सूर्य की ओर बढ़े भारत के कदम, पांच साल तक रोजाना ‘Aditya-L1’ भेजेगा नई जानकारी

चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने सूर्य का अध्ययन करने के लिए अपना सौर मिशन आदित्य-एल1 सफलतापूर्वक लॉन्च किया है।

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation) ने देश के पहले सूर्य मिशन (Surya Mission) ‘आदित्य-एल1’ (Aditya-L1) को शनिवार को निर्धारित समय पर प्रक्षेपित कर दिया। इसे आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के श्रीहरिकोटा (Sriharikota) स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre) से पूर्वाह्न 11.50 बजे पीएसएलवी-सी57 (PSLV-C57) के जरिए प्रक्षेपित किया गया। इसरो ने प्रक्षेपण को सफल बताया है।

‘आदित्य-एल1’ सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल1’ (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अवलोकन करेगा। ‘आदित्य एल1’ सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष यान है। आदित्य-एल1 के 125 दिन में लगभग 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय कर लैग्रेंजियन बिंदु ‘एल1’ के आसपास हेलो कक्षा में स्थापित होने की उम्मीद है। यह 125 दिन तीन जनवरी 2024 को पूरे होंगे। अगर यह मिशन सफल रहा और आदित्य स्पेसक्राफ्ट लैग्रेंजियन प्वाइंट-1 पर पहुंच गया, तो नए साल में इसरो के नाम ये बड़ी उपलब्धि होगी।

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इस मिशन का मुख्य उद्देश्य सौर वातावरण में गतिशीलता, सूर्य के परिमंडल की गर्मी, सूर्य की सतह पर सौर भूकंप या कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), सूर्य के धधकने संबंधी गतिविधियों और उनकी विशेषताओं के अलावा पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष में मौसम संबंधी समस्याओं को समझना है।

सात पेलोड ले गया है आदित्य-एल1
‘आदित्य-एल1’ के साथ सात पेलोड हैं। इनमें से चार सूर्य के प्रकाश का निरीक्षण करेंगे। इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग में मिली कामयाबी के बाद इस मिशन का आगाज किया है। इसरो के मुताबिक आदित्य-एल1 सूर्य के एल-1 प्वांइट पर जा कर किरणों के साथ सूर्य की तस्वीरें लेगा। आदित्य-एल1 अपनी कक्षा में पहुंचने पर जांच के लिए हर दिन करीब 1440 तस्वीरें ग्राउंड स्टेशन पर भेजेगा।

क्या है एल-1
लैगरेंज प्वाइंट का नाम इतालवी-फ्रेंच गणितज्ञ जे. लुई लैगरेंज के नाम पर रखा गया है। इसे बोलचाल में एल-1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच प्वाइंट धरती और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित हो जाता है। इस जगह पर अगर किसी वस्तु को रखा जाता है तो वह आसानी से दोनों के बीच स्थिर रहता है और एनर्जी भी कम लगती है। पहला लैगरेंज प्वाइंट धरती और सूर्य के बीच 15 लाख किमी की दूरी पर स्थित है।

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