Rajasthan High Court: तलाक को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट ने दिया यह बड़ा फैसला

राजस्थान हाई कोर्ट की खण्डपीठ के न्यायाधीश अरूण भंसाली एवं योगेंन्द्र कुमार पुरोहित ने पारस्परिक तलाक की याचिका में छह माह की अवधि समाप्त होने के पूर्व ही विधिनुसार तलाक की डिक्री जारी करने के आदेश पारित किये है।

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Rajasthan High Court: राजस्थान हाई कोर्ट (Rajasthan High Court) की खण्डपीठ के न्यायाधीश अरूण भंसाली (Arun Bhansali) एवं योगेंन्द्र कुमार पुरोहित (Yogendra Kumar Purohit) ने पारस्परिक तलाक की याचिका में छह माह की अवधि समाप्त होने के पूर्व ही विधिनुसार तलाक की डिक्री जारी करने के आदेश पारित किये है। प्रार्थीगण चंदु एवं गजेन्द्र ने पारिवारिक न्यायालय संख्या-01 जोधपुर (Jodhpur) में पारस्परिक सहमति से तलाक के लिए एक याचिका पेश की। याचिका पेश करने के पश्चात प्रार्थीगण की ओर से एक प्रार्थना पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि उनके मध्य सुलह की कोई संभावना नहीं है इसलिए छह माह की शीतलता अवधि की बाध्यता को समाप्त करते हुए तलाक की डिक्री जारी की जावें। पारिवारिक न्यायालय ने प्रार्थीगण के प्रार्थना पत्र को इस आधार पर खारिज कर दिया कि अभी भी प्रार्थीगण के मध्य सुलह की संभावना है इसलिए उन्हें शांतिपूर्वक सोचने का अवसर दिया जाना आवश्यक है।

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छह माह अंदर डिक्री करें जारी
उक्त आदेश के विरूद्ध प्रार्थीनी चन्दू के अधिवक्ता हस्तीमल सारस्वत एवं जितेन्द्र बिश्नोई ने एक अपील हाई कोर्ट में प्रस्तुत कर निवेदन किया कि प्रार्थीगण का विवाह 23 नवम्बर 2010 को सम्पन्न हुआ था लेकिन वैचारिक मतभेद होने के कारण वे एक मार्च 2011 से अलग अलग निवास कर रहे है। उनके मध्य सुलह होने तथा भविष्य में उनके साथ साथ रहने की कोई संभावना नहीं है इसलिए छह माह की शिथलता अवधि की बाध्यता को समाप्त किया जाएं। अधिवक्ता सारस्वत ने सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के विभिन्न न्याय निर्णय प्रस्तुत करते हुए तर्क दिया कि हस्तगत प्रकरण इन न्याय निर्णयों के अंतर्गत आता है इसलिए विधि द्वारा निर्धारित छह माह की बाध्यता अवधि को समाप्त किया जाकर पारिवारिक न्यायालय को आदेश दिया जाएं कि वे प्रार्थीगण के मध्य सम्पन्न हुए विवाह को समाप्त करने हेतु विधिनुसार तलाक की डिक्री जारी करें। सुनवाई के पश्चात खण्डपीठ ने यह माना कि प्रार्थीगण के मध्य सुलह की कोई संभावना प्रतीत नहीं होती है तथा अपील के तथ्य न्याय निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धांतों के अंतर्गत आते है। खण्डपीठ ने अपील स्वीकार करते हुए उक्त आदेश पारित किया।

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