उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने आज इस बात पर जोर दिया कि “भारत (India) विश्व गुरु के अपने गौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए अपना मार्ग प्रशस्त कर रहा है।” उन्होंने युवा नेताओं से भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक रास्ता बनाने, एक ऐसे भारत की विरासत पाने के लिए आशा और धैर्य को बढ़ावा देने का आग्रह किया जो अपने समृद्ध सभ्यतागत लोकाचार को संजोता है। उपराष्ट्रपति (Vice President) ज़ोर देकर कहा, “आइए विश्वास करें, कार्यान्वित करें, सहयोग करें और सबसे बढ़कर, परिवर्तन लाने वाले बनने की आकांक्षा करें क्योंकि हम 2047 की ओर बढ़ रहे हैं।”
डर के कारण किसी विचार को आगे ना बढ़ाना अन्याय
जमशेदपुर में एक्सएलआरआई – जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के प्लैटिनम जुबली समारोह को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि असफलता के डर (fear of failure) को ‘विकास विरोधी (anti development) और वृद्धि विरोधी’ बताते हुए, धनखड़ ने रेखांकित किया कि डर के कारण किसी विचार को आगे बढ़ाने से बचना न केवल खुद के साथ अन्याय करता है, बल्कि बड़े पैमाने पर मानवता पर भी अन्याय करता है।
सफलता सीखने के जुनून और चुनौतियों पर काबू पाने की ललक
उन्होंने विदेशी मुद्रा भंडार को संरक्षित करने से लेकर उद्यमिता को बढ़ावा देने और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने तक इसके कई लाभ बताए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि “यह समझना महत्वपूर्ण है कि सफलता केवल किताबों के भार या ग्रेड के दबाव से नहीं मापी जाती है, बल्कि सीखने के जुनून और चुनौतियों पर काबू पाने के लचीलेपन से मापी जाती है।”
अपने संबोधन के दौरान, उपराष्ट्रपति ने टिप्पणी की कि “तनाव-मुक्त मानसिकता न केवल रचनात्मकता और नवीनता को बढ़ाती है बल्कि समग्र विकास को भी बढ़ावा देती है।” उन्होंने बताया कि यह दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक छात्र न केवल शैक्षणिक रूप से बल्कि एक सर्वांगीण व्यक्ति के रूप में भी विकसित हो, जो कक्षा से परे जीवन की जटिलताओं से निपटने में सक्षम हो।
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