Allahabad High Court: शादी में मिले उपहारों की लिस्ट बनाएं! जानिये, उच्च न्यायालय ने क्यों दी यह सलाह

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को लेकर अहम टिप्पणी की है। किसी भी शादी के 7 साल बाद तक दहेज उत्पीड़न का केस दायर किया जा सकता है।

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Allahabad High Court ने कहा कि शादी में मिले उपहारों की एक लिस्ट(A list of wedding gifts) बननी चाहिए और उस पर वर एवं वधू पक्ष के हस्ताक्षर भी जरूरी(Signatures of bride and groom are also required) हैं। ऐसा करने से शादी के बाद होने वाले विवादों(disputes after marriage) और केस-मुकदमों में मदद मिलेगी। उच्च न्यायालय ने अंकित सिंह व अन्य द्वारा दाखिल 482 दंड प्रक्रिया संहिता के केस(482 Criminal Procedure Code cases) की सुनवाई करते हुए यह अहम सलाह दी है। उच्च न्यायालय ने 23 मई सुनवाई के लिए लगाते हुए सरकार से हलफनामा मांगा है कि वह बताएं कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम के रूल 10(Rule 10 of Dowry Prohibition Act) के अन्तर्गत कोई नियम प्रदेश सरकार ने बनाया है।

दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 का दिया हवाला
न्यायालय ने दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून में एक नियम यह भी है कि वर एवं वधू को मिलने वाले उपहारों की भी सूची बननी चाहिए। इससे यह स्पष्ट होगा कि उन लोगों को क्या-क्या मिला था। इसके अलावा अदालत ने कहा कि शादी के दौरान मिलने वाले गिफ्ट्स को दहेज के दायरे में नहीं रखा जा सकता।

अर्जी के साथ लिस्ट लगाने की सलाह
जस्टिस विक्रम डी. चौहान की बेंच ने कहा कि दहेज की मांग के आरोप लगाने वाले लोग अपनी अर्जी के साथ ऐसी लिस्ट क्यों नहीं लगाते। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम का उसकी पूरी भावना के साथ पालन होना चाहिए।

दहेज और उपहार में अंतर
अदालत ने कहा कि यह नियम बताता है कि दहेज और उपहारों में क्या अंतर है। शादी के दौरान लड़का और लड़की को मिलने वाले गिफ्ट्स को दहेज में नहीं शामिल किया जा सकता। अदालत ने कहा कि यह अच्छी व्यवस्था होगी कि मौके पर मिली सभी चीजों की एक लिस्ट बनाई जाए। इस पर वर और वधू दोनों के ही साइन भी हों। इससे भविष्य में लगने वाले बेजा आरोपों को रोका जा सकेगा।

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कोर्ट की टिप्पणी
अदालत ने कहा, ’दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 को केंद्र सरकार की ओर से इसी भावना के तहत बनाया गया था कि भारत में शादियों में गिफ्ट देने का रिवाज है। भारत की परम्परा को समझते हुए ही गिफ्ट्स को अलग रखा गया है।’

दहेज प्रतिषेध अधिकारियों की भी तैनाती की हिदायत
यही वजह है कि जब लिस्ट बन जाएगी तो फिर बेजा आरोपों से बचा जा सकेगा। अकसर शादी के बाद विवाद होने पर ऐसे आरोप लगाए जाते हैं। जज ने कहा कि इस नियम के अनुसार तो दहेज प्रतिषेध अधिकारियों की भी तैनाती की जानी चाहिए। लेकिन आज तक शादी में ऐसे अधिकारियों को नहीं भेजा गया। राज्य सरकार को बताना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों नहीं किया, जबकि दहेज की शिकायतों से जुड़े मामले खूब बढ़ रहे हैं।

शादी के 7 साल बाद तक केस किया जा सकता है दायर
इलाहाबाद हाईकोर्ट की यह टिप्पणी दहेज उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को लेकर अहम है। किसी भी शादी के 7 साल बाद तक दहेज उत्पीड़न का केस दायर किया जा सकता है। अकसर ऐसे मामले अदालत में पहुंचते हैं, जिनमें विवाद किसी और वजह से होता है लेकिन आरोप दहेज का लगा दिया जाता है। ऐसी स्थिति में अदालत का सुझाव अहम है।

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