Veer Savarkar: आप सूर्य को कोठरी में बंद करके नहीं रोक सकतेः शरद पोंक्षे

6 जनवरी को सुबह 9 बजे येरवडा जेल से यात्रा शुरू की गई। जेल अधीक्षक ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर की प्रतिमा स्वातंत्र्य वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष अध्यक्ष रणजीत सावरकर को सौंपी।

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Veer Savarkar: ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक मुंबई’ की ओर से 6 जनवरी को पुणे की येरवडा जेल(Yerwada Jail of Pune) से फर्ग्यूसन कॉलेज तक वीर सावरकर मुक्ति शताब्दी यात्रा निकाली गई। इस यात्रा को गणमान्य लोगों ने संबोधित किया।

आज से ठीक 100 साल पहले सावरकर को जेल से रिहा किया गया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार(British Government) ने उन्हें 13 साल तक रत्नागिरी में रखा। अंग्रेज सावरकर की देशभक्ति और उसके लिए किए जाने वाले उनके प्रयासों को रोकने में सक्षम नहीं थे। शताब्दी वर्ष पर अभिनेता शरद पोंक्षे ने कहा कि कोठरी में बंद करके सूरज की रोशनी को नहीं रोक सकता। ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक मुंबई’ की ओर से 6 जनवरी को पुणे की येरवडा जेल से फर्ग्यूसन कॉलेज तक स्वातंत्र्यवीर सावरकर मुक्ति शताब्दी यात्रा का आयोजन किया गया था। वे इस यात्रा के समापन पर बोल रहे थे।

इस अवसर पर अभिनेता रणदीप हुड्डा, अभिनेता शरद पोंक्षे, स्वातंत्र्यवीर सावरकर के पोते और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर, स्मारक की कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

क्रांतिकारी विचारों का क्रियान्वयन समय की मांग
अभिनेता शरद पोंक्षे ने कहा कि जेल से रिहा होने के बाद, सावरकर ने रत्नागिरी में अपने 13 साल के प्रवास के दौरान अस्पृश्यता और जातिवाद को मिटाने के लिए बड़े अभियान का नेतृत्व किया। इस काल में उन्होंने हिन्दू समाज की कुरीतियों को तोड़ने और उसे वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित बनाने के लिए महान कार्य किये। जिस समाज के लिए उन्होंने यह काम किया, उसने उनकी बात नहीं सुनी। यही कारण है कि आज हमारे देश की स्थिति खराब है। सावरकर के क्रांतिकारी सामाजिक विचारों का क्रियान्वयन आज की आवश्यकता है।

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ऐसी रही यात्रा
6 जनवरी को सुबह 9 बजे येरवडा जेल से यात्रा शुरू की गई। जेल अधीक्षक ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर की प्रतिमा स्वातंत्र्य वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष अध्यक्ष रणजीत सावरकर को सौंपी। उस प्रतिमा के साथ अभिनेता रणदीप हुड्डा जेल से बाहर आये। इसके बाद शंखनाद और ढोल-नगाड़ों की धुन के बीच यात्रा को रवाना किया गया। यात्रा फर्ग्यूसन कॉलेज में समाप्त हुई।

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