नेपाल में सियासी संकट!

पार्टी के भीतर और बाहर विरोध झेल रहे नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 20 दिसंबर को अचानक मंत्रिमंडल की बैठक में सदन को भंग करने का फैसला किया। मंत्रिमंडल की तरफ से सदन को भंग करने की औपचारिक सिफारिश राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से भी की जा चुकी है।

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भारत के पड़ोसी और विश्व में एक मात्र हिंदू देश नेपाल में सियासी भूचाल आ गया है। पार्टी के भीतर और बाहर विरोध झेल रहे नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 20 दिसंबर को अचानक मंत्रिमंडल की बैठक में सदन को भंग करने का फैसला किया। मंत्रिमंडल की तरफ से सदन को भंग करने की औपचारिक सिफारिश राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से भी की जा चुकी है।

संविधान में प्रावधान नहीं
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नेपाल के संविधान में सदन भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है। इस स्थिति में राजनैतिक दल सरकार के इस फेसले को अदालत में चुनौती दे सकते हैं।

आगे क्या?

  • संविधान में सदन भंग करने का प्रावधान नहीं
  • राष्ट्रपति ले सकती हैं कानूनविदों से सलाह
  • अदालत में दी जा सकती है चुनौती

अब राजनैतिक जानकारों की नजर राष्ट्रपति के अगले कदम पर टिक गई है। देखना होगा कि वे इस बारे में क्या निर्णय लेती हैं। ओली की कैबिनेट में ऊर्जा मंत्री बरशमैन पुन ने बताया कि कैबिनेट की बैठक में संसद को भंग करने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश भेजने का फैसला किया गया।

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दबाव में पीएम ओली
ओली पर संवैधानिक परिषद अधिनियम से संबंधित एक अध्यादेश को वापस लेने का दबाव था। 15 दिसंबर को जारी अध्यादेश को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने भी मंजूरी दी थी।  20 दिसंबर को 10 बजे सुबह कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई गई। उम्मीद की जा रही थी कि सरकार अध्यादेश को बदलने की सिफारिश करेगी। लेकिन इसके बजाय मंत्रिमंडल ने हाउस को भंग करने की सिफारिश कर दी।

ओली की पार्टी ने किया विरोध
ओली की पार्टी नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी ने कौबिनेट के इस फैसले का विरोध किया है। पार्टी प्रवक्ता नारायणजी श्रेष्ठ ने कहा कि यह निर्णय जल्दबाजी में लिया गया। उस समय कैबिनेट की बैठक में सभी मंत्री उपस्थित नहीं थे। यह लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है। इसे लागू नहीं किया जाना चाहिए।

पीएम ओली ने की थी कई नेताओं से मुलाकात
ओली ने 19 दिसंबर को अपने साथी और पार्टी के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल के साथ ही सचिवालय के सदस्य राम बहादुर थापा और बाद में राष्ट्रपति भंडारी के साथ कई दौर की बैठक की थी। चूंकि संविधान में इस तरह का प्रावधान नहीं है। इसलिए इसे अदालत में चनौती दिए जाने की पूरी संभावना है।

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