प्रधानमंत्री ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता को बताया जरूरी, चीन को लिया आड़े हाथ

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारी सोच किसी को रोकने या किसी को अलग रखने पर आधारित नहीं है। बल्कि यह शांति एवं समृद्धि का सहकारी क्षेत्र बनाने को लेकर है।

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भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र में 22 जून को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों बड़ी चिंता जताई। उन्होंने बीजिंग पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए कहा कि यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से अहम है। इस क्षेत्र में चीन की वजह से दबाव और टकराव के काले बादल छाए हुए हैं। इस क्षेत्र की स्थिरता हमारी साझेदारी की प्रमुख चिंता में से एक है।

भारत और अमेरिका के समान दृष्टिकोण
अमेरिका की राजकीय यात्रा पर पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि वैश्विक व्यवस्था संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों, विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर आधारित है। भारत और अमेरिका ऐसे मुक्त, स्वतंत्र एवं समावेशी हिंद-प्रशांत का साझा दृष्टिकोण रखते हैं, जो सुरक्षित समुद्रों से जुड़ा हो। जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों से परिभाषित हो। जहां किसी का प्रभुत्व न हो।

सभी देश मिलकर प्राप्त करें समृद्धि
प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों देश ऐसे क्षेत्र की कल्पना करते हैं, जहां सभी छोटे-बड़े देश अपने फैसले स्वतंत्र और निडर होकर कर सकें। जहां तरक्की कर्ज के असंभव बोझ तले दबी न हो। जहां संपर्क सुविधाओं का लाभ सामरिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाए। जहां सभी देश मिलकर समृद्धि हासिल कर सकें।

क्वाड का किया जिक्र
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारी सोच किसी को रोकने या किसी को अलग रखने पर आधारित नहीं है। बल्कि यह शांति एवं समृद्धि का सहकारी क्षेत्र बनाने को लेकर है। हम क्षेत्रीय संस्थानों और क्षेत्र के भीतर एवं बाहर के अपने भागीदारों के साथ काम करते हैं। इनमें से क्वाड (चतुष्पक्षीय सुरक्षा संवाद) इस क्षेत्र की भलाई के लिए एक बड़ी ताकत बनकर उभरा है।

जारी किया संयुक्त बयान
इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की वार्ता के बाद जारी एक संयुक्त बयान में सभी देशों से नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का सम्मान किए जाने का आह्वान किया गया।

रुस-यूक्रेन युद्ध पर चिंता
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में यूक्रेन में युद्ध के साथ ही यूरोप में युद्ध की वापसी पर चिंता जताई। उन्होंने दोहराया-यह युद्ध का समय नहीं है। यह संवाद और कूटनीति का दौर है। हम सबको रक्तपात और मानव पीड़ा को रोकने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए।

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