विश्व नारियल दिवसः नारियल उत्पादन में गुजरात की ऊंची छलांग, इन प्रदेशों में किए जाते हैं सप्लाई

भारतीय संस्कृति में नारियल को श्रीफल का दर्जा प्राप्त है। वास्तव में कल्पवृक्ष जैसा यह फल मनुष्य के स्वास्थ्यवर्धन के लिए कई तरह से फायदेमंद है।

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भारत में सबसे लंबी तट रेखा वाला गुजरात नारियल उत्पादन में बड़ी छलांग रहा है। कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पिछले दशक में गुजरात में नारियल के बुवाई क्षेत्र में 4552 हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई है। गुजरात में वर्ष 2012-13 में नारियल का बुवाई क्षेत्र 21,120 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2022-23 में बढ़कर 25,672 हेक्टेयर पर पहुंच गया है।

राज्य के बागवानी निदेशक पी.एम. वघासिया ने बताया कि राज्य में नारियल का बुवाई क्षेत्र 25 हजार हेक्टेयर पर पहुंच गया है जबकि उसका उत्पादन 21.42 करोड़ नट्स (पक्का नारियल) है। गुजरात में नारियल का उत्पादन मुख्य रूप से गिर-सोमनाथ, जूनागढ़, भावनगर, वलसाड, कच्छ, नवसारीर और देवभूमि द्वारका जिलों में होता है।

नारियल के प्रकार एवं उपयोग
नारियल की फसल के बारे में संयुक्त बागवानी निदेशक बिपिनभाई राठोड़ कहते हैं, “राज्य में उत्पादित होने वाले कुल नारियल में से 20 फीसदी नारियल का त्रोफा यानी कच्चे नारियल के रूप में जबकि 42 फीसदी नारियल का पके हुए नारियल (नट्स) के रूप में उत्पादन होता है। 5 फीसदी किसान अपने लिए और बीज के रूप में नारियल का उत्पादन करते हैं।” राठोड़ के अनुसार गुजरात से 33 फीसदी नारियल दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में निर्यात किया जाता है।

नारियल वैसे तो पूरे साल उपलब्ध होता है। लेकिन गर्मियों (मार्च से जून) के दौरान नारियल की मांग काफी बढ़ जाती है। खास बात यह है कि कृषि अर्थव्यवस्था में नारियल के महत्व को रेखांकित करते हुए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में गुजरात सरकार ने ‘गुजरात नारियल विकास कार्यक्रम’ लागू किया है। इसके लिए बजट में 403.30 लाख रुपए का प्रावधान किया गया है। राज्य सरकार का यह कदम नारियल की खेती में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा।

नारियल का उत्पादन और मूल्य संवर्धन
भारतीय संस्कृति में नारियल को श्रीफल का दर्जा प्राप्त है। वास्तव में कल्पवृक्ष जैसा यह फल मनुष्य के स्वास्थ्यवर्धन के लिए कई तरह से फायदेमंद है। इसलिए ही इसका उपयोग केवल शक्तिवर्धक पेय या शुभ अवसरों में प्रसाद के रूप में ही नहीं हो रहा है, बल्कि इसका लगातार मूल्य संवर्धन भी हो रहा है। नारियल का मूल्य संवर्धन कर उससे तेल, वर्जिन कोकोनट ऑयल, नारियल का दूध, कोकोनट कुकी, कोकोनट बरफी, विनेगर, फ्लैक्स, चिप्स, ऑयल केक और नीरा आदि बनाया जा सकता है। नारियल के तेल का उपयोग खाद्य तेल के अलावा टॉयलेटरी और अन्य उद्योगों में भी होता है। नारियल के दूध का उपयोग एलर्जी की औषधियों में भी होता है। हरेक आयु समूह के लिए उपयोगी नारियल के दूध का उपयोग विशेष रूप से नवजात शिशु को पिलाने में किया जाता है। नारियल का दूध डायबिटीज, मोटापा, पित्ताशय के रोग और अग्न्याशय के सूजन में उपयोगी है। राज्य में नारियल का उत्पादन बढ़ने से प्रसंस्करण के जरिए इसका मूल्य संवर्धन कर नारियल पानी का टेट्रा पैक या बोतल, नारियल मिल्क पाउडर, नारियल तेल, नीरो और कॉयर जैसे अनेक उत्पादनों की भी विशाल संभावनाएं मौजूद हैं।

नारियल उत्पादन और किसान
राज्य में अधिक से अधिक किसानों को नारियल की खेती की दिशा में मोड़ने के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार की ओर से किसानों को विभिन्न तरह के प्रोत्साहन दिए जाते हैं। जैसे गुजरात नारियल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत नारियल की खेती करने वाले किसान को बुवाई खर्च का 75 फीसदी के अनुसार अधिकतम 37,500 रुपए प्रति हेक्टेयर की सीमा में सहायता दी जाती है। इस सहायता का भुगतान दो किस्तों (75:25) में किया जाता है। इसके अलावा, नारियल में एकीकृत पोषण और कीट प्रबंधन के लिए खर्च के 50 फीसदी के अनुसार अधिकतम 5000 रुपए प्रति हेक्टेयर की सीमा में सहायता दी जाती है। राज्य प्लान योजना के अंतर्गत नारियल की रोपण सामग्री के लिए खर्च के अधिकतम 90 फीसदी के अनुसार 13,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की सहायता का भुगतान किया जाता है।

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नारियल उत्पादन में वृद्धि के लिए केंद्र के प्रयास
केंद्र सरकार ने नारियल की खेती और उससे संबद्ध क्षेत्र के विकास के लिए नारियल विकास बोर्ड (कोकोनट डेवलपमेंट बोर्ड) का गठन किया है। इसका प्रादेशिक कार्यालय 2 सितंबर, 2022 से जूनागढ़ में कार्यरत है। क्षेत्र में इस कार्यालय के शुरू होने से नारियल की खेती को लेकर किसानों में आकर्षण बढ़ा है। इस संबंध में कोकोनट डवलपमेंट बोर्ड के प्रभारी अजय कुमार ने बताया कि नारियल विकास बोर्ड के प्रयासों के चलते नारियल के बुवाई क्षेत्र में 1708 हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। गुजरात के तटीय क्षेत्रों में नारियल के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए वर्ष 2017 से अब तक 444.05 लाख रुपए खर्च किए गए हैं। नारियल की खेती में उत्पादकता-वृद्धि भी महत्वपूर्ण कारक है। इसलिए ही नारियल विकास बोर्ड द्वारा इंटीग्रेटेड प्रोडक्टिविटी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत 377 लाख रुपए के खर्च से 2295 हेक्टेयर क्षेत्र में नए डेमोंस्ट्रेशन प्लॉट विकसित किए गए हैं। इसके अलावा, बोर्ड द्वारा 5.41 लाख रुपए के खर्च से 10 ऑर्गेनिक खाद इकाइयां भी शुरू की गई हैं।

फ्रैंड्स ऑफ कोकोनट ट्री के तहत प्रशिक्षण
नारियल उत्पादन में वृद्धि के लिए कौशल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ‘फ्रैंड्स ऑफ कोकोनट ट्री’ के तहत प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। 98 लाख रुपए के खर्च से दिए गए इस प्रशिक्षण में 2 बैचों में 45 प्रशिक्षुओं ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है। इसके अलावा, कोकोनट हैंडीक्राफ्ट ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत 2.05 लाख रुपए खर्च से 3 बैचों में 45 लोगों को प्रशिक्षित किया गया है। वहीं, 4000 से अधिक लाभार्थियों ने नारियल विकास बोर्ड की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाया है। इस तरह, नारियल सच्चे अर्थ में गुजरात की अर्थव्यवस्था के लिए श्रीफल यानी शुभ फल साबित हो रहा है।

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