क्रांति का राजकुमार: वीर सावरकर – सिंहावलोकन एक स्वातंत्र्यवीर का

भले ही सावरकर ने परिस्थिति अनुसार बन्दूक उठाई हो, लेकिन हृदय से वे साहित्यकार ही थे। अपनी वसीयत में भी उन्होंने स्वयं का परिचय 'साहित्यकार' के रूप में ही दिया था। उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में प्रवीणता हासिल की थी।

407

लोकसभा, दूरदर्शन, महापौर जैसे अनेक शब्द हिंदी को देने वाले साहित्यकार स्वातंत्र्यवीर सावरकर (Swatantraveer Savarkar) पर हिंदी साहित्य में अब तक एक भी उपन्यास नहीं लिखा गया, यह दुर्भाग्य की बात है। डॉ. के.सी. अजय कुमार (Dr. K.C. Ajay Kumar) ने हिंदी में पहली बार वीर सावरकर के जीवन पर “क्रांति का राजकुमार” शीर्षक से उपन्यास लिखा है । जल्द ही यह उपन्यास अंग्रेजी तथा मलयालम में भी उपलब्ध होगा। इस उपन्यास की प्रस्तावना लिखने का सौभाग्य मुझे मिला। मैं वीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर (Ranjit Savarkar) और उपन्यास के लेखक अजय कुमार का आभारी हूं।

मेरी लिखी प्रस्तावना यहां प्रस्तुत है:
क्रांतिकारियों के युवराज,
स्वाधीनता के ज्योतिर्धर का
आओ मित्रों, स्मरण करें
स्वातंत्र्यवीर सावरकर का ।
पिछले कुछ वर्षों में स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, जिनमें से अधिकांश उनके ऐतिहासिक कार्यों पर आधारित हैं। लेकिन मेरी जानकारी के अनुसार, हिंदी में पहली बार वीर सावरकर के संपूर्ण जीवन को आलेखित करने वाला उपन्यास डॉ. के. सी. अजय कुमार द्वारा लिखा गया है। यह विशेष रूप से सराहनीय है। क्योंकि यह उपन्यास महाराष्ट्र से नहीं, हिंदी हार्टलैंड से नहीं, बल्कि ‘मलयज शीतलाम’ भूमि से सुगंधित हवा की लहर की तरह समग्र देशभर में प्रस्तुत होने जा रहा है।

वीर सावरकर पर लिखीं अन्य पुस्तकें
वीर सावरकर पर मराठी में विपुल लेखन हुआ है। कई उपन्यासकारों ने उन पर लेख लिखे हैं, लेकिन सावरकर पर उपन्यास कम ही लिखे गए। उनकी मृत्यु के पश्चात् भा. द. खेर और शैलजा राजे द्वारा लिखा गया उपन्यास ‘यज्ञ’ बहुत ही चर्चित रहा। उसका हिंदी अनुवाद भी किया गया। इसके उपरान्त भी मृणालिनी जोशी (अवध्य मी अजिंक्य मी), कृ. भा. परांजपे (शतजन्म शोधिताना), रवींद्र भट (सागरा प्राण तळमळला), वि. स. वाळिंबे (सावरकर) जैसे साहित्यकारों ने सावरकर पर मराठी में उपन्यास लिखे हैं। गुजराती भाषा में डॉ. शरद ठाकर द्वारा लिखित बेस्ट सेलर ‘सिंह पुरुष’ ने गुजराती साहित्य में अनूठा स्थान प्राप्त कर लिया है, पूरे विश्व भर में फैले गुजराती लोगों ने इस उपन्यास को सर आँखों पर बिठाया है।

‘शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे, शास्त्र चर्चा प्रवर्तते’
द्वितीय विश्वयुद्ध की कगार पर खड़े भारतीयों को साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में सावरकर ने कहा था, ‘लेखकों! क़लम तोड़ो, बन्दूक हाथ में उठाओ’ क्योंकि ‘शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे, शास्त्र चर्चा प्रवर्तते’, शस्त्र से संरक्षित राष्ट्र में ही शास्त्र चर्चा संभव हैं। भले ही सावरकर ने परिस्थिति अनुसार बन्दूक उठाई हो, लेकिन हृदय से वे साहित्यकार ही थे। अपनी वसीयत में भी उन्होंने स्वयं का परिचय ‘साहित्यकार’ के रूप में ही दिया था। उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में प्रवीणता हासिल की थी। काव्य, महाकाव्य, पत्रकारिता, निबंध, नाटक, लघुकथा, आत्मकथा, इतिहास या फिर उपन्यास, कोई भी क्षेत्र उनसे अछूता नहीं रहा। ‘मोपला: अर्थात मुझे उससे क्या?’ तथा ‘काला पानी’ उनके प्रसिद्ध उपन्यास रहे ।

यह भी पढ़ें – मनीष सिसोदिया को सर्वोच्च न्यायालय से नहीं मिली राहत, अगले महीने होगी सुनवाई

बहुआयामी योगदान
वीर सावरकर (1883-1966) का जीवन भी एक उपन्यास की तरह घटनाओं से भरा हुआ है। बीसवीं सदी के प्रारंभ से स्वाधीनता तक अनेक घटनाओं के वे केवल साक्षी ही नहीं, बल्कि सहभागी भी रहे। देश की अखंडता के लिए लड़े गए संघर्ष के भी वे पुरोधा रहे। उनका कार्यक्षेत्र भी भगूर, पुणे, लंदन, अंडमान, रत्नागिरी, मुंबई तक फैला हुआ था। केवल स्वतंत्रता संग्राम ही नहीं, अपितु अस्पृश्यता, भाषा शुद्धता, हिन्दू राष्ट्रवाद, सैन्यीकरण, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अनेक मुद्दों पर उनका मौलिक योगदान रहा। इन सभी बातों को प्रस्तुत उपन्यास में समाहित करने का प्रयास किया गया है।

सावरकर पर पहला हिंदी उपन्यास
विदेशी वस्त्रों की पहली होली जलानेवाले नेता, प्रकाशन से पूर्व प्रतिबंधित होनेवाले पहली पुस्तक के लेखक, देशभक्ति की वजह से डिग्री से वंचित होने वाले पहले छात्र…. जैसे अनेक इतिहास में ‘सर्व प्रथम’ के कीर्तिमान वीर सावरकर के नाम पर है। डॉ. के.सी. अजय कुमार स्वयं एक पुरस्कृत, सिद्धहस्त लेखक और अनुवादक हैं, उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और मलयालम में कुल 40 से भी अधिक पुस्तकों का लेखन तथा अनुवाद किया है। अजयकुमार द्वारा लिखित उपन्यास ‘क्रांति का राजकुमार’ ने अपने प्रकाशन से पहले ही ‘सावरकर पर पहला हिंदी उपन्यास’ होने का कीर्तिमान स्थापित कर दिया है, मेरी हार्दिक इच्छा है कि यह पुस्तक ऐसे अनेक कीर्तिमान स्थापित करे ।

चिरायु पंडित
(सह लेखक – वीर सावरकर: द मेन हु कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टीशन)

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.