World Post Day: भारत में पहली बार 1854 में जारी हुआ डाक टिकट

भारत में पहली बार सन 1766 में ब्रिटिश शासनकाल में लॉर्ड क्लाइव द्वारा डाक व्यवस्था की शुरुआत की गई थी, जिसका विकास करते हुए 1774 में वारेन हेस्टिंग्स ने पहला डाकघर (first post office) कोलकाता में स्थापित किया

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विश्वभर में प्रतिवर्ष 09 अक्टूबर (09 October) को ‘विश्व डाक दिवस’ (World Post Day) मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य हमारे दैनिक जीवन में डाक के महत्व को दर्शाना तथा इसकी उपयोगिता साबित करना है। 09 अक्टूबर 1874 को स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके बाद ‘यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’(Universal Postal Union) का गठन किया गया था। 01 जुलाई 1876 को भारत (India) यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना, जो इसकी सदस्यता लेने वाला पहला एशियाई देश था। 1874 में गठित हुई ‘यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’ की याद में जापान के टोक्यो में 09 अक्टूबर 1969 को आयोजित विश्व डाक संघ के सम्मेलन में इसी दिन ‘विश्व डाक दिवस’ मनाए जाने की घोषणा की गई और तभी से प्रतिवर्ष 09 अक्टूबर को ही अंतरराष्ट्रीय डाक सेवा दिवस मनाया जा रहा है। विश्व डाक दिवस का उद्देश्य ग्राहकों के बीच डाक विभाग के उत्पादों के बारे में जानकारी देना, उन्हें जागरूक करना और डाकघरों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है।

पहला डाकघर कोलकाता में
भारत में पहली बार सन 1766 में ब्रिटिश शासनकाल में लॉर्ड क्लाइव द्वारा डाक व्यवस्था की शुरुआत की गई थी, जिसका विकास करते हुए 1774 में वारेन हेस्टिंग्स ने पहला डाकघर (first post office) कोलकाता में स्थापित किया था। उसके बाद 1786 में चेन्नई और 1793 में मुम्बई में जनरल डाकघर स्थापित किए गए। जहां तक डाक टिकटों की शुरुआत की बात है तो देश में डाक टिकटों की शुरुआत ब्रिटिश शासनकाल में ही वर्ष 1852 में हुई थी लेकिन उस समय जारी किए गए टिकट केवल सिंध प्रांत में ही चल सकते थे। हालांकि विश्व में डाक टिकटों का इतिहास करीब 183 वर्ष पुराना है। डाक टिकटों की शुरुआत कब, क्यों और कैसे हुई, इसका भी दिलचस्प इतिहास है। डाक टिकटों की विधिवत शुरुआत 06 मई 1840 को हुई थी, जब एक पैनी मूल्य का विश्व का पहला डाक टिकट जारी किया गया था, जिसे ‘ब्लैक पैनी’ के नाम से जाना गया क्योंकि यह डाक टिकट काली स्याही से छापा गया था। इस डाक टिकट के अस्तित्व में आने से पूर्व डाक टिकटों के स्थान पर ‘ठप्पा टिकटों’ का प्रयोग होता था, जो आयताकार, गोलाकार, त्रिकोणाकार अथवा अंडाकार होते थे और इन ठप्पों पर ‘पोस्ट पेड’ अथवा ‘पोस्ट नोन पेड’ इत्यादि लिखा होता था।

डाक सेवा का विकासक्रम
प्राचीन काल में डाक सेवा का उपयोग राजा-महाराजा अथवा शाही घरानों के लोग ही करते थे और उस वक्त पत्रों अथवा संदेशों को लाने-ले जाने का काम उनके विशेष संदेशवाहक या दूत अथवा कबूतर या अन्य पशु-पक्षी करते थे, जिन्हें बाकायदा इस काम के प्रशिक्षित किया जाता था लेकिन बाद में जब आम लोगों को भी इसकी जरूरत महसूस होने लगी तो तय किया गया कि पत्रों की आवाजाही के शुल्क का भुगतान या तो पत्र प्रेषक करेगा अथवा प्राप्तकर्ता से शुल्क लिया जाएगा लेकिन अकसर होने यह लगा कि प्रेषक पत्रों को अग्रिम भुगतान किए बिना ही भेज देता और प्राप्तकर्ता उसे लेने के बजाय वापस लौटा देता और तब प्रेषक भी शुल्क के भुगतान से बचने के लिए उसे लेने से इनकार कर देता।

10 जनवरी 1840 को हुआ डाक टिकट आविष्कार
इससे सरकार को अनावश्यक आर्थिक क्षति झेलनी पड़ती थी। सरकार को डाक व्यवस्था की खामियों की वजह से लगातार हो रहे आर्थिक नुकसान के मद्देनजर ब्रिटिश सरकार को प्रसिद्ध आर्थिक सलाहकार रोलेण्ड हिल ने सलाह दी कि वह डाक व्यवस्था में मौजूद दोषों अथवा खामियों को दूर करने के लिए इसमें कुछ अनिवार्य संशोधन करे और डाक शुल्क के अग्रिम भुगतान के रूप में डाक टिकट तथा शुल्क अंकित लिफाफे जारी करे ताकि इनके जरिये अग्रिम डाक शुल्क प्राप्त हो जाने पर सरकार को घाटा न झेलना पड़े। अंततः ब्रिटिश सरकार ने काफी जद्दोजहद के बाद उनका सुझाव स्वीकार कर लिया और तब तक चले आ रहे ठप्पा टिकटों के बजाय डाक टिकट जारी करने का फैसला कर लिया गया। इस प्रकार 10 जनवरी 1840 को डाक टिकट का आविष्कार हो गया, जो एक पैनी मूल्य का था लेकिन इसको विधिवत 06 मई 1840 को ही जारी किया गया। इस तरह यह विश्व का पहला डाक टिकट बन गया।

डाक टिकटों की श्रृंखला
आधा औंस वजन तक के पत्रों के लिए डाक टिकट का मूल्य एक पैनी और एक औंस वजन के लिए दो पैनी निर्धारित किया गया। इसके अलावा जो लोग निजी लिफाफों या रैपरों के बजाय डाक विभाग द्वारा मुद्रित सामग्री का ही प्रयोग करना चाहते थे, उनके लिए एक पैनी व दो पैनी मूल्य के लिफाफे जारी किए गए। इसके करीब तीन वर्ष बाद दुनिया के अन्य देशों में भी डाक टिकटों का प्रचलन शुरू हो गया। ब्राजील में 1843 में, अमेरिका में 1847 में, बेल्जियम में 1849 में और भारत में 1854 में पहली बार डाक टिकट जारी किए गए। आज लगभग हर देश में वहां के डाक टिकटों की एक बेहतरीन शृंखला मिल जाएगी। यही नहीं, कुछ लोग तो ऐसे भी मिलेंगे, जिन पर डाक टिकटों का संग्रह करने का ऐसा जुनून सवार रहता है कि उनके पास आरंभ से लेकर अब तक के अधिकांश डाक टिकटों की दुर्लभ शृंखला मिल जाएगी। डाक टिकटों के ऐसे शौकीनों की आज दुनिया भर में कोई कमी नहीं है। अमेरिका के जेम्स रूक्सिन के पास तो विश्व के प्रथम डाक टिकट से लेकर अब तक के लगभग तमाम दुर्लभ डाक टिकटों का संग्रह है और उनके संग्रह में 40 हजार से भी अधिक डाक टिकट शामिल हैं। डाक टिकट जितना पुराना और दुर्लभ होता है, उसकी कीमत भी उतनी ही बढ़ जाती है और डाक टिकटों का संग्रह करने के शौकीन कुछ व्यक्ति तो उसे हासिल करने के लिए मुंहमांगी कीमत देने को भी तैयार रहते हैं।

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