वीर सावरकर के विचार शाश्वत, कालातीत हैं! प्रवीण दीक्षित ने सावरकर युग को किया याद

केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहूरकर और सह-लेखक चिरायु पंडित द्वारा लिखित पुस्तक 'वीर सावरकर: द मैन हु कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन' गोवा में हिंदू जनजागृति समिति की ओर से प्रकाशित हुई।

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केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहूरकर ने अपनी पुस्तक में वीर सावरकर की आजादी से पहले और आजादी के बाद की अवधि के बारे में विस्तार से वर्णन किया है। सवाल यह है कि आज वीर सावरकर के विचारों पर आधारित पुस्तक की आवश्यकता क्यों है? इसका उत्तर है क्योंकि वीर सावरकर के विचार अमर हैं। वीर सावरकर ने 1895 से 1950 तक व्यापक रूप से अपने विचार व्यक्त किए हैं। उनके वे विचार आज भी जीवंत लगते हैं और वर्तमान स्थिति के अनुकूल हैं। महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के अध्यक्ष प्रवीण दीक्षित ने यह विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वीर सावरकर के विचार कालातीत हैं।

केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहूरकर और सह-लेखक चिरायु पंडित द्वारा लिखित पुस्तक ‘वीर सावरकर: द मैन हु कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन’ गोवा में हिंदू जनजागृति समिति की ओर से प्रकाशित हुई। इस अवसर पर केन्द्रीय सूचना आयुक्त उदय माहूरकर, हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे एवं सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता चेतन राजहंस उपस्थित थे। स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के अध्यक्ष प्रवीण दीक्षित इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

इतिहास को अक्षुण्ण रखने के लिए लिखीं पुस्तकें
वीर सावरकर ने बहुमूल्य किताब लिखकर लोगों को इतिहास से प्रेरणा लेने के लिए प्रवृत्त किया। क्योंकि ब्रिटिश, चीन, ग्रीस, यूरोप सभी देशों ने अपनी आजादी का इतिहास लिखा है, वे किताबें पढ़ी भी जाती हैं। इसके बावजूद उन देशों का गौरव लुप्तप्राय है। लेकिन भारत का गौरवशाली इतिहास आज भी जीवंत और प्रेरणादायक है। अंग्रेजों ने हमेशा यह बताने की कोशिश की कि ‘भारत पर कई बार आक्रमण हुए और वहां के राजा पराजित हुए’। दुर्भाग्य से कई भाड़े के इतिहासकार भी इसी बात को दोहराते रहे। इससे दुखी होकर गुस्से में वीर सावरकर लिखते हैं कि इतिहास पर लिखने का मेरा उद्देश्य देश की आजादी को विदेशी आक्रमण से पीढ़ियों तक सुरक्षित रखना है। वे लिखते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज और पेशवा ने सचमुच देश के साम्राज्य को बनाए रखा। वीर सावरकर कहते हैं कि उस समय के मुस्लिम लेखकों ने मुस्लिम बादशाहों की प्रशंसा की। दीक्षित ने यह भी कहा कि वीर सावरकर के इन विचारों को स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रम से दूर रखा गया।

हिंदुओं ने गीता के इस संदेश का अनदेखा किया
वीर सावरकर का यह भी कहना है कि हिंदुओं में व्याप्त बुराइयों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हिंदू समुदाय द्वारा लगाए गए सात प्रतिबंध हिंदू समुदाय के पैरों की सात बेड़ियां थीं। इन बेड़ियों को मुसलमानों, ईसाइयों या अंग्रेजों ने नहीं, बल्कि स्वयं हिंदुओं ने पहना था। हिंदुओं के गुण उनके लिए दोष बन गए क्योंकि उनमें विवेक नहीं था। प्रवीण दीक्षित ने कहा कि भगवत गीता में एक संदेश है, गुण सापेक्ष हैं, सत्व, रज और तमस के गुणों से मनुष्य के बीच अंतर करने की आवश्यकता है, हिंदुओं ने इस संदेश का अनदेखा कर अपना विनाश किया।

वीर सावरकर और हिंदुत्व को अलग करना असंभव! — रमेश शिंदे
वर्तमान समय में वीर सावरकर के विचारों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि वे हिंदू धर्म के विरोधी थे। वीर सावरकर के विचारों को गलत बताने वाले छह अंधे लोगों की तरह हैं। महान सावरकर, विशाल हाथी की तरह, किसी के लिए रस्सी की तरह हैं तो किसी के लिए स्तंभ। वास्तव में हिंदुत्व को वीर सावरकर से अलग नहीं किया जा सकता। हिंदू राष्ट्र की अवधारणा 1936 में वीर सावरकर द्वारा प्रस्तुत की गई थी। हिंदू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे ने कहा कि इसलिए, यदि आप वीर सावरकर के विचारों को स्वीकार करना चाहते हैं, तो आपको उनके हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र की संकल्पना को भी स्वीकार करना होगा।

स्वतंत्रता के बाद उपेक्षित रहे महान स्वतंत्रता सेनानी!
वीर सावरकर हमेशा कहा करते थे कि ‘स्वराज्य वह जगह है, जहां आपकी संपत्ति सुरक्षित है, वह संपत्ति आपके विचार, पोशाक, आपकी भाषा, आपकी शिक्षा है।’ रमेश शिंदे ने कहा कि कहा जा रहा है कि चरखा चलाकर भारत को स्वतंत्रता मिली तो गोवा, हैदराबाद मुक्ति संग्राम के दौरान चरखा क्यों नहीं चला। उस समय सैन्य कार्रवाई क्यों करनी पड़ी? गांधी को स्वदेशी आंदोलन का जनक माना जाता है। वास्तव में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत वीर सावरकर ने 1905 में की थी, लेकिन उनका उल्लेख नहीं किया जाता है।

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