क्या बच पाएगा उद्धव ठाकरे का पार्टी प्रमुख पद? ये हैं पेंच

शिवसेना पार्टी के संविधान में, राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 19 सदस्य होते हैं, जिनमें से 14 सदस्य प्रतिनिधि सभा से चुने जाते हैं।

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10 जनवरी को जब केंद्रीय चुनाव आयोग के कार्यालय में शिंदे समूह की सुनवाई हुई तो वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने चुनाव आयोग के समक्ष तर्क दिया कि शिवसेना का संविधान उद्धव ठाकरे ने बनाया था। 1999 में जो पार्टी का संविधान बनाया गया था, उसमें 2018 में सुधार कर शिवसेना पार्टी प्रमुख का पद सृजित किया गया था, जो अवैध है। अब ठाकरे गुट को अब यह साबित करना होगा कि संविधान में संशोधन पार्टी के संविधान के अनुसार किया गया है। अब ठाकरे गुट  उद्धव ठाकरे के पार्टी प्रमुख के पद को बचाने की कोशिश में लग गया है।

शिवसेना के संविधान में वास्तव में क्या कहा था?
दरअसल शिवेना के संविधान में इस बात का उल्लेख है कि यदि शिवसेना पार्टी के संविधान में संशोधन करना चाहती है तो पार्टी के संविधान की धारा 14 के अनुसार इसके लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलानी होगी। इसलिए अगर उद्धव ठाकरे ने 2018 में संविधान में संशोधन किया है तो ब्यौरा देना होगा कि क्या उन्होंने उसके लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई थी?  हालांकि पार्टी के संविधान में कहा गया है कि ‘राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अगर किसी बिंदु पर आपत्ति जताई जाती है तो शिवसेना प्रमुख का फैसला अंतिम होगा’, लेकिन संविधान में संशोधन किया गया है, यह दिखाना होगा कि इसके लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी।

शिवसेना पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी क्या है?
शिवसेना पार्टी के संविधान में, राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 19 सदस्य होते हैं, जिनमें से 14 सदस्य प्रतिनिधि सभा से चुने जाते हैं। इस बैठक में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, उप नेता, राज्य संपर्क प्रमुख, जिला संपर्क प्रमुख, राज्य प्रमुख, जिला प्रमुख और विधान सभा, विधान परिषद के विधायक, साथ ही मुंबई मंडल प्रमुख शामिल होते हैं। ऐसे में भले हीठाकरे गुट यह साबित कर दे कि संविधान में संशोधन राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में किया गया था, तो भी यह मुद्दा उठाया जा सकता है कि क्या राष्ट्रीय कार्यकारिणी का चुनाव संविधान के अनुसार हुआ था? यह मुद्दा भी उठ सकता है कि क्या राष्ट्रीय कार्यकारिणी का चुनाव करने वाली प्रतिनिधि सभा भी संवैधानिक रूप से नियुक्त है? दरअसल, शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के बाद यह देखने को मिल रहा है कि उद्धव ठाकरे संविधान के अनुसार शिवसेना में शासन नहीं कर रहे हैं। अब यह तय है कि उद्धव ठाकरे द्वारा लिए गए फैसलों को चुनाव आयोग पार्टी के संविधान के मुताबिक सत्यापित करेगा।

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