विरासत का सम्मान भाषा के सम्मान के बिना अधूरा है : अमित शाह

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में देश के सामने पांच प्रण रखे हैं। जिनमें से दो प्रण हैं- विरासत का सम्मान और गुलामी के चिह्नों को मिटाना है। इन दोनों प्रण के शत-प्रतिशत क्रियान्वयन के लिए सभी भारतीय भाषाओं और राजभाषा को अपनी शक्ति दिखानी होगी।

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फाइल चित्र

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारतीय भाषाओं के प्रोत्साहन से देश सशक्त होगा। मोदी सरकार भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार और बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। शाह ने शुक्रवार को नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 38वीं बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में देश के सामने पांच प्रण रखे हैं। जिनमें से दो प्रण हैं- विरासत का सम्मान और गुलामी के चिह्नों को मिटाना है। इन दोनों प्रण के शत-प्रतिशत क्रियान्वयन के लिए सभी भारतीय भाषाओं और राजभाषा को अपनी शक्ति दिखानी होगी।

उन्होंने कहा कि विरासत का सम्मान भाषा के सम्मान के बिना अधूरा है और राजभाषा की स्वीकृति तभी आएगी जब हम स्थानीय भाषाओं को सम्मान देंगे। हिन्दी की स्पर्धा स्थानीय भाषाओं से नहीं है, सभी भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने से ही राष्ट्र सशक्त होगा। बिना किसी प्रकार के विरोध के राजभाषा की स्वीकृति बनाने की आवश्यकता है।

शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने इनीशिएटिव लेकर इंजीनियरिंग और मेडिकल के पाठ्यक्रमों को 10 भाषाओं में शुरू कर दिया है और जल्द ही ये सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होंगे और वह क्षण स्थानीय भाषाओं और राजभाषा के उदय की शुरुआत का क्षण होगा। उन्होंने कहा कि राजभाषा की स्वीकृति कानून या सर्कुलर से नहीं बल्कि सद्भावना, प्रेरणा और प्रयास से आती है। गुलामी के कालखंड के बाद भी भारतीय भाषाएं और उनके शब्द कोष अक्षुण्ण रहे, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। भाषाओं ने हमारे देश को जोड़ने का काम किया है।

शाह ने कहा कि आजादी के बाद से 2014 तक संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन के 09 खंड प्रस्तुत किए गए और 2019 से अब तक तीन खंडों को अनुमोदित किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि इन खंडों को विषयवार तैयार किया गया है और इस 12वें खंड का मुख्य विषय सरलीकरण है।

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