तीन बच्चों का अब्बा करना चाहता था दूसरी शादी, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चला दिया ऐसा चाबुक

अजीजुर्रहमान और हमीदुन्निशा का निकाह 12 मई 1999 को हुआ था। उसके अब्बा-अम्मी की वह इकलौती संतान है। इस कारण उसके अब्बा ने अपनी सारी संपत्ति उसे दे दी है

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुसलमानों की शादी को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। न्यायालय ने 10 अक्टूबर को यह फैसला दो निकाह करने वाले एक मुस्लिम व्यक्ति के मामले में सुनाया है। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि कुरान के अनुसार एक मुस्लिम व्यक्ति दूसरा निकाह तभी कर सकता है, जब वह अपनी पहली बीवी-बच्चों को पालने में सझम हो। अगर वह उन्हें पालने में सक्षम नहीं है तो वह दूसरा निकाह करने का अधिकारी नहीं है। इसी के साथ न्यायालय ने उसकी याचिक खारिज कर दी।

जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी ने इस मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता, उसे सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता। उन्होंने सलाह दी कि मुसलमानों को पहली बीवी के रहते हुए दूसरी शादी करने से बचना चाहिए। कुरान में भी इस बात का जिक्र है।

यह है पूरा मामला
अजीजुर्रहमान और हमीदुन्निशा का निकाह 12 मई 1999 को हुआ था। वह अब्बा-अम्मी की वह इकलौती संतान है। इस कारण उसके अब्बा ने अपनी सारी संपत्ति उसे दे दी है। वह अपने तीन बच्चों के साथ ही 93 वर्षीय अब्बा की देखभाल करती है। उसके पति ने चुपके से दूसरा निकाह कर लिया। हैरानी की बात तो ये है कि उनके बच्चे भी हैं। पति चाहता था कि वह दोनों बीवियों को साथ रखे। इसके लिए उसने कोर्ट में अपील की थी। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उसे झटका देते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी।

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