BSP पर नहीं चली आईएनडीआईए की माया, बसपा का हाथी अकेले ही लड़ेगा! जानिये कैसे होगी सपा की साइकिल पंचर

केंद्र में सत्ताधारी एनडीए और विपक्ष में बैठा आईएनडीआईए अपने अपने गठबंधन को बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा है। इसमें आईएनडीआईए को एक बड़ा झटका लगा है। बसपा प्रमुख मायावती ने अपना मत स्पष्ट कर दिया है।

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विपक्षी दलों के आईएनडीआईए गठबंधन को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने निर्णय दे दिया है। इसके साथ ही मायावती ने एनडीए को लेकर भी निर्णय सुना दिया है। मायावती के निर्णय के बाद बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी के अकेले चुनावों में उतरने की बात साफ हो गई है। राजनीतिक समीक्षक मायावती के इस निर्णय को लेकर यह अनुमान लगा रहे हैं कि, इससे प्रदेश में सपा की साइकिल के लड़खड़ाने में कोई कसर नहीं छूटेगी।

उत्तर प्रदेश (UP) में बहुजन समाज पार्टी (BSP) का सुरक्षित वोट बैंक (Vote Bank) माना जाता है। उत्तर प्रदेश में लगभग 22 प्रतिशत दलित वोट बैंक (Dalit Vote bank) है। जिसका बड़ा हिस्सा बसपा का मतदाता है। हालांकि, 2022 के विधान सभा चुनावों में यह खिसक गया था और बसपा को मात्र 12 प्रतिशत वोट ही मिल पाया था। अब आईएनडीआईए (I.N.D.I.A) और एनडीए (NDA) से दूरी बनाकर मायावती अपने पुराने वोट बैंक को प्राप्त करने का प्रयत्न कर रही हैं, यह कहना बेमानी नहीं होगा। राज्य में 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें आरक्षित हैं।

आईएनडीआईए को झटका!
मुंबई में आईएनडीआईए की बैठक है। इसके लिए विपक्षी दल अपने खेमे को बड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। इसमें बसपा प्रमुख मायावती (Mayavati) को आमंत्रित किया गया था कि, वे भाजपा के विरुद्ध लड़ाई में विपक्षी आईएनडीआईए गठबंधन का हिस्सा बनें। लेकिन, सपा के साथ 2019 में गठबंधन करके परिणाम भुगत चुकी मायावती अब कोई संकट लेना नहीं चाहती हैं, क्योंकि, 2019 के चुनावों में सपा बसपा गठबंधन कोई चमत्कार नहीं कर पाया था। जिसके बाद बसपा ने दावा किया था कि, 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के मतदाताओं ने सपा उम्मीदवारों को मतदान किया था, लेकिन सपा के मतदाताओं ने बसपा को मत नहीं डाला। इसका परिणाम था कि, मात्र दस सीटों पर सिमट कर रही गई थी बसपा। इस परिणाम के बाद ही 23 जून 2019 को मायावती से सपा बसपा गठबंधन यानि बुआ बबुआ की जोड़ी के टूटने की घोषणा कर दी थी।

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बनें किंग मेकर
अत्तर प्रदेश माना जाता है कि, कांग्रेस का कोई जनमत नहीं बचा है। इसलिए आईएनडीआईए गठबंधन में जाकर किसी का नेतृत्व स्वीकारने से अच्छा मायावती को लग रहा है कि, अपना वोट बैंक फिर से हासिल करके क्यों न किंग मेकर की भूमिका में वापस आया जाए। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि, बसपा का वोट बैंक यदि फिर एकत्रित हुआ तो इसका प्रभाव भाजपा को इच्छित परिणाम दे सकता है। क्योंकि, प्रदेश में त्रिकोणीय मतविभाजन हो जाएगा।

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