स्वातंत्र्यवीर सावरकर, सशस्त्र क्रांति और पराक्रम

स्वातंत्र्यवीर सावरकर का जीवन वीरता, राष्ट्रनिष्ठा और सामाजिक चेतना का द्योतक है।

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स्वातंत्र्यवीर सावरकर

क्रांति पुरोधा स्वातंत्र्यवीर सावरकर सशस्त्र क्रांति को स्वतंत्रता प्राप्ति का अंग मानते थे। उसी दिशा में कार्य भी किया। उन्होंने सदा ही सैनिकिकरण और सशस्त्र क्रांति का सम्मान किया। क्रांति के लिए वे स्वयं प्रेरणा बने, संसाधन उपलब्ध कराया। इसके लिए वीर सावरकर को ब्रिटिशों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसी ही एक घटना है ब्राउनिंग पिस्तौल और बम बनाने की तकनीकी को भारत भेजने की। स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने विदेशी क्रांतिकारियों से बम बनाने की तकनीकी सीखी थी, उसे शब्दबद्ध किया और भारत भेजा। वीर सावरकर को क्रांति प्रणेता का सम्मान भी इन्हीं पराक्रमों के बल पर दिया गया था। उनके इस पराक्रम का परिणाम था मार्सेलिस का वह पराक्रम जिसका विश्व ने लोहा माना।

क्रांतिकारियों को मिले शस्त्र
स्वातंत्र्यवीर सावरकर का विचार था कि, अंग्रेजों के साथ दो-दो हाथ करने के लिए शस्त्र होना आवश्यक है। इस सच्चाई को आत्मसात करते हुए वीर सावरकर ने विदेश से बम बनाने की तकनीकी सीख ली। उस तकनीकी और 20 ब्राऊनिंग पिस्तौल को उन्होंने भारत के क्रांतिकारियों तक पहुंचाने की योजना बनाई। इसे पुस्तक में छिपाकर चतुर्भुज अमीन के द्वारा उन्होंने भारत में भेजा। उसी में से एक पिस्तौल का उपयोग कर देश भक्त युवक अनंत कान्हेरे ने नाशिक के कलेक्टर जैक्सन को मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकरण में अनंत कान्हेरे के साथ ही कृष्णाजी कर्वे और विनायक देशपांडे को फांसी की सजा दी गई। चूंकि, ये पिस्तौल वीर सावरकर ने भेजी थी, इस कारण लंदन में उन्हें पकड़ लिया गया और ब्रिक्स्टन की जेल में डाल दिया गया। उनके सहयोगी उनसे वहीं मिलने जाते थे। (इसी कारागृह में वीर सावरकर ने हृदयस्पर्शी पत्र और “माझे मृत्यु पत्र” नामक कविता की रचना की) उनके साथी चाहते थे कि इस मामले में उन पर लंदन में ही अभियोग चलाया जाए। इस बीच उन्होंने वीर सावरकर को कारागृह से भगाने की योजना भी बनाई, लेकिन इसमें वे असफल रहे। हालांकि, वीर सावरकर की योजना कुछ और थी। उन्होंने इतना ही कहा, “हिंदुस्थान की यात्रा में मार्सेलिस बंदरगाह पर जहाज रुकेगा।”… और इसी योजना के चलते पुलिस की पहरेदारी को चुनौती देते हुए 8 जुलाई, 1910 को मार्सेलिस बंदरगाह पर वे अथाह समुद्र में कूद पड़े। वे तैरते हुए फ्रांस के किनारे पहुंचे। लेकिन उनके साथी तब तक उन्हें लेने वहां पहुंच नहीं पाए और वीर सावरकर की यह योजना असफल साबित हुई। उनका मानना था कि फ्रांस की भूमि पर अंग्रेज उन्हें स्पर्श भी नहीं कर पाएंगे लेकिन, ब्रिटिशों ने यह होने नहीं दिया और उन्हें पकड़ लिया गया।

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ब्रिटिशों का षड्यंत्र
स्वातंत्र्यवीर सावरकर का अनुमान था कि अंग्रेज उन्हें फ्रांस में गिरफ्तार नहीं कर पाएंगे। परंतु, अंग्रेजों ने फ्रांस पर दबाव डालकर अवैध रूप से गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद उस घटना को छिपाने की कोशिश भी की। जिसके बाद वीर सावरकर के साथियों ने फ्रांस की धरती पर वीर सावरकर को पकड़े जाने का मुद्दा उठाया और पूरे विश्व में इसे प्रचारित कर दिया। इसके बाद विश्व के कई समाचार पत्रों और राजनेताओं ने फ्रांस और इंग्लैंड की जमकर आलोचना की। अपनी बदनामी होते देख फ्रांस ने ब्रिटेन से वीर सावरकर की हिरासत की मांग की। ब्रिटिशों ने मात्र दुनिया को दिखाने के लिए हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाने का आदेश जारी किया। लेकिन वास्तव में अंग्रेजों को किसी भी कीमत पर वीर सावरकर को मुक्त नहीं करना था। इसीलिए उन्हें दो बार आजीवन कारावास यानी 50 साल के कालापानी की सजा सुनाई गई।

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