स्वातंत्र्यवीर सावरकर के देश में जिन्ना?

स्वातंत्र्यवीर सावरकर महान क्रांतिकारी और प्रेरणा स्थान थे। परंतु, स्वतंत्रता के अमृतकाल में भी स्वातंत्र्यवीर सावरकर के प्रति वामपंथी विचार सक्रिय हैं। यह विचार मुंबई विश्वविद्यालय में विद्यमान है, ऐसा प्रतीत हो रहा है।

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स्वातंत्र्यवीर सावरकर

करुणा शंकर

स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने जिस राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए क्रांति की, उस राष्ट्र में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात उन्हें क्या मिला यह बड़ा प्रश्न है। दिल्ली में संसद भवन (सेंट्रल विस्टा) बनकर तैयार है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 140वीं जयंती के दिन इसका लोकार्पण विपक्ष की आंखो में यह खटक रहा है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की जन्मस्थली महाराष्ट्र में परिस्थिति यह है कि, जिस मुंबई विश्वविद्यालय में स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने स्नातक की पदवी प्राप्त की, उस विश्वविद्यालय की एल्युमिनाई सूची में स्वतंत्रता के अमृत महोत्सवी वर्ष के बाद भी उनका नाम सूची में नहीं जोड़ा गया है।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के साथ सौतेले व्यवहारों की सूची बहुत लंबी है। पारतंत्रता काल में ब्रिटिशों ने उनके साथ जो अति यातनादायी व्यवहार किया, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सत्ता लोलुप कांग्रेस ने अपने तरीके से उस चलाया, वीर सावरकर को उपेक्षित रखा और षड्यंत्रों के माध्यम से राजनीति से दूर कर दिया। स्वतंत्र्यवीर सावरकर के साथ जो व्यवहार हुआ क्या वही हाल सभी क्रांतिकारियों का था? ब्रिटिशों के समक्ष पूर्ण स्वतंत्रता के लिए क्रांति छेड़नेवालों में से थे स्वातंत्र्यवीर सावरकर। इसी कारण वीर सावरकर को क्रांति प्रणेता जैसी उपाधि से भी पुकारा जाता रहा। परंतु,स्वतंत्र भारत की बागडोर कांग्रेस को ही क्यों दी गई। क्या इसका यही कारण रहा है कि, ब्रिटिशों को भारत को जिस प्रकार मजहबी आधार पर खंडित करना था, वह मात्र कांग्रेस और उसमें भी जवाहरलाल नेहरू से ही स्वीकार कराया जा सकता था। जबकि, स्वातंत्र्यवीर सावरकर मजहबी उन्माद के प्रति सदा आगाह करते रहे। उन्होंने, स्पष्ट कहा था, तुम आओगे तो तुम्हारे साथ, यदि नहीं तो तुम्हारे बिना। ऐसे प्रखर विचारों की अनदेखी करके स्वातंत्रत भारत की कमान खंडित राष्ट्र स्वीकार करने वाले नेहरू को सौंप दी गई। इसी के साथ शुरू हुआ क्रांतिकारियों की अनदेखी का षड्यंत्र। इसमें असंख्य नाम हैं, जिन्हें स्वतंत्र भारत में अनसंग हीरो कहा जाता है। लेकिन, जब बात उठी है तो यह देखना ही होगा कि, अपने समय के प्रचलित क्रांतिकारियों का क्या कांग्रेस राज में क्या हुआ?

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के विषय में जानकारियों की फाइल पैंसठ वर्षों बाद जनता के लिए खोली गईं। इसी प्रकार श्मामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां 56 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद स्वतंत्र भारत की भूमि पर लौटी। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने इंडिया हाउस की स्थापना की थी, इसी इंडिया हाउस में स्वातंत्र्यवीर सावरकर का कभी निवास था और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए क्रांति योजनाओं यहीं बनती थीं। इसके अलावा क्रांतिकारी मदनलाल धिंग्रा, जो वर्मा जी को अपना गुरु मानते थे, उनका इंडिया हाउस से संबंध था। श्यामजी कृष्ण वर्मा प्रखर क्रांतिकारियों में से थे, जिनका अवसान वर्ष 1933 में हो गया और उनकी अस्थियां जिनेवा में पड़ी थी। स्वतंत्रता का स्वप्न देखनेवाले वर्मा जी की अस्थियों को भारत भूमि तब मिली, जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी पहल की। इसी प्रकार मैडम कामा का नाम भी है, जिन्हें कभी ‘भारतीय राष्ट्रीयता की महान पुजारिन’ कहकर संबोधित किया जाता था। स्वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा निर्मित पहले राष्ट्रीय ध्वज को 22 अगस्त, 1907 में स्टुटगार्ड में संपन्न सातवें अंतरराष्ट्रीय सोशलिस्ट कार्यक्रम में मैडम कामा ने ही फहराया था। लेकिन, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात मादाम कामा को वह स्थान नहीं मिला, जिसकी वह अधिकारी थीं। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव नामक हुतात्मा क्रांतिकारियों में से राजगुरु महाराष्ट्र के पुणे से थे। उन्हें भी वह स्थान नहीं मिला जिसे एक हुतात्मा क्रांतिकारी को दिया जाना चाहिये थे। इंडियन नेशनल आर्मी के संस्थापक रासबिहारी बोस को स्वतंत्र भारत में नजर अंदाज कर दिया गया। ऐसे क्रांतिकारियों की लंबी सूची है, जो ब्रिटिशों के षड्यंत्र के शिकार हुए और स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेसी नेताओं की अनदेखी के कारण विलुप्त हो गए।

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जबकि, भारत की स्वतंत्रता में क्रांतिकारियों का अभिन्न योगदान रहा, क्रांति प्रणेता स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने अपना संपूर्ण जीवन ही अर्पित कर दिया था। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से कला संकाय में स्नातक की पदवी प्राप्त की। लेकिन, राष्ट्र के समर्पण और स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकार्य यहां भी स्वातंत्र्यवीर सावरकर की पदवी का रोड़ा बना। ब्रिटिशों ने 1911 में विशेष प्रस्ताव लाकर स्वातंत्र्यवीर सावरकर की पदवी को रद्द कर दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के 24 वर्षों पश्चात सरकार जागी तो 1960 में मुंबई विश्वविद्यालय ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर को कला स्नातक की पदवी पुन: प्रदान की। मुंबई विश्वविद्यालय से पदवी प्राप्त करनेवालों में मोहम्मद अली जिन्ना जैसे मजहबी बँटवारा करनेवाले पाकिस्तानी संस्थापक भी रहे हैं। मुंबई विश्वविद्यालय के एल्युमिनाई सूची में मोहम्मद अली जिन्ना का नाम तो है, लेकिन, स्वातंत्र्यवीर सावरकर का नाम नहीं है। इस विश्वविद्यालय के मेधावी छात्रों को स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक पुरस्कारों से सम्मानित करता है। इसके एक छात्रावास का नाम 2022 में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के नाम पर रखा गया, लेकिन एन्युमिनाई सूची में नाम न होना राष्ट्र के अवमान से कम नहीं है। हम तो यह मानते हैं कि, यदि मुंबई विश्वविद्यालय के प्रबंधन को जिन्ना से स्नेह है तो ऐसी सूची में हमारे देवतुल्य स्वातंत्र्यवीर सावरकर का नाम नहीं होनी योग्य ही है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर सिंधु नदी से सिंधु सागर तक अखंड भारत का स्वप्न देखते थे, लड़ते रहे, उनके नाम के साथ देश के विभाजनकारी और कट्टरवादी इस्लामी का नाम नहीं ही होना चाहिये, लेकिन मुंबई विश्वविद्यालय के प्रबंधन को यह अवश्य सोचना होगा कि, वे किस देश के हैं और उन

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