कोई सिखाए न सिखाए, स्वतः ही सीखते हैं भारतीय : उपराष्ट्रपति

आज भारत में हर किसी को समान अवसर उपलब्ध हैं, सबको समान धरातल प्राप्त है। उन्होंने कहा कि वो दिन गए जब कुछ संभ्रांत परिवारों के संतानों को भी सफलता का सौभाग्य प्राप्त होता था। आज हर नए आइडिया को प्रोत्साहित किया जाता है

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एकदिवसीय यात्रा पर जयपुर पहुंचे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शिक्षक वृंद तथा विद्यार्थियों से संवाद करते कहा कि हम भारतीय एकलव्य हैं कोई सिखाए न सिखाए, हम हर नई विद्या को स्वत: ही सीख लेते हैं।

दुनिया के नजरिए को बदलना है
उपराष्ट्रपति ने कहा युवाओं से विचार विमर्श सदैव प्रेरणास्पद होते हैं, उज्जवल भविष्य के प्रति आशान्वित करते हैं। भारतीय युवाओं की प्रतिभा पर विश्वास जताते हुए, धनखड़ ने कहा कि भारतीय युवा प्रतिभाओं को खुद को नहीं बल्कि भारत के प्रति दुनिया के नजरिए को बदलना है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि अधिकांश युवा आईएएस, आईपीएस या सेना के अधिकारी, इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के होते हैं। आपको इससे भी अधिक वेतन वाले अवसर मिल सकते हैं लेकिन सरकारी सेवा में समाज और राष्ट्र की सेवा का संतोष मिलता है।

युवा नये आइडिया आजमाएं
उन्होंने युवा विद्यार्थियों को सलाह दी कि वे प्रतिस्पर्धा और तनाव को खुद से दूर रखें। आपका मस्तिष्क नए आइडियाज का महज भंडार बन कर न रह जाए। कोई नया आइडिया आए तो उसे लागू करें और लागू करने में असफलता से डरे नहीं। असफलता का भय समाप्त होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपकी प्रतिस्पर्धा स्वयं आपसे है, किसी और को अपनी प्रतिभा और क्षमता को मापने का अधिकार न दें।

नए आइडिया को मिल रहा प्रोत्साहन
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज भारत में हर किसी को समान अवसर उपलब्ध हैं, सबको समान धरातल प्राप्त है। उन्होंने कहा कि वो दिन गए जब कुछ संभ्रांत परिवारों के संतानों को भी सफलता का सौभाग्य प्राप्त होता था। आज हर नए आइडिया को प्रोत्साहित किया जाता है, उन्हें लागू करने के असीम अवसर उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि हमारे स्टार्ट अप और यूनिकॉर्न कंपनियां युवाओं द्वारा चलाई जा रही हैं, बल्कि नए आइडियाज और उनपर आधारित नए स्टार्ट अप स्थापित उद्योग घरानों को कड़ी प्रतिस्पर्धा दे रहे हैं।

अभिजात्यता पर जताई चिंता
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है, कानून का शिकंजे से कोई नहीं बच सकता। उन्होंने कहा कि कानून के सामने यह समानता ही कुछ अभिजात्य लोगों को रास नहीं आती। जब उन्हें कानूनी नोटिस मिलता है तो वे सड़कों पर आ जाते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग एकत्र हो कर, अपनी अभिजात्यता बचाने की आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन कानून का शिकंजा अवश्य कसेगा। उन्होंने कहा वो ऐसी राजनीति पर टिप्पणी नहीं कर रहे, बल्कि वे इसके सामाजिक परिणामों को ले कर चिंतित हैं जब विरोध के नाम पर सड़कों पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है। यह असंतोष और अराजकता सामाजिक समस्या है। उन्होंने कहा जो लोग पद ग्रहण करते समय संविधान की शपथ लेते हैं, वही लोग संवैधानिक संस्थाओं की सार्थकता, सक्षमता पर प्रश्न उठाते हैं, उनकी आलोचना करते हैं। प्रबुद्ध समाज को ऐसे लोगों को जवाब देना चाहिए।

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