गांधी-नेहरू का वो पत्र सही अर्थों में माफीनामा और देश के साथ विश्वासघात – राष्ट्रीय पटल पर गरजे रणजीत सावरकर

राष्ट्रीय हिंदी समाचार चैनल आज तक के कार्यक्रम एंजेंडा आज तक 21 में वीर सावरकर के नाम पर बहस आयोजित की गई थी। इसमें स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर, इतिहासकार और वीर सावरकर पर ग्रंथ लिखनेवाले विक्रम संपत मौजूद थे।

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मोहनदास करमचंद गांधी और जवाहरलाल नेहरू के लिखे पत्रों का इतिहास इस बार वीर सावरकर के पौत्र ने उधेड़ा है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर का नाम लेकर लगातार हो रहे दुष्प्रचारों का साक्ष्यों के साथ उत्तर रणजीत सावरकर ने दिया है। हिंदी समाचार माध्यम के राष्ट्रीय पटल पर उन्होंने बताया कि, जलियांवाला बाग हत्यांकाड के बाद गांधी ने आंदोलन को पीछे ले लिया, और लिखा कि, “इसके बाद मेरा आंदोलन देशवासियों के विरुद्ध होगा।” इसी प्रकार देश के लोगों को आयकर न भरने, सरकारी नौकरी छोड़ने, स्कूल छोड़ने और सरकार से असहयोग करने का आव्हान करनेवाले नेहरू स्वत: अपने पिता को पत्र लिखकर आयकर चुकता करने को कहते हैं। इन प्रमाणों के साथ रणजीत सावरकर ने स्पष्ट किया कि इतिहास में सबसे बड़ा माफीनामा यदि किसी ने लिखा तो वो है गांधी नेहरू का है और राष्ट्र से विश्वासघात गांधी और नेहरू ने ही किया है।

जलियांवाला बाग में मारे गए हुतात्मा नहीं
जलियांवाला बाग में जनरल डायर के क्रूरतम हत्याकांड के बाद गांधी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया था। इसके बाद गांधी लिखते हैं, “इसके पश्चात मेरा सत्याग्रह देशवासियों के विरोध में होगा।” इसके दूसरे दिन गांधी ने टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक को पत्र लिखा, जिसमें अहमदाबाद के जनसामान्यों पर अंग्रेजों द्वारा की गई गोलीबारी का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि, अहमदाबाद की जनता को अंग्रेजों के विरुद्ध बोलने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वहां की जनता का षंड्यंत्र ट्रेन विस्फोट करने का था, उन्होंने अंग्रेज अधिकारी की हत्या की थी। इसके रंज में अंग्रेजों ने अहमदाबाद के लोगों पर गोलियां चलाई हैं। अंग्रेजों की कार्रवाई योग्य है, वहां की जनता को मिली सजा योग्य है। गांधी का यह पत्र छप चुका है। इस पत्र में गांधी जलियांवाला बाग हत्याकांड के विषय में एक शब्द भी नहीं लिखते हैं। जलियांवाला हत्याकांड के एक वर्ष पश्चात 6 अक्टूबर, 1920 को एक सभा में बोलते हुए गांधी कहते हैं, जलियांवाला बाग हत्याकांड में मारे गए स्त्री पुरुष हुतात्मा (वीर) नहीं हैं। गांधी की यह भूमिका सही अर्थों में अंग्रेजों से मांगी गई माफी है।

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नेहरू गांधी का राष्ट्र से विश्वासघात
1920 में गांधी ने असहकार आंदोलन की घोषणा की थी, इसमें जनता से आयकर न भरने, स्कूल-कॉलेज छोड़ने, नौकरी छोड़ने का आह्वान किया गया था। इसका परिणाम यह हुआ कि लाखो की संख्या में जनसामान्य ने इसका पालन किया। बड़ी संख्या में लोगों ने आयकर नहीं भरा और इसके कारण उनकी संपत्तियां जप्त कर ली गईं। इसके दूसरी ओर वर्ष 1922 में जवाहरलाल नेहरू अपने पिता मोतीलाल नेहरू को पत्र लिखते हैं कि, “मैंने आयकर भरने के लिए बैंक से कागज मांगे हैं, आप भी आयकर भर दें।” रणजीत सावरकर ने कहा कि, यह राष्ट्र से विश्वासघात था।

उन माफीनामों का सही अर्थ
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के अंतिम माफीनामे पर विवाद उत्पन्न किया जाता रहा है। उस पर अपनी स्पष्ट भूमिका रणजीत सावरकर ने रखी है। उन्होंने बताया कि, वीर सावरकर ने अपनी उस अर्जी में लिखा है कि, राजनीतिक बंदियों को यहां कोई विशेष अधिकार नहीं मिलता, जबकि विश्व के किसी भी सभ्य समाज में राजबंदियों को भी अधिकार दिये जाते हैं। अपनी इस टिप्पणी के माध्यम से वीर सावरकर ने अंग्रेज सरकार को असभ्य सूचित किया है। वीर सावरकर इस पत्र में अपना उल्लेख ‘प्रॉडिगल सन’ के रूप में करते हैं, जिसका अर्थ बिगड़ा हुआ बेटा है। यह शब्द बाइबिल से आया है, जिसमें एक कथा में एक संत के दो बेटों में से बिगड़ैल छोटे बेटे को सुधारने का प्रयत्न किया जा रहा था। उसे प्रॉडिगल सन के रूप में संबोधित किया गया है। वीर सावरकर साहित्यकार और बैरिस्टर थे, उन्हें ये पता था कि अंग्रेज ईसाई हैं और उनका बाइबिल पर विश्वास है। इसलिए उन्होंने इस शब्द का प्रयोग किया था। वीर सावरकर आगे ऐसा कहते हैं कि, यदि आपको हम खतरनाक लगते हैं, बिगड़े हुए लगते हैं तो हमें सुधारिये। उसी समय वीर सावरकर यह भी लिखते हैं कि, विश्व के सभी सभ्य देशों में राजनीतिक बंदियों से अच्छा व्यवहार किया जाता है, परंतु आप नहीं करते। आप तो हमें सामान्य बंदियों के अधिकार भी नहीं देते। इन अधिकारों से वंचित रखकर आप हमारे साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे हैं। इसके आगे वीर सावरकर लिखते हैं कि, वर्ष 1906 की परिस्थिति भीषण थी, उसका कोई पर्याय नहीं था, इसलिए हमें हथियार उठाना पड़ा। अब आप सुधार कर रहे हैं, ऐसा हमें भी लग रहा है। इस परिस्थिति में कोई शांति की राह को स्वीकार करेगा।

वीर सावरकर ने अपनी प्रत्येक अर्जी में लिखा है कि, यदि मेरी मुक्ति का आप विरोध करते हैं तो, अन्य राजनीतिक बंदियों को तो छोड़ दें। वीर सावरकर ने अपने भाई को 10 वर्षों में 7 पत्र लिखे हैं। इसमें उन्होंने निजी हालचाल बिल्कुल ही कम किया है, परंतु अधिकतर चर्चा राष्ट्र की है। उन पत्रों में भी वीर सावरकर ने अंग्रेजों को लिखी अपनी अर्जी का उल्लेख किया है। रणजीत सावरकर कहते हैं, इसलिए वीर सावरकर की अर्जियों और पत्रों का एक साथ अध्ययन करना चाहिये, जिससे बातें स्पष्ट हो जाएंगी।

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वीर सावरकर से अंग्रेजों का डर
वीर सावरकर ने कभी माफी नहीं मांगी थी। उन्होंने जितनी भी अर्जियां की थीं, उन पर तत्कालीन गृहमंत्री रेजिनॉल्ड क्रेडॉक कहते हैं, सावरकर की अर्जियों में कहीं भी खेद या दुख प्रकट नहीं किया गया है। इसलिए उसे माफी कैसे कह सकते हैं।

रणजीत सावरकर रेजिनॉल्ड क्रेडॉक के पत्र का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि, रेजिनॉल्ड क्रेडॉक ने लिखा है कि सावरकर को भारत के किसी भी कारागृह में रखते हैं तो उनके साथी उन्हें छुड़ा ले जाएंगे। सावरकर खतरनाक हैं, इसलिए उनकी सजा पूरी होती है फिर भी उन्हें आजीवन कारागृह में बंदी बनाकर रखना चाहिये।

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