बेटियों का बढ़ रहा है मान!… जानिए कैसे?

बीते छह साल में देश में औसत लिंगानुपात में सुधार देखने को मिला है। देश में 2014-15 में 1000 लड़कों पर 918 लड़कियां थीं, जो 2019-20 में बढ़कर 934 हो गई हैं।

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बेटियों को बचाने और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए मोदी सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान चलाया है। इस अभियान के तहत कई कदम उठाए गए हैं। इनमें कुछ जन्म लेनेवाली बेटियों के लिए हैं और कुछ बड़ी हो रही बेटियों के लिए। सरकार के इन कदमों का सकारात्मक असर अब दिखने लगा है। बीते छह साल में देश में औसत लिंगानुपात में सुधार देखने को मिला है। देश में 2014-15 में 1000 लड़कों पर 918 लड़कियां थीं, जो 2019-20 में बढ़कर 934 हो गई हैं।

इन राज्यों में लिंगानुपात में आया सुधार
सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में लड़के-लड़कियों के लिंगानुपात में सुधार आया है। हरियाणा में लड़कियों की संख्या 1000 लड़कों पर 876 से बढ़कर 924, चंडीगढ़ में 874 से बढ़कर 935, उत्तर प्रदेश में 885 से बढ़कर 928, पंजाब में 892 से बढ़कर 920, हिमाचल प्रदेश में 897 से बढ़कर 933 और राजस्थान में 929 से बढ़कर 948 हो गई है।

इन राज्यों में आई गिरावट
कर्नाटक,केरल, ओडिशा, बिहार, नगालैंड, त्रिपुरा दादर नगर हवेली और लक्षद्वीप में लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गई है। जबकि झारखंड और मिजोरम में लिंगानुपात यथास्थिति है। झारखंड में प्रति 1,000 लड़कों पर 920 लड़किया हैं, जबकि मिजोरम में 971 हैं।

समस्या पुरानी है
देश में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में दशकों से ही कम रही है। इसे लेकर देश की सरकारें लोगों को सचेत भी पहले से ही करती रही हैं, लेकिन जिस तरह के कदम मोदी सरकार ने उठाए हैं, वैसे कारगर कदम पहले की सरकारों ने नहीं उठाए थे। इस वजह से यह समस्या और बढ़ती गई। मोदी सरकार द्वारा चलाया गया बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान काफी सफल हुआ है। अब बेटे-बेटियों में भेदभाव कम होने से देश में औसतन बेटियों की संख्या बढ़ने लगी है।

बढ़ी जागरुकता, कड़े हुए कानून
लोगों में जागरुकता आने के साथ ही लिंग परीक्षण को लेकर सरकार द्वारा उठाए गए कड़े कदम भी लड़कियों की संख्या बढ़ने में काफी कारगर साबित हो रहे हैं। लिंग परक्षीण पर लगी रोक के कारण जिन बच्चियों को पैदा होने से पहले ही मौत के घाट उतार दिया जाता था, वे अब दुनिया में आ रही हैं। लोगों में आई जागरुकता के कारण वे माता-पिता की आंखों के तारा बनी हुई हैं। हालांकि लिंग परीक्षण को लेकर कानून पहले से ही लागू था लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद सख्ती बढ़ा दी गई है।

2014-15 में हुई अभियान की शुरुआत
बता दें कि मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल 2014-15 में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान का उद्देश्य घटते लिंगानुपात में सुधार लाना था। नीति आयोग की आकलन रिपोर्ट में भी यह देखने को मिला है कि यह अभियान देश में लैंगिक भेदभाव कम करने और लड़कियों को महत्व प्रदान करने तथा समाज में भागीदारी बढ़ाने में कारगर साबित हो रहा है।

  • क्या कहता है कानून?
    गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 के तहत गर्भधारण पूर्व या बाद में लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना जुर्म है।
  • भ्रूण परीक्षण में सहयोग देना व विज्ञापन करना कानूनी अपराध है। इसके तहत 3 से 5 साल तक की जेल व 10 हजार से 1 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
  • गर्भवती महिला का जबरन गर्भपात करवाना अपराध है। ऐसा करने पर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
  • धारा 314 के तहत अगर गर्भपात करने के मकसद से किए गए प्रयासों से महिला की मौत हो जाती है तो 10 साल की कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
  • आईपीसी की धारा 315 के तहत शिशु जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के बाद उसकी मृ्त्यु के मकसद से किया गया कार्य अपराध होता है, ऐसा करनेवाले को 10 साल की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
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