“कॉमन सिविल कोड के पक्षधर थे आंबेडकर”

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भारत का संविधान समय के बंधन से परे है। जहां विश्व के संविधान काल की सीमाओं में निष्क्रीय हो रहे हैं, वहीं भारत का संविधान 70 साल बाद भी देश को राष्ट्र धर्म और जन कर्म इन दोनों धुरी में बंधकर रखने में सफल है। ये देन है, संविधान निर्माता डॉ.बाबा साहेब आंबेडकर के दूर दृष्टि की। उन्होंने उस काल में कॉमन सिविल कोड का खुलकर समर्थन किया और उसे लागू करने के लिए प्रयत्न भी किया। ये उद्गार 71वें संविधान दिवस के अवसर पर डॉ.नरेंद्र जाधव ने व्यक्त किये। यह कार्यक्रम स्वातंत्र्यवीर सावकर राष्ट्रीय स्मारक में आयोजित किया गया था।

सावरकर और आंबेडकर की विचारधारा में साम्यता
धार्मिक स्वातंत्र्य, अल्पसंख्यकों के अधिकार के नाम पर ठगा जाना, हिंदू की व्याख्या, ये वह मुद्दे हैं, जिसकी अनुभूति उस काल में हमारे द्रष्टाओं ने की, उसके अनुरूप स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने एक समाज के निर्माण की आधारशिला रखी। जबकि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने इन मुद्दों पर लगभग उसी लाइन पर कार्य किया।

संविधान डॉ.आंबेडकर द्वारा दिया गया एक अनुपम उपहारः रणजीत सावरकर
स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर ने इस मौके पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मुझे लगता है कि संविधान का महत्व लोकतंत्र के लिए क्या है, इसकी अनुभूति हमें इसी दिन हुए एक आतंकी हमले से होती है। लोकतंत्र में लोगों के पास एक ही हथियार होता वो है संविधान। भारत का संविधान डॉ.आंबेडकर द्वारा दिया गया एक अनुपम उपहार है। जब हम स्वातंत्र्यवीर सावकर या डॉ.आंबेडकर पर विचार करते हैं तो ये सामने आता है कि आज की राजनीति में उनके विचारों का विकृतिकरण हो गया है। इन दोनों की भूमिका एक समान हमें दिखती हैं।

हिंदुत्व को लेकर विचार
रणजीत सावरकर ने कहा कि वीर सावरकर का हिंदुत्व को लेकर जो विचार था, उसमें इस देश के जो धर्म-पंथ हैं, वो सभी हिंदू और डॉ.आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल में हिंदू की जो व्याख्या की, वो यही किया। उसमें सावरकर की व्याख्या इनक्लूजन के कारण है, जबकि डॉ.आंबेडकर की व्याख्या में एक्सक्लूजन है। इन्होंने कहा है कि ईसाई, यहूदी, मुस्लिम और पारसी को छोड़कर सभी हिंदू हैं। ये यहीं नहीं थमती। लोकतंत्र का अर्थ है, बहुत के अधिकारों की रक्षा। सावरकर का कहना यही था कि यहां सभी एक समान होंगे लेकिन अल्पसंख्यकों के नाम पर हम किसी को भी अतिरिक्त अधिकार नहीं देंगे।

‘धार्मिक स्वतंत्रता कानून के अंतर्गत हो’
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि वीर सावरकर का कहना यही था कि धार्मिक स्वातंत्र्य कानून के अंतर्गत हो, कानून के ऊपर न हो। धर्म स्वातंत्र्य की जो कल्पना डॉ.आंबेडकर ने की, उसमें उन्होंने यही दिया है  और देश पर जहां धार्मिक स्वतंत्रता की बात होगी, वहां शासन उस पर लगाम लगा सकता है। मुझे लगता है, यदि आज के काल में हमें संविधान सुदृढ़ करना होगा तो हमें अपनी धार्मिक स्वतंत्रता को अपने घरों तक ही सीमित रखना होगा। बाहर हम सभी एक देश के नागरिक हैं, यही मुझे लगता है। संविधान दिन के अवसर पर यही डॉ.आंबेडकर के कार्यों के प्रति आदरांजलि होगी।

कालजयी है हमारा संविधान
सांसद और अर्थशास्त्री डॉ. नरेंद्र जाधव ने वर्चुअल माध्यम से जुड़कर संबोधित किया। उन्होंने संविधान की विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि हमारा संविधान हमारा गौरव है। किसी भी देश का संविधान इतने सालों तक टिकाऊ नहीं होता, लेकिन 71 साल बीतने के बावजूद हमारा संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरता है यह कालजयी है। इसकी रचना में वक्त के साथ भविष्यकाल के परिवर्तनों और दूरदर्शिता का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया था।

महिला समानता की मजबूत कड़ी थे बाबसाहेब
डॉ.नरेंद्र जाधव ने बताया कि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर पुरुष प्रधान समाज के बावजूद महिलाओं को समान अधिकार देने के लिए पक्षधर थे। इसके लिए उन्होंने संविधान में व्याख्या भी की। जिसमें उन्होंने पैतृक संपत्ति में बेटे-बेटियों में अंतर को खत्म करके समान आधिकार दिया। लेकिन, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद समेत कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी इसमें हस्तक्षेप किया। उनका मानना था कि इससे पारिवार की परंपरा को नुकसान पहुंचेगा।

कॉमन सिविल कोड के प्रबल पक्षधर
कॉमन सिविल कोड (समान नागरी कानून) पर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में के डॉ. नरेंद्र जाधव ने बताया कि बाबासाहेब इसके प्रबल समर्थक थे। इसके लिए उन्होंने हिंदू कोड बिल की रचना की। उन्होंने सहमित के लिए इसे संविधान समिति की तरफ से रखा। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने इसका विरोध किया। उन्होंने विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया था।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर और आंबेडकर का उद्देश्य एक
इस कार्यक्रम को स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक की कोषाध्यक्ष ने मंजिरी मराठे ने भी संबोधित किया। उन्होंने बताया कि रत्नागिरी में स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने अपनी स्थानबद्धता काल में समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाकर एक स्थान पर बैठाया। जिन मंदिरों में अस्पृश्यों को जाने नहीं दिया जाता था, वहां गर्भ गृह में बैठकर पूजा करने लगे। इसके अलावा लॉर्ड लिनलिथगो ने कार्यकारी मंडल की पुनर्रचना में से दलित और सिखों को स्थान नहीं दिया था, जिसका उस समय डॉ.आंबेडकर ने विरोध किया। इसका स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने खुलकर समर्थन किया।
इनकी रही उपस्थिति
इस कार्यक्रम में स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक के के कार्यवाह राजेंद्र वराडकर, सह-कार्यवाह स्वप्निल सावरकर समेत पदाधिकारी और जन सामान्य उपस्थित थे। कार्यक्रम में मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन किया गया।
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