भीमा कोरेगांव हिंसाः वंचितों का नाम, देश द्रोह का काम!

एनआईए के प्रवक्ता सोनिया नारंग ने दावा किया है कि भीमा कोरेगांव हिंसा एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा थी। उन्होंने कहा कि जांचकर्ताओं के पास विश्वसनीय मौखिक,दस्तावेज के रुप में और ठोस सबूत हैं। इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर इनके खिलाफ 10,000 पेज की चार्जशीट तैयार की गई है

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भीमा कोरेगांव मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 8 आरोपियों के खिलाफ मुंबई की विशेष अदालत में चार्जशीट दायर कर दी है। आरोपियों में गौतम नवलखा, हनी बाबू ,आनंद तेलतुंबड़े, सागर गोरखे, रमेश गाइचोर, ज्योति जगताप, मिलिंद तेलतुंबड़े और फादर स्टेन स्वामी शामिल हैं। इन आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के साथ ही भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।

एनआईए का दावा
एनआईए की प्रवक्ता सोनिया नारंग ने दावा किया है कि भीमा कोरेगांव हिंसा एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा थी। उन्होंने कहा कि जांचकर्ताओं के पास विश्वसनीय मौखिक, दस्तावेज के रुप में और ठोस सबूत हैं। इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर इनके खिलाफ 10,000 पेज की चार्जशीट तैयार की गई है। हम आपको बता दें कि एनआईए ने गृह मंत्रालय के आदेश पर 24 जनवरी 2020 को यह मामला अपने हाथ में लिया है।

विध्वंस के मोहरे थे देसी खोटे सिक्के
चार्जशीट में आरोप लगाया गया है कि आनंद तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा, बाबू हनी, गोरखे, गाइचोर, जगताप और स्वामी ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर प्रतिबंधित भाकपा ( माओवादी) की विचारधारा को आगे बढ़ाया और सरकार के प्रति असंतोष व असहमति पैदा करते हुए विभिन्न समूहों के बीच धर्म, जाति और समुदाय को लेकर दुश्मनी पैदा की। वास्तव में यह एक तरह से आतंकवाद ही है, जिनका मकसद मजबूर और वंचित समाज के लोगों को भड़काकर देश में अशांति और अराजकता फैलाना है। जाहिर तौर पर यह देश द्रोह का मामला है और अब तक जांच एजेंसी को इनके पास से जो साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, उससे इनके मंसूबे स्पष्ट हो गए हैं।

हनी बाबू पर क्या है आरोप?
एनआईए ने चार्जशीट में यह दावा किया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू नक्सली क्षेत्रों में विदेशी मीडिया की यात्राओं के आयोजन में मदद करते थे। उन्होंने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में प्रतिबंधित संगठन रिवोल्यूशन डेमोक्रेटिक फ्रंट के कार्यों की जिम्मेदारी ली थी। बाबू प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन, मणिपुर की कुंगलपाक कम्यूनिस्ट पार्टी ( केसीपी) के संपर्क में थे। वे दोषी अभियुक्त जीएन साईबा सीपीआई ( माओवादी) के निर्देशों पर काम कर रहे थे। बाबू पर प्रतिबंधित पार्टी के लिए धन जुटाने का भी आरोप है। एनआईए ने इसी 28 जुलाई को बाबू को नोएडा के उनके घर से गिरफ्तार किया है।

पादरी स्टेन स्वामी पर आरोप
शुक्रवार को रांची से गिरफ्तार पादरी स्टेन स्वामी को लेकर एजेंसी का दावा है कि वह सीपीआई (माओवादी) कैडर हैं और वे उनकी गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं। आरोप पत्र में कहा गया है कि स्वामी अन्य सीपीआई (माओवादी) कैडरों के संपर्क में थे और उन्होंने अपनी गतिविधियों के लिए माओवादी कैडरों से धन भी प्राप्त किया था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने आरोप लगाया है कि वे सीपीआई( माओवादी) के फ्रंटल संगठन पीपीएससी के संयोजक हैं। एजेंसी का दावा है कि उनके पास से भाकपा( माओवादी) की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए संचार से संबंधित दस्तावेज और प्रचार सामग्रियों को जब्त किया गया है।

गौतम नवलखा पर आरोप
आरोप पत्र में भीमा कोरेगांव मामले में गौतम नवलखा की भूमिका और भागीदारी का पर्दाफाश करते हुए एनआईए ने दावा किया है कि नवलखा और सीपीआई( माओवादी) कैडरों के बीच बातचीत हुई थी और उनको सरकार के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का काम सौंपा गया था। आरोप पत्र के मुताबिक उन्हें सीपीआई की छापेमार गतिविधियों के लिए कैडर भर्ती करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। एजेंसी का दावा है कि आईएसआई के साथ भी उनके संबंध उजागर हुए हैं।

कौन हैं आनंद तेलतुंबड़े?
आनंद तेलतुंबड़े एक स्कॉलर हैं। उन्होंने 30 से ज्यादा किताबें लिखी हैं। वे गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं। इसके साथ ही वे एक मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हैं। दलितों और वंचितों के लिए वे संघर्ष करते रहे हैं। उनका जन्म महाराष्ट्र के यवतमाल में हुआ था। वे खुद भी दलित परिवार से हैं। उन्होंने 14 अप्रैल को आत्मसमर्पण किया था। उसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

आनंद तेलतुंबड़े पर आरोप
आरोप पत्र में कहा गया है कि आनंद तेलतुंबड़े जो गोवा में रहते हैं, वो भीमा कोरेगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान के मौके पर 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवाड़ा में मौजूद थे। वहां एल्गार परिषद के कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। उन्होंने अन्य माओवादी कैडर्स के साथ मिलकर फंड जुटाने से लेकर गतिविधियों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई है।

मिलिंद तेलतुंबड़े पर आरोप
दायर आरोप पत्र में दावा किया गया है कि फरार आरोपी मिलिंद तेलतुंबडे ने अन्य आरोपियों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए शिविर का आयोजन किया था। ।

इनकी भी हुई है गिरफ्तारी
एल्गार परिषद केस में सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, वरवर राव, वरनॉन गोंजाल्विस, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज जैसे बुद्धिजीवी और समाजिक कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया है।

आरोपियों ने किया है आरोप का खंडन
सभी आरोपियों ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों का खंडन किया है। उनका कहना है कि उनके खिलाफ कार्रवाई देश में असंतोष की उठ रही आवाज को दबाने के लिए की गई है। इन तथाकथित बुद्धिजीवीयों की गिरफ्तारी की कई सामाजाकि संगठनों ने भीआलोचना की है। शुक्रवार को रांची से तड़के गिरफ्तार किए गए फादर स्टैन स्वामी ने दावा किया है कि वे कभी भी भीमा-कोरेगांव नहीं गए और उनकी किसी भी साजिश में कोई भूमिका नहीं है

क्यों भड़की थी भीमा कोरेगांव हिंसा?
पुणे के पास भीमा कोरेगांव में एक युद्ध स्मारक के पास एख जनवरी 2018 को हिंसा भड़क गई थी। इस हिंसा में भीड़ ने कई वाहनों और दुकानों में आग लगा दी थाी और तोड़फोड़ की थी। इस दौरान एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी। इस हिंसा में राज्य को 13 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। इसमें दलितों को एक करोड़ से ज्यादा और मुस्लिम समुदाय को 85 लाख का नुकसान हुआ था। इसके एक दिन पहले पुणे शहर में एल्गार परिषद के सम्मेलन के दौरान कथित रुप से भड़काऊ भाषण दिए गए थे। आरोप है कि सम्मेलन में भड़काऊ भाषण देने से ही हिंसा की आग की फैली थी।

दलितों के लिए क्यों है महत्वपूर्ण?
भीमा-कोरेगांव का युद्ध एक जनवरी 1818 को लड़ा गया था। इस लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा को हराया था। बताया जाता है कि कंपनी की सेना में ज्यादातर दलित समुदाय के सैनिक थे। इसलिए दलित समुदाय के लोग हर साल इस जीत का जश्न मनाते हैं।

अर्बन नक्सल का खतरा
इन बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी के बाद से अर्बन नक्सल का मुद्दा गर्मा गया है और देश में इसकी चर्चा जोरों पर है। वास्तव में अर्बन नक्सलवाद माओवादियों की एक स्ट्रैटजी होती है, जिसमें शहरों में लीडरशिप तलाशने, भीड़ जुटाने, संगठन बनाने और लोगों को एकजुट कर उन्हें तमाम तरह के सामान उपलब्ध कराने और प्रशिक्षण देने का काम किया जाता है। इस बारे में सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि माओवादी शहरों में अपना नेतृ्त्व तलाश रहे हैं। इस वजह से ज्यादातर माओवादी नेता उच्च शिक्षित होते हैं। वास्तव में देखा जाए तो यह देश का आंतरिक आतंकवाद ही है, जिनका एकमात्र मकसद वंचितों को भड़काकर देश में आतंक और अशांति फैलाना है।

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