Death Anniversary Special: गांधीजी के नवजीवन में क्रांतिवीर बाबाराव सावरकर

पिछली एक तारीख को साबरमती स्टेशन पर ह्रदय को झकझोरनेवाला दृश्य दिखाई दिया। आश्रम में एकत्रित अनेक युवक एक बीमार व्यक्ति की खाट उठाकर (साबरमती) जेल गेट से साबरमती स्टेशन की ओर धीरे-धीरे चल रहे थे।

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Death Anniversary Special: गांधीजी (Gandhiji) द्वारा संपादित पत्रिका नवजीवन (Navjeevan) के 10 सितंबर 1922 के अंक में साहित्यकार काका साहब कालेलकर (Kaka Saheb Kalelkar) ने क्रांतिवीर गणेश दामोदर सावरकर (Revolutionary Ganesh Damodar Savarkar) के बारे में लेख लिखा था। बाबाराव के नाम से जाने जाने वाले गणेश दामोदर सावरकर वीर सावरकर के बड़े भाई और उनके प्रेरणा स्रोत थे। बाबाराव को भी काला पानी की सजा हुई थी। 1921 में उनको अंडमान से भारत लाया गया और साबरमती जेल में रखा गया। 1922 में उनको मुक्त किया गया, उस वक्त का आंखों देखा हाल कालेलकर जी के शब्दों में प्रस्तुत है:

देशभक्त गणेश सावरकर
पिछली एक तारीख को साबरमती स्टेशन पर ह्रदय को झकझोरनेवाला दृश्य दिखाई दिया। आश्रम में एकत्रित अनेक युवक एक बीमार व्यक्ति की खाट उठाकर (साबरमती) जेल गेट से साबरमती स्टेशन की ओर धीरे-धीरे चल रहे थे। उस बीमार आदमी की हालत देखकर हर किसी की आंखें नम हो गईं। नौकरशाही के प्रतिशोध का शिकार हुए वह बीमार व्यक्ति देशभक्त गणेश दामोदर सावरकर थे।

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इटालियन क्रन्तिकारी मॅझिनि
इस बड़े सावरकर को जीर्ण-शीर्ण अवस्था में देखकर मेरे मन में अनेक विचार आये। मैंने बाबा सावरकर को 1906 में पूना में देखा था। मैं उनसे यह पूछने गया था कि उनके मंझले भाई विनायक द्वारा लिखित इटालियन क्रन्तिकारी मॅझिनि की जीवनी कैसे उपलब्ध होगी। बाबा का उस वक्त का विशाल और कसा हुआ शरीर और आज उनकी हालत देखकर मुझे प्रत्यक्ष अनुभव हुआ कि प्रशासन के प्रतिशोध की आग कितनी क्रूर होती है। लेकिन क्या किसी देशभक्त का अदम्य साहस कोई सरकार तोड़ सकती है क्या? शरीर पर अपना ज़ोर दिखा सकती है और वह ज़ोर नौकरशाहोने पूरी तरह से इस्तमाल किया। इस देशभक्त का पहाड़ जैसा शरीर पूरी तरह से जर्जर हो चुका था उसके बाद ही उनको छोड़ा गया।

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देश उनका सदैव ऋणी
हम देशभक्त सावरकर का हृदय से स्वागत करते हैं। स्वस्थ होने के बाद देश उनसे उत्कृष्ट सेवा की आशा कर ही सकता है, लेकिन उन्होंने देश की अबतक जो सेवा की है वह इतनी महान है कि देश उनका सदैव ऋणी रहेगा। उन्होंने जो काव्य प्रकाशित किया, वह भड़कीला था, परंतु उसमें किसी के प्रति द्वेष, पक्षपात से प्रेरित टीका या संकीर्णता नहीं थी। उस कविता ने देशभक्ति की चमक को कायम रखा. सरकार ने उनकी कविता पर कानूनन प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन वह महाराष्ट्र की लोक स्मृति से ओझल नहीं हुई है। सरकार ने कविता की पुस्तकें ज़ब्त कर इन कविताओ को कंठस्थ लोक साहित्य की गरिमा प्रदान की है। आज भी महाराष्ट्र में विनायक (सावरकर) और कवि गोविंद (दरेकर) की कविता घर-घर में गाई जाती है।

स्वदेश के लिए सर्वस्व अर्पित करनेका तथा स्वतंत्रता के खातिर मर मिटने का वीरधर्म सत्याग्रह के रूपमे प्रसारित करनेमे सहायक होंगे ऐसी हम प्रार्थना करते है।

अनुवाद एवं संकलन: चिरायु पंडित

स्त्रोत: डॉ रिजवान कादरी (सदस्य, प्रधानमंत्री संग्रहालय नई दिल्ली)

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