Veer Savarkar: राम मंदिर का निर्माण सावरकर के जागृत हिंदुओं के वीरतापूर्ण इतिहास का ही भाग – पद्मश्री दादा इदाते

26 फरवरी को वीर सावरकर के आत्मार्पण दिवस के अवसर पर हिंदी फिल्म 'वीर सावरकर' का आधुनिक संस्करण रिलीज किया गया। इस समय मंच पर सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान के सचिव रवींद्र माधव साठे और वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर मौजूद थे।

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Veer Savarkar ने न केवल हिंदुत्व के विचारों का प्रचार किया, बल्कि अपनी पुस्तक ‘सिक्स गोल्डन लीव्स’ में कहा कि ‘हिंदुओं का इतिहास हार का नहीं है’। इसके बाद इसके दुनियाभर में जिक्क होने लगे। ऐसा गौरवोद्गार व्यक्त करते हुए सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष पद्मश्री दादा इदाते ने कहा, पहला आधुनिक संदर्भ अयोध्या में राम मंदिर का पुनर्निर्माण है।

26 फरवरी को वीर सावरकर के आत्मार्पण दिवस के अवसर पर हिंदी फिल्म ‘वीर सावरकर’ का आधुनिक संस्करण रिलीज किया गया। इस कार्यक्रम में दादा इदाते बोल रहे थे। मंच पर सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान के सचिव रवींद्र माधव साठे और वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर मौजूद थे।

सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान द्वारा निर्मित और अनुभवी संगीतकार स्वर्गीय सुधीर फड़के के प्रयासों से निर्मित ‘वीर सावरकर’ को एचडी 4K की आधुनिक तकनीक से तैयार किया गया है। साथ ही समय के अनुसार इसकी अवधि भी 3 घंटे 10 मिनट से घटाकर 1 घंटा 50 मिनट कर दी गई है। इस नए संस्करण का शुभारंभ गणमान्य व्यक्तियों द्वारा पोस्टर का अनावरण करके किया गया।

यह कार्यक्रम ‘सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान’ और ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक’ की ओर से स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक में आयोजित किया गया था। इस फिल्म में इस बार सावरकर का किरदार अभिनेता शैलेन्द्र गौड़ ने निभाया है। गणमान्य व्यक्तियों द्वारा उन्हें स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। युवा गायक और अभिनेता रोहन देशमुख ने वीर सावरकर के गीत अनादी मी अवध्य मी’ का हिंदी संस्करण प्रस्तुत किया। इसका लोकार्पण किया गया । इसके साथ ही माधव भागवत द्वारा रचित नूतन सावरकर वंदन का विमोचन भी गणमान्य व्यक्तियों द्वारा किया गया।

गांधी जी के समय में हिंदू शब्द लुप्त हो गया
इस मौके पर बोलते हुए दादा इदाते ने बताया कि हिंदुत्व के विचारों का प्रसार कैसे शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि हमारा देश आजाद था। लेकिन बाद में प्रशासकों को लगा कि हिंदुओं पर दूसरों द्वारा शासन किया जाना चाहिए। ऐसे समय में स्वामी विवेकानन्द ने विश्व धर्म सम्मेलन में पहला विचार प्रस्तुत किया कि ‘हिन्दू धर्म श्रेष्ठ है।’ बाद में लाल-बाल-पाल ने धार्मिक राष्ट्रवाद की स्थापना की। स्वामी अरविन्द ने इसका राष्ट्रव्यापी सन्दर्भ उठाया। लेकिन लोकमान्य तिलक की मृत्यु से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को धक्का लगा। बाद में देश का नेतृत्व मोहनदास करमचंद गांधी ने किया। गांधी जी के समय में हिंदी राष्ट्रवाद का उदय हुआ। हिंदू शब्द पीछे छूट गया। फिर साम्यवाद अर्थात् समाजवाद आगे आया। ‘धर्म अफ़ीम की गोली है’ का विचार जोर पकड़ने लगा। ‘धर्म, कोई संस्कृति नहीं’ यानी ‘ हिंदुत्व कोई धर्म नहीं, कोई हिंदू संस्कृति नहीं’, ऐसी सोच का प्रभाव बढ़ने लगा।

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वीर सावरकर ने हिंदू और हिंदुत्व को परिभाषित किया
ऐसे दौर में वीर सावरकर ने हिंदू और हिंदुत्व को परिभाषित किया। उन्होंने 1923 में हिंदुत्व पुस्तर लिखी। फिर 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन हुआ। हिंदुओं के मन में ‘मैं हिंदू हूं’ वाली मानसिकता बढ़ने लगी।

सर विंस्टन चर्चिल ने एक बार कहा था, “भारत एक देश नहीं है, यह केवल लोगों का एक समूह है।” उस समय ब्रिटेन में होटलों के बाहर ‘भारतीयों और कुत्तों को प्रवेश की अनुमति नहीं है’ जैसे बोर्ड लगाए गए थे। आज उसी ब्रिटेन पर एक भारतीय व्यक्ति शासन कर रहा है, ऐसा दादा इदाते ने कहा।

 हिंदू समाज एकजुट होगा, तो फिल्म सार्थक होगीः रणजीत सावरकर (पौत्र, वीर सावरकर)
सावरकर ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि भविष्य में थिएटर उद्योग स्थिर हो जाएगा; लेकिन सिनेमा दुनिया पर हावी रहेगा। उस समय सावरकर ने युवाओं से फिल्म उद्योग में भाग लेने की अपील की थी। मेरे बचपन की बात है। बाबूजी इस फिल्म का निर्माण करना चाहते थे। जब भी मैं बाबूजी से मिलने जाता, तो वे अभिभूत हो जाते। सावरकर का दर्शन था कि हमें उन्नत तकनीक चाहिए। तदनुसार, यह खुशी की बात है कि यह फिल्म अब आधुनिक तकनीक के साथ प्रस्तुत की जा रही है।

युवाओं को इस फिल्म से प्रेरणा लेनी चाहिए। आज हिन्दू समाज जातियों में बंटा हुआ है। प्रत्येक जाति आज 2 प्रतिशत रह गयी है। यदि देश फिर से विभाजित हो गया, तो हिंदुओं के लिए दुनिया में रहने के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं होगी। स्वतांत्र्यवीर सावरकर ने रत्नागिरी में जाति समाप्त करने का प्रयास किया। यदि इससे सीख लेकर अखंड हिंदू समाज का निर्माण किया जाए तो फिल्म सार्थक होगी।

सभी को सावरकर के विचारों का राजदूत बनना चाहिए – रवीन्द्र माधव साठे
यह फिल्म सुधीर फड़के के त्याग से बनी है। उन्होंने 17 साल तक कड़ी मेहनत की है। फिल्म बनी और 2002 में बाबूजी का निधन हो गया। उस समय यह फिल्म केवल हिंदी भाषा में थी। बाबूजी चाहते थे कि यह फिल्म सभी भाषाओं में बने। तदनुसार, हमने पहल की है और इसे मराठी, गुजराती भाषाओं में तैयार किया है। आने वाले समय में हम इसे दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी तैयार करेंगे। अब हमने इसे नई तकनीक के साथ प्रदर्शित किया है। मैं सभी से अपील करता हूं कि वे इस फिल्म को देखें और सावरकर के विचारों के दूत बनें।

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