Aditya L-1 में देश के इन विज्ञान संस्थानों की भी रही अहम भूमिका

आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन है। अगले चार महीनों में विभिन्न कक्षा उत्थान प्रक्रियाओं और क्रूज चरण के माध्यम से, अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्‍थापित किया जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है।

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केंद्रीय विज्ञान और  प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह (Dr. Jitendra Singh) ने कहा है कि चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की सफल लैंडिंग के बाद आदित्य एल-1 (Aditya L-1) का सफल प्रक्षेपण ‘संपूर्ण विज्ञान और पूरे राष्ट्र’ के दृष्टिकोण का भी प्रमाण है, जिसे हमने अपनी विश्व संस्कृति में अपनाने की कोशिश की है।

इन विज्ञान संस्थानों की रही अहम भूमिका
उन्होंने कहा कि इस दृष्टि को अमली जामा पहनाने का श्रेय इसरो को जाता है और देश भर के विज्ञान संस्थानों (science institutions) ने इस दृष्टि को साकार करने में किसी न किसी रूप में- छोटे या बड़े रूप में- अपना योगदान देने के लिए आगे आए हैं। इनमें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (Indian Institute of Astrophysics), बेंगलुरु, नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरीज, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (Tata Institute of Fundamental Research), मुंबई, एनजीआरआई नागपुर, आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी मद्रास, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मुंबई (IIT Mumbai) शामिल हैं।

पृथ्वी से 15 लाख किमी दूर स्थापित होगा अंतरिक्ष यान
आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन है। अगले चार महीनों में विभिन्न कक्षा उत्थान प्रक्रियाओं और क्रूज चरण के माध्यम से, अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्‍थापित किया जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है।

अंतरिक्ष मौसम की होगी जानकारी
एल1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में एक उपग्रह को स्थापित करने का एक बड़ा फायदा यह है कि वह बिना किसी प्रच्छादन/ग्रहण के लगातार सूर्य को देखता रहता है। यह वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम (space weather) पर इसके प्रभाव को देखने का एक बड़ा लाभ प्रदान करेगा। अंतरिक्ष यान में विद्युत चुम्बकीय और कण तथा चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टरों का उपयोग करके फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड हैं।

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