फॉर्मुले की फजीहत! महागठबंधन में सहमति बनी तो एनडीए में खिचपिच जारी

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पटना/ नई दिल्ली। बिहार में चुनावी संग्राम चरम पर है। गठबंधन की सभी पार्टियां ज्यादा से ज्यादा सीटें हथियाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। इसके साथ ही जिन क्षेत्रीय पार्टियों को उम्मीद के मुताबिक अपने एलायंस से सीटें नहीं मिल रही हैं, वे अलग राह पकड़कर चुनावी समर में उतरने की तौयारी कर रही हैं।
महागठबंधन में बनी सहमति
खबर है कि महागठबंधन में सीटों का बंटवारा हो चुका है और तीनों पार्टियों की इसपर सहमति बन चुकी है। बिहार विधान सभा की कुल 243 सीटों में से आरजेडी के हिस्से में 137 सीटें आई हैं, जबकि कांग्रेस 68 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाएगी। वहीं महागठबंधन में शामिल सीपीएम, सीपीआई और वीआईपी को 5-5 सीटों से संतोष करना पड़ेगा, जबकि माके 19 सीटों पर दांव खेलेगी। हालांकि इसकी औपचारिक घोषणा होना अभी बाकी है।
एनडीए में खिचपिच जारी


दूसरी ओर एनडीए में अभी तक सीटों पर सहमति नहीं बन पाई है। यहां लोक जनशक्ति पार्टी ( लोजपा) अध्यक्ष चिराग पासवान को लेकर पेंच कायम है। हालांकि दोनों बड़ी पार्टियां जेडीयू और भाजपा के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर ज्यादा दिक्कत नहीं है। लेकिन एनडीए के दलित मतदाता वोट बैंक रखनेवाले केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को लेकर खिचपिच जारी है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने अपने कोटे से सीट देने से साफ मना कर दिया है। जेडीयू के कोटे से हिंदुस्तान अवामी मोर्चा को सीटें दी जाएंगी। हाल ही एनडीए में आए हम सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को लेकर नीतीश कुमार ने खुलकर बात की है। उन्होंने उनकी पार्टी को अपने कोटे से सीट देने का ऐलान किया है। इस हालत में भारतीय जनता पार्टी को चिराग पासवान को सीट देने के बारे में तय करना है।
सीटों को लेकर पेंच कायम
भाजपा कह तो रही है कि एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन चुनावी मौसम में चिराग पासवान की महत्वकांक्षा चरम पर है। भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ गुरुवार को चिराग पासवान की हुई मुलाकात के बाद भी सीटों के फॉर्मूले पर कोई नतीजा नहीं निकल पाया है।
143 सीटों पर चुनाव लड़ने की लोजपा की तैयारी
बिहार विधानसभा का चुनाव एनडीए के साथ मिलकर लोजपा लड़ेगी या 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, इसका ऐलान जल्द होने की उम्मीद है। पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने दिल्ली में पार्टी संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई है। पार्टी प्रवक्ता अशरफ अंसारी का कहना है कि चुनाव के पहले पार्टी की यह आखिरी बैठक होगी। बैठक में पार्टी के सभी सांसद, वरिष्ठ पदाधिकारी व विधायक रहेंगे, जिसमें 143 प्रत्याशियों पर भी चर्चा होगी। घटनाक्रम को देखते हुए लगता नहीं है कि लोजपा एनडीए में रहकर चुनावी अखाड़े में उतरेगी। हालांकि उसे यह भी अंदाजा है कि अगर उसकी पार्टी अलग होकर चुनाव लड़ती है तो उसका हश्र बुरा हो सकता है।


लोजपा के लिए खोने के लिए कुछ भी नहीं
वैसे भी लोजपा के पास इस चुनाव में खोने के लिए कुछ नहीं है। पिछले चुनाव में 42 सीटों पर एनडीए के साथ मिलकर उसकी पार्टी चुनाव मैदान में उतरी थी और मात्र दो सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी। इस हिसाब से अगर सियासत की गणित बैठाई जाए तो लोजपा अपने दम पर भी दो से तो ज्यादा ही सीटें ला सकती है। कहा जा रहा है कि अगर लोजपा एनडीए से अलग होकर भी चुनाव लड़ती है तो वह भाजपा के उम्मीदवार वाली सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी, लेकिन नितिश की पार्टी जेडीयू के उम्मीदवार वाली सीटों पर अपने उम्मीदवार जरुर उतारेगी। लोजपा में यह नारा पहले से ही दिया जाने लगा है, “भाजपा से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं”।
2015 से अलग है चुनावी परिदृश्य
गौर कनेवाली बात यह भी है कि 2015 में हुए चुनाव में जेडीयू और महागठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा था। यानी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव दोनों की ताकत का ध्रुवीकरण होने से एनडीए की हालत पस्त हो गई थी। इस हिसाब से इस बार बिहार का चुनावी परिदृश्य 2015 के मुकाबले काफी बदल गया है।
रालोसपा और बसपा में सीटों पर समहति
रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा द्वारा बसपा के साथ मिलकर बनाए गए मोर्चे में सीट बंटवारे पर आपसी सहमति बन गई है। बसपा करीब 90 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बाकी की 153 सीटें रालोसपा को दी जा रही हैं। इसमें उसे जनवादी पार्टी सोशलिस्ट के अलावा इस गठबंधन में शामिल अन्य दलों को भी सम्माहित करना होगा।


गठबंधन में ओवैसी की पार्टी भी
गठबंधन में कई अन्य छोटे दलों के भी शामिल होने की संभावना है। ओवैशी की पार्टी से भी बातचीत चल रही है। अपने नए गठबंधन को रालोसपा व बसपा ने कुछ नाम भले न दिया हो लेकिन सीट बंटवारे के मामले में वो दूसरों से आगे निकलते दिख रहे हैं। सूत्रों की मानें तो बंटवारे का जो फार्मूला तय हुआ है, उसके हिसाब से बसपा के 90 के आसपास सीटों पर लड़ने की संभावना है। इनमें से करीब 35 सीटें वो हैं, जहां पहले चरण में चुनाव होना है।
दल बदलने में माहिर रालोसपा
रालोसपा पहले एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन अगस्त 2018 में अलग हो गई थी। 2015 का चुनाव भी रालोसपा ने एनडीए के साथ मिलकर ही लड़ा था। लेकिन, 2019 का लोकसभा चुनाव उसने राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल होकर लड़ा। 2019 में रालोसपा ने बिहार की 5 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। इस बार भी ऐन चुनाव से पहले सीटों को लेकर नाराजगी के चलते उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन से अलग हो गए और अब बसपा से हाथ मिलाया है।
मात्र दो विधायकों की पार्टी 
2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कुशवाहा ने एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 23 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारा लेकिन महज दो सीटों पर ही जीत मिली थी।  इस हिसाब से देखें तो रालोसपा के पास वर्तमान में मात्र दो विधायक हैं, वहीं एक भी सांसद नहीं है। इस तरह पार्टी रालोसपा के पास इस चुनाव में जो हालत चिराग पासवान की है, वही कुशवाहा की है। चिराग की तरह कुशवाहा के पास भी खोने के लिए कुछ नहीं है।
तीन चरणों में मतदान
राज्य में तीन चरणों में चुनाव होने हें। पहले चरण का चुनाव का 28 अक्टूबर को है, जबकि बाकी दो चरण 3 नवंबर और 7 नवंबर को होने हैं। वोटों की गिनती 10 नवंबर को कराई जाएगी।

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