मन की बातःकौन सुनाए कहानी, न दादी है न नानी

पति-पत्नी के पास टाइम नहीं है, घर में दादी,नानी या कोई अन्य बड़े-बुजूर्ग नहीं हैं। फिर बच्चों को कौन कहानी सुनाए। इसके साथ एक कारण और भी है, जिसकी वजह से यह परंपरा कायम रखना काफी मुश्किल नहीं शायद नामुमकिन भी है। कारण यह है कि अब बच्चे साफ-साफ बोलने से पहले से ही पढ़ाई में लग जाते हैं। उन्हें घर या किंडरगार्टन में होश संभालने से पहले से ही ए फॉर एपल और बी फॉर बॉल सिखाया जाने लगता है।

111

मुंबई। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 69वें संस्करण में देश में कहानियां सुनाने की परंपरा को याद किया। उन्होंने इसके सकारात्मक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए इस परंपरा की विशेषताओं और आवश्यकताओं पर विस्तार से बात की। खासकर बच्चों को कहानी सुनाने की देश की समृद्ध परंपरा के महत्व पर उन्होंने अपने मन की बात रखी। लेकिन इस आधुनिक और व्यस्तम जीवन में क्या वाकई उनकी सलाह पर अमल करना संभव है। इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमें आज की जीवन पद्धति को देखना होगा।
90 फीसदी न्यूक्लियर फेमिली
आज सौ में 90 लोगों की न्यूक्लियर फेमिली है, यानी उनके परिवार में खुद पति-पत्नी और उनके बच्चों के आलावा कोई नहीं रहता। ग्रामीण इलाकों में भले ही आज भी ज्वाइंट फेमिली की परंपरा कुछ हद तक बरकरार है, लेकिन शहरों में तो हालत यह है कि बच्चों के पैदा होने के चंद महीने बाद ही उनको पालना घर में छोड़कर ज्यादातर पति-पत्नी नौकरी पर जाने लगते हैं।
घर में बड़े-बुजुर्गों के लिए जगह नहीं
आजकल घर में न दादी रहती है न नानी और न कोई अन्य बड़े-बुजुर्ग। इसके कई कारण हैं। शहरों में ज्यादातर लोगों का घर काफी छोटा होता है। यहां आम आदमी के पास वन रुम किचन होना भी काफी राहत भरी बात होती है। वहीं जिनकी आर्थिक स्थिति थोड़ी बेहतर होती है, उनके पास टू रुम हॉल किचन होते हैं। इन घरों में एक कमरे में जहां खुद पति-पत्नी रहते हैं, वहीं दूसरा बड़े होते उनके बच्चों के लिए रिजर्व रहता है। बाकी हॉल, किचन आदि तो सबके लिए हो गए। अब दादी, नानी के लिए इतने छोटे घर में कोई जगह नहीं बचती।
लोगों को नहीं चाहिए रोकने-टोकने वाला
दूसरी बात यह है कि आज लोगों को बड़ों की टोकाटाकी पसंद नहीं है।अब लोग फ्रीडम पसंद हो गए हैं। आज से 30-35 साल पहले जहां तीन-तीन पीढ़ियां एक साथ रहती थीं,वहीं अब बहुत कम ही परिवार में दो पीढ़ियां भी साथ रहती हैं। इसका कारण सिर्फ स्पेस की कमी नहीं है। सच तो यह है कि अब घरों में नहीं, लोगों के दिलों में स्पेस की कमी हो गई है। इसलिए वो चाहते ही नहीं कि उनके साथ कोई परिवार का बड़ा-बुजुर्ग रहे।
पति-पत्नी के पास समय का अभाव
पति-पत्नी के पास टाइम नहीं है, घर में दादी,नानी या कोई अन्य बड़े-बुजूर्ग नहीं हैं। फिर बच्चों को कौन कहानी सुनाए। इसके साथ एक कारण और भी है, जिसकी वजह से यह परंपरा कायम रखना काफी मुश्किल नहीं शायद नामुमकिन भी है। कारण यह है कि अब बच्चे साफ-साफ बोलने से पहले से ही पढ़ाई में लग जाते हैं। उन्हें घर या किंडरगार्टन में होश संभालने से पहले से ही ए फॉर एपल और बी फॉर बॉल सिखाया जाने लगता है।
मनोरंजन के कई आसान साधन उपलब्ध
इसके साथ ही आज के युग में मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर पर गेम तथा कार्टून सीरियल्स उपलब्ध हैं। इनमें बच्चों को ज्यादा दिलचस्पी है। पैरैंट्स भी बच्चों की जिद और रोने-धोने से बचने के लिए उन्हें मोबाइल थमा देते हैं। बदलते दौर में अब अपनी कई परंपराओं की ओर लौटना या उन्हें बरकरार रखना नामुमकिन है। परंपराएं चाहे कितनी भी अच्छी क्यों न हों।
क्या कहा था पीएम मोदी ने?
प्रधानमंत्री ने 27 सितंबर को मन की बात के 69वें संस्करण मे कई मुद्दों के साथ ही परिवार में कहानियां सुनाने की समृद्ध परंपरा को भी याद किया था। उन्होंने इस परंपरा के सकारात्मक पहलू के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि हर परिवार में बूढ़े-बुजुर्ग, बड़े व्यक्ति कहानियां सुनाया करते थे, और घर नई प्रेरणा, नई ऊर्जा से भर जाता था। कहानियां लोगों के रचनात्मक और संवेदनशील पक्ष को सामने लाती हैं। उसे प्रकट करती हैं।कहानी की ताकत को महसूस करना हो तो उस समय देखें, जब कोई मां अपने छोटे बच्चे को सुलाने के लिए या फिर खिलाने के लिए कहानी सुना रही होती है। उन्होंने यह भी कहा था कि भारत में कहानी कहने की, या कहें किस्सागोई की, एक समृद्ध परंपरा रही है।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.