद ही असर पड़े, लेकिन पश्चिम बंगाल तथा असम में इसका प्रभाव पड़ने की पूरी गुंजाइश है।

बता दें कि किसान आंदोलन के बीच देश के कई प्रदेशों में निकाय चुनाव कराए गए हैं। उनमें गुजरात में हाल ही में कराए गए निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अपनी जीत का परचम लहराने में कामयाब रही , लेकिन इससे पहले फरवरी में पंजाब में हुए निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था। यहां के सात नगर निगमों में से सभी में कांग्रेस की जीत हुई थी। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की यह करारी हार किसान आंदोलन की वजह से हुई थी।

आंदोलन को कांग्रेस का समर्थन
दरअस्ल पंजाब में जिस समय निकाय चुनाव कराए गए, उस समय किसान आंदोलन चरम पर था। 26 जनवरी को दिल्ली में किसान रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद जहां दिल्ली पुलिस काफी सक्रिय थी, वहीं पंजाब और हरियाणा में केंद्र सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन किए जा रहे थे। कहा यह भी जाता है कि पंजाब में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस आंदोलन को राजनैतिक लाभ के लिए परोक्ष रुप से समर्थन दिया और इसका पूरा-पूरा फायदा उन्हें मिला।

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हरियाणा के निकाय चुनाव में टालमटोल
पंजाब में मिली हार के बाद हरियाणा की भाजपा सरकार निकाय चुनाव को फिलहाल टालने में ही अपनी भलाई समझ रही है। इस बारे में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि फिलहाल प्रदेश में चुनाव के लिए माहौल नहीं है। दबाव के जो विषय चल रहे हैं, उससे लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन होता है। बता दें कि हरियाणा में पंचायत चुनाव का कार्यकाल 23 फरवरी को समाप्त हो गया है।

आंदोलन में पंजाब व हरियाणा के किसान
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जो किसान दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं, उनमें 90 प्रतिशत किसान पंजाब और हरियाणा के हैं। इस वजह से इनके आंदोलन का असर भी इन्हीं दो राज्यों में दिख रहा है।

पश्चिम बंगाल मेंं टीएमसी की सरकार
पश्चिम बंगाल में वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस पार्टी की सरकार है और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी यहां की मुख्यमंत्री हैं। अगर इस प्रदेश के मौजूदा हालात की बात करें तो लगता नहीं है कि किसान आंदोलन का इस प्रदेश के चुनाव पर कोई ज्यादा असर पड़ेगा। देखनेवाली बात यह भी है कि इस प्रदेश में किसान आंदोलन का शुरू से ही कोई ज्यादा प्रभाव नहीं रहा है।

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टिकैत का ऐलान
पंजाब के निकाय चुनावों में भाजपा की हार के बाद भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता ने कहा था कि मैं खुश हूं कि भाजपा हार गई। हाल ही में उन्होंने ये भी कहा था कि वे अपने आंदोलन को पश्चिम बंगाल में तेज करेंगे। इसके लिए वे वहां सभा और प्रदर्शन करेंगे। लेकिन ममता बनर्जी खुद यह नहीं चाहतीं कि किसान पश्चिम बंगाल में आंदोलन तेज कर ऐन चुनाव से पहले कानून-व्यवस्था खराब करें। इसके साथ ही उन्हें लगता है कि पश्चिम बंगाल में अगर किसान सभा करते हैं तो इसका फायदा कांग्रेस को होगा, न कि उनकी पार्टी टीएमसी को। इस वजह से शायद ही वे किसान संगठनों को पश्चिम बंगाल में जन सभा करने की अनुमति दें।

असम में किसान आंदोलन का असर नहीं
जहां तक असम का सवाल है तो वहां किसान आंदोलन का शुरू से ही कोई प्रभाव नहीं है और न ही किसान संगठनों ने असम में आंदोलन या जनसभा करने के बारे में ही कोई घोषणा की है। वैसे भी असम में भारतीय जनता पार्टी और असम गण परिषद की सरकार है। इस हाल में वहां किसान संगठनों को किसी तरह की सभा करने की मंजूरी भी नहीं मिलेगी।

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दक्षिण के राज्यों में असर नहीं
जहां तक केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी का सवाल है तो इन प्रदेशों में किसान आंदोलन का कोई असर नहीं पड़ेगा। इन प्रदेशों में स्थानीय मुद्दों के हावी रहने की उम्मीद है और उन्हीं मुद्दों का चुनाव पर ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। इसके आलावा इन राज्यों में विभिन्न पार्टियों द्वारा किए जाने वाले चुनाव प्रचार का भी असर पड़ेगा। पश्चिम बंगाल तथा असम में जहां सीएए, एनआरसी तथा कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे हावी रहने की उम्मीद है, वहीं इन मुद्दों का दक्षिण के राज्यों में होनेवाले चुनाव पर कोई ज्यादा असर पड़ने की गुंजाइश नहीं है।

क्या कहते हैं किसान नेता?
संयुक्त किसान मोर्चा के योगेंद्र यादव का कहना है कि सरकार बहुत कुछ समझ रही है। उसे लगता है कि पहले पांच राज्यों के चुनावी नतीजे मिल जाएं, उसके बाद किसानों से बात कर लेंगे। अगर जीत मिल जाती है तो सरकार अपना अड़ियल रुख जारी रखेगी और हार हुई तो सरकार को सभी मांगें माननी पड़ेंगी।

क्या कहती है सरकार?
भाजपा के थिक टैंक और गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि किसानों को पश्चिम बंगाल में आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन वहां के किसानों की अलग समस्या है। ममता बनर्जी की वजह से वहां के किसानों को हर साल मिलने वाले छह हजार रुपयों से वंचित रहना पड़ता है। ममता दीदी उनकी लिस्ट ही नहीं देतीं। लगभग 130 साल से जो फसल खेत मे उपजाता है, उसके उपज की मार्केटिंग में कोई बदलाव नहीं आया। अब इसके लिए मोदी सरकार प्रयास कर रही है। 

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