जम्मू कश्मीर के विलय को 73 साल हो गए हैं। अर्टिकल 370 और 35-ए हटने के बाद परिस्थितियां तेजी से बदलीं। लेकिन फारुक अब्दुल्ला उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की रिहाई के बाद इन नेताओं की बयानबाजियों ने फिर स्थिति के बिगड़ने की राह खोल दी है। अब जानिये पांच पॉइंट में कश्मीर के भारच में विलय और उस सहमति को जिसने अशांति के नासूर को जन्म दे दिया।
कश्मीर के नेताओं की आवाजों से अलगाववाद की गंध फिर आने लगी है। अमन की राह पर लौटी घाटी क्या फिर इससे आतंक के आगोश में चली जाएगी ये सबसे बड़ा प्रश्न है। वहीं दूसरी तरफ कश्मीरी पंडितों की घर वापसी पर ये आवाजें सन्न हैं। उनके मुंह से कभी कश्मीरी पंडितों पर हुए अन्याय और उनकी घर वापसी पर एक शब्द नहीं फूटते। आखिर क्या है कश्मीर के भारत में विलय का समझौता जिसने इस राज्य को अशांति की राह में धकेल दिया आईये जानते हैं।
1. देश जब स्वतंत्र हुआ तब देश की अलग-अलग रियासतों के विलय के लिए एक विलय पत्र बना था। लेकिन कश्मीर के महाराजा हरि सिंह स्वतंत्र कश्मीर के सपने में जी रहे थे। डोमिनिक लेपियर की किताब “फ्रीडम एट मिडनाइट” के अनुसार 12 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के उप-प्रधानमंत्री ने दिल्ली में कहा कि हम भारत और पाकिस्तान दोनों से समान मित्रता रखना चाहते हैं। महाराज के मन में कश्मीर को स्विट्जरलैंड के रूप में विकसित करने की बात थी।
2. कश्मीर को लेकर उप-प्रधानमंत्री की बयानबाजियों के सिर्फ दो सप्ताह बाद ही 21-22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान के हथियारबंद कबायलियों ने उत्तर की सीमा से कश्मीर पर हमला कर दिया। इन हमलावरों में अधिकतर पठान थे। इन कबायलियों ने बारामुला में बड़ी उत्पात, लूट-पाट, महिलाओं से बलात्कार किया। और ये तेजी से श्रीनगर की तरफ बढ़ रहे थे।
3. इस हमले में अपनी हार को समक्ष देखते हुए महाराजा हरि सिंह के सारे सपने टूट गए। उन्होंने भारत सरकार से मदद मांगी। अगले दिन दिल्ली में सुरक्षा समिति की बैठक हुई। वीपी मेनन को श्रीनगर भेजा गया। जहां उन्होंने महाराजा से भेंट करके उन्हें जम्मू जाने की सलाह दी। इस बीच माउंटबेटन और नेहरू के बीच कबायलियों के हमले को नाकाम करने के लिए मंत्रणा चल रही थी। माउंटबेटन ने नेहरू को साफ कह दिया कि बगैर विलय पत्र पर हस्ताक्षर के वे भारतीय सैनिकों को कश्मीर नहीं भेजेंगे। इसके बाद कश्मीर के महाराजा और भारते के बीच विलय पत्र पर हस्ताक्षर हुआ।
4. विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद भारतीय सेना कश्मीर पहुंचना शुरू हो गई। इस बीच कबायली श्रीनगर के पास तक पहुंच गए थे। बारामुला में बड़े स्तर पर लूटपाट, ज्यादतियां करते काबयली काफी समय तक वहीं रह गए जिसके कारण उनके श्रीनगर पहुंचने की रफ्तार कम हो गई थी।
5. भारतीय सेना ने हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही कबायलियों के खिलाप ऑपरेशन शुरू कर दिया। कबायलियों को बहुत कम समय में ही सेना ने उरी तक खदेड़ दिया। इस बीच भारत और पाकिस्तान के बीच भी तनातनी बढ़ गई थी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली संयुक्त सुरक्षा परिषद की बैठक में हिस्सा लेने भारत आए। जवाहरलाल नेहरू से बातचीत में दोनों नेता इस बात पर सहमत हो गए कि पाकिस्तान कबालियों को लड़ाई बंद करके लौटने का आदेश देगा। इस बीच भारत भी अपनी सेना धीरे-धीरे हटा लेगा और संयुक्त राष्ट्र को जनमत संग्रह के लिए कहा जाएगा।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बातचीत में जो सहमति बनीं उसके अनुसार जनमत संग्रह की बात पर राजी होना भारत की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। जिसकी टीस आज तक भारत को चुभती रही।