विश्व पटल पर बढ़ता जा रहा हिंदी का प्रचार-प्रसारः राजनाथ सिंह

182

नयी दिल्ली में रक्षा उत्पादन विभाग के अंतर्गत हिंदी सलाहकार समिति की बैठक को संबोधित करते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि विश्व पटल पर हिंदी का प्रचार-प्रसार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि हिंदी की बढ़ती प्रतिष्ठा के चलते, आज हिंदी सीखना समय की मांग हो गयी है। उन्होंने कहा कि, ‘एक वैज्ञानिक भाषा होने’, और ‘जैसा बोला जाता है वैसी लिखी जाने’ जैसी विशेषताओं ने इसे लोकप्रिय भाषा बनाया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा, तथा देश-विदेश में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में हिंदी में किए गए संबोधन की चर्चा करते हुए सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जिस तरह हिंदी को वैश्विक मंचों पर गौरवान्वित किया है, हमारे लिए प्रेरणा की बात है। इससे न सिर्फ देश, बल्कि विदेश में रहने वाले भारतीयों को भी बहुत गर्व होता है।

राजभाषा के लिए प्रतिबद्ध रक्षा मंत्रालय
रक्षा मंत्रालय में राजभाषा के प्रयोग के बारे में रक्षा मंत्री ने कहा कि उनका मंत्रालय हिंदी के संवैधानिक प्रावधानों और सरकार की राजभाषा नीति संबंधी निर्देशों के अनुपालन के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने के लिए मंत्रालय ने कुछ अभिनव प्रयोग किए हैं, जिसके परिणाम उत्साहजनक और कारगर रहे हैं। राजनाथ सिंह ने कहा, “हमारे विभाग, व अन्य कार्यालयों और उपक्रमों में हर स्तर पर इस बात के प्रयास किए जाते हैं कि सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा मिले और इसमें काफी सफलता भी मिली है।”

महापुरुषों के सपनों को साकार करें
रक्षा मंत्री ने कहा कि हिंदी में अखिल भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधित्व की क्षमता है। स्वतंत्रता के बाद जिन-जिन महापुरुषों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा था, उनमें से अधिकांश की मातृभाषा हिंदी नहीं थी।उन्होंने कहा, “सन 1918 में महात्मा गांधी ने इंदौर में, हिंदी साहित्य समिति की नींव रखते समय इसे राष्ट्रभाषा के रूप में चिह्नित किया था। केशवचंद्र सेन से लेकर स्वामी दयानंद सरस्वती, काका कालेलकर, बंकिमचंद्र और ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे महापुरुषों ने भी हिंदी का प्रबल समर्थन किया था। ऐसे में हमारा कर्तव्य बनता है, कि हम हिंदी को बढ़ावा देकर उन महापुरुषों के सपनों को साकार करें।”

अपनी भाषा को महत्व दें, पर अन्य के प्रति दुराग्रह न रखें
अंग्रेजी सहित समस्त भारतीय भाषाओं के प्रति आत्मीयता का भाव रखने पर ज़ोर देते हुए, राजनाथ सिंह ने कहा, “हम अपनी भाषा को महत्ता दें, पर किसी दूसरी भाषा के प्रति कतई दुराग्रह न रखें। भाषा के संदर्भ में तमाम शोध बताते हैं कि हमें जितनी भाषाएँ मालूम होंगी, हमारा मष्तिष्क उतना ही सक्रिय रहता है। इसलिए भी हमें बाकी भाषाओँ को सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए।” सार्थक अनुवाद के महत्व का वर्णन करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि हिंदी को बढ़ाने के लिए अनुवाद ऐसा नहीं होना चाहिए, जो अर्थ का अनर्थ कर दे। उन्होंने कहा, “अनुवाद में अंग्रेजी अथवा हमारी समृद्ध भारतीय भाषाओं के शब्दों को अपनाने का ही प्रयास करना चाहिए। इसका सुझाव तो हमारा संविधान भी देता है।”

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.