आक्रांताओं की छाया में इतिहास!

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भारत के गौरवशाली इतिहास से इस धरती के सपूत ही अछूते रह गए! इस भूमि के लिए भले ही इन भारत वीरों ने अपना रक्त बहाया हो लेकिन उनकी इन वीरता को उनके ही देश की किताबें क्यों भूल गईं। क्यों वर्तमान में पढ़ाई जा रही किताबों से गौरवशाली इतिहास मिटा दिया गया? ऐसे कई प्रश्न हैं जो भारत भूमि की पीढ़ियाँ पूछ रही हैं कि देश तो आक्रांताओं से मुक्त हो गया लेकिन क्या भारतीय इतिहास आक्रांताओं के प्रभाव से मु्क्त है?
इन प्रश्नों के उत्तर इतने सीधे नहीं हैं जितने कि लगते हैं। इसका उत्तर ढूंढ़ने के पहले एक टीवी परिचर्चा का जिक्र करते हैं। इस परिचर्चा में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने एक मुद्दे पर उत्तर देते हुए कहा कि वर्तमान में किसी से भी प्रश्न कीजिये कि औरंगजेब का पिता कौन था? तो अधिकांश लोग बता देंगे कि औरंगजेब का पिता शाहजहाँ उसका पिता जहाँगीर उसका पिता अकबर उसका पिता हुमायूँ और उसका पिता बाबर था लेकिन यदि उसी से ये पूछें कि सम्राट हर्षवर्धन और सम्राट अशोक के पिता का नाम क्या था? तो दावा है कि 10 में से 9 लोग उत्तर नहीं दे पाएँगे। उन्होंने आगे बताया कि यदि ये पूछा जाए कि भगवान राम के पिता का नाम तो राजा दशरथ बता देंगे लेकिन उनके पिता का नाम 100 में से 99 लोग नहीं बता पाएँगे। वे कहते हैं अलेक्जेंडर ऑफ इंडिया किसे कहते हैं ये किसी भी किताब में नहीं पढ़ाया गया जबकि इस उपाधि से कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तपीद को पुकारा जाता था। इस राजा ने कैस्पियन सी तक के भूभाग को जीत लिया था। अब इस चर्चा के उल्लेख का अर्थ क्या है? तो
इस चर्चा को मात्र आरोप-प्रत्यारोप की सीमा तक ही नहीं देखना चाहिए। बल्कि इस चर्चा ने एक बार फिर इस प्रश्न को खड़ा कर दिया कि आखिर क्यों भारत के वैभवशाली इतिहास में इस माटी के उन सपूतों को स्थान नहीं दिया गया जिन्होंने इसकी सीमा को विश्व के बड़े भूभाग तक विस्तारित कर दिया था। तो प्रश्न फिर वही है कि क्या ये इस देश के इतिहास पर अक्रमण है?
आर्य सभ्यता से छलावा
इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ना हमें और आपको ही है। ये मुक्त वैचारिक क्षमता वाले इतिहासकारों के लिए भी अध्ययन का विषय है। इसके लिए जिस मिथ्या को किताबों में पढ़ाया जा रहा है उसे समझना होगा। हमारे इतिहास की शुरुआत में ही यह बताया जाता है कि भारत में रहनेवाले आर्य यहाँ के मूल निवासी नहीं हैं। लेकिन कहाँ से आए हैं इसका उत्तर उन इतिहासकारों के पास नहीं है। कोई सेंट्रल एशिया कहता है, तो कोई साइबेरिया, तो कोई मंगोलिया, तो कोई ट्रांस कोकेशिया, तो कुछ ने आर्यों को स्कैंडेनेविया का बताया। मतलब यह कि किसी के पास आर्यों का सबूत नहीं है, फिर भी साइबेरिया से लेकर स्कैंडेनेविया तक, हर कोई अपने-अपने हिसाब से आर्यों का पता बता देता है।
वैदिक और द्रविड़ थ्योरी का उद्भव
सरकारी किताबों में आर्यों के आगमन को आर्यन इन्वेजन थ्योरी कहा जाता है। इन किताबों में आर्यों को घुमंतू या कबीलाई बताया जाता है। यह ऐसे खानाबदोश लोग थे जिनके पास वेद थे, रथ थे, खुद की भाषा थी और उस भाषा की लिपि भी थी। मतलब यह कि वे पढ़े-लिखे, सभ्य और सुसंस्कृत खानाबदोश लोग थे। यह दुनिया का सबसे अनोखा उदाहरण है। जानकारों के अनुसार यह थ्योरी मैक्स मूलर ने जानबूझकर गढ़ी थी। मैक्स मूलर ने ही भारत में आर्यन इन्वेजन थ्योरी को लागू करने का काम किया था, लेकिन इस थ्योरी को सबसे बड़ी चुनौती 1921 में मिली। अचानक से सिंधु नदी के किनारे एक सभ्यता के निशान मिल गए। कोई एक जगह होती, तो और बात थी। यहाँ कई सारी जगहों पर सभ्यता के निशान मिलने लगे। इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाने लगा। अब सवाल यह पैदा हो गया कि यदि इस सभ्यता को हिन्दु या आर्य सभ्यता मान भी लिया गया तो फिर आर्यन इन्वेजन थ्योरी का क्या होगा? ऐसे में फिर धीरे-धीरे यह प्रचारित किया जाने लगा कि सिंधु तट वासी लोग द्रविड़ थे और वैदिक लोग आर्य।
जब अंग्रेजों और उनके अनुसरणकर्ताओं ने यह देखा कि सिंधु घाटी की सभ्यता तो विश्वस्तरीय शहरी सभ्यता थी। इस सभ्यता के पास टाउन-प्लानिंग का ज्ञान कहाँ से आया और उन्होंने स्वीमिंग पूल बनाने की तकनीक कैसे सीखी? वह भी ऐसे समय जबकि ग्रीस, रोम और एथेंस का नामोनिशान भी नहीं था।..तो उन्होंने एक नया झूठ प्रचारित किया। वह यह कि सिंधु सभ्यता और वैदिक सभ्यता दोनों अलग अलग सभ्यता है। आर्य तो बाहर से ही आए थे और उनका काल सिंधु सभ्यता के बाद का काल है। इस थ्योरी को हमारे यहाँ के इतिहासकारों ने आगे प्रचारित किया।
किंतु, तो फिर आर्य का अर्थ क्या है? कौन लोग थे आर्य?
आर्य का अर्थ श्रेष्ठ होता है। आर्य किसी जाति का नहीं बल्कि एक विशेष संबोधन था जिसमें श्‍वेत, पीत, रक्त, श्याम और अश्‍वेत रंग के सभी लोग शामिल थे। नई खोज के अनुसार आर्य आक्रमण नाम की चीज न तो भारतीय इतिहास के किसी कालखण्ड में घटित हुई और ना ही आर्य तथा द्रविड़ नामक दो पृथक मानव नस्लों का अस्तित्व ही कभी धरती पर रहा।
फिनलैण्ड के तारतू विश्वविद्यालय, एस्टोनिया में भारतीयों के डीनएनए गुणसूत्र पर आधारित एक अनुसंधान हुआ। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. कीवीसील्ड के निर्देशन में एस्टोनिया स्थित एस्टोनियन बायोसेंटर, तारतू विश्वविद्यालय के शोध छात्र ज्ञानेश्वर चौबे ने अपने अनुसंधान में यह सिद्ध किया है कि सारे भारतवासी जीन अर्थात गुणसूत्रों के आधार पर एक ही पूर्वजों की संतानें हैं, आर्य और द्रविड़ का कोई भेद गुणसूत्रों के आधार पर नहीं मिलता है और तो और जो अनुवांशिक गुणसूत्र भारतवासियों में पाए जाते हैं वे डीएनए गुणसूत्र दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं पाए गए। शोधकार्य में वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका और नेपाल की जनसंख्या में विद्यमान लगभग सभी जातियों, उपजातियों, जनजातियों के लगभग 13,000 नमूनों के परीक्षण-परिणामों का इस्तेमाल किया गया। इनके नमूनों के परीक्षण से प्राप्त परिणामों की तुलना मध्य एशिया, यूरोप और चीन-जापान आदि देशों में रहने वाली मानव नस्लों के गुणसूत्रों से की गई। इस तुलना में पाया गया कि सभी भारतीय चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाले हैं, 99 प्रतिशत समान पूर्वजों की संतानें हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत में आर्य और द्रविड़ विवाद व्यर्थ है।
इसी तरह का एक अनुसंधान भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी किया था। उनके इस साझे आनुवांशिक अध्ययन अनुसार उत्तर और दक्षिण भारतीयों के बीच बताई जाने वाली आर्य-अनार्य असमानता अब नए शोध के अनुसार कोई सच्ची आनुवांशिक असमानता नहीं है। अमेरिका में हार्वर्ड के विशेषज्ञों और भारत के विश्लेषकों ने भारत की प्राचीन जनसंख्या के जीनों के अध्ययन के बाद पाया कि सभी भारतीयों के बीच एक अनुवांशिक संबंध है। इस शोध से जुड़े सीसीएमबी अर्थात सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (कोशिका और आणविक जीव विज्ञान केंद्र) के पूर्व निदेशक और इस अध्ययन के सह-लेखक लालजी सिंह ने बताया था कि शोध के नतीजे के बाद इतिहास को दोबारा लिखने की जरूरत पड़ सकती है। उत्तर और दक्षिण भारतीयों के बीच कोई अंतर नहीं रहा है।
सीसीएमबी के वरिष्ठ विश्लेषक कुमारसमय थंगरंजन का मानना है कि आर्य और द्रविड़ सिद्धांतों के पीछे कोई सच्चाई नहीं है। इस शोध में भारत के 13 राज्यों के 25 विभिन्न जाति-समूहों से लिए गए 132 व्यक्तियों के जीनों में मिले 5,00,000 आनुवांशिक मार्करों का विश्लेषण किया गया। इन सभी लोगों को पारंपरिक रूप से छह अलग-अलग भाषा-परिवार, ऊंची-नीची जाति और आदिवासी समूहों से लिया गया था। उनके बीच साझे आनुवांशिक संबंधों से साबित होता है कि भारतीय समाज की संरचना में जातियां अपने पहले के कबीलों जैसे समुदायों से बनी थीं। उस दौरान जातियों की उत्पत्ति जनजातियों और आदिवासी समूहों से हुई थी। जातियों और कबीलों अथवा आदिवासियों के बीच अंतर नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके बीच के जीनों की समानता यह बताती है कि दोनों अलग नहीं थे। इस शोध में सीसीएमबी सहित हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ तथा एमआईटी के विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस अध्ययन के अनुसार वर्तमान भारतीय जनसंख्या असल में प्राचीनकालीन उत्तरी और दक्षिणी भारत का मिश्रण है। इस मिश्रण में उत्तर भारतीय पूर्वजों (एन्सेंस्ट्रल नॉर्थ इंडियन) और दक्षिण भारतीय पूर्वजों (एन्सेंस्ट्रल साउथ इंडियन) का योगदान रहा है। पहली बस्तियाँ आज से 65,000 साल पहले अंडमान द्वीप और दक्षिण भारत में लगभग एक ही समय बसी थीं। बाद में 40,000 साल पहले प्राचीन उत्तर भारतीयों के आने से उनकी जनसंख्या बढ़ गई। कालान्तर में प्राचीन उत्तर और दक्षिण भारतीयों के आपस में मेल से एक मिश्रित आबादी बनी। आनुवांशिक दृष्टि से वर्तमान भारतीय इसी आबादी के वंशज हैं। हालांकि इस थ्योरी के अनुसार बताए गए उत्तर के पूर्वज और दक्षिण के पूर्वजों का प्राचीन इतिहास में अलग-अलग उल्लेख नहीं मिलता। ये सभी अनुवांशिक रूप से एक ही रहे हैं।
इतिहास की किताबों में इन अध्ययनों को नजरअंदाज किया गया और साथ-साथ इतिहास की किताबों में इस बात की उपेक्षा की गई कि भारत वर्ष अफगानिस्तान के हिन्दुकुश पर्वतमाला से अरुणाचल की पर्वत माला और कश्मीर की हिमालय की चोटियों से कन्याकुमारी तक फैला था। दूसरी ओर यह हिन्दूकुश से अरब सागर तक और अरुणाचल से बर्मा तक फैला था। इसके अंतर्गत वर्तमान के अफगानिस्तान बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, बर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि देश आते थे। इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं। इस भरत खंड में कुरु, पांचाल, पोण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर, अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण आदि रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए थे।
तो क्या? वर्तमान इतिहास केवल मुगल आक्रांताओं और अंग्रेजों के राज का इतिहास है? जबकि इसके अलावा भी समृद्ध भारत का इतिहास रहा है। जिसमें 16 चक्रवर्ती राजा हुए हैं इसके अलावा छोटे राजाओं की भी बड़ी संख्या रही है। लेकिन जिन किताबों को पढ़ाया जा रहा है उन किताबों में सम्राट प्रियव्रत, मनु, राम, पुरुवंश के दुष्यंत, सम्राट युधिष्ठिर, सम्राट अशोक, दाराशिकोव, सम्राट हर्षवर्धन, सातवहन, चोल, चेरा, चालुक्य, पल्लव, राष्ट्रकूट, काकातिया और होसाला राजवंश का या तो उल्लेख ही नहीं है या फिर बहुत थोड़ा सा स्थान देकर समेट दिया गया है।

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