Bank Fraud: नागपुर जिला बैंक घोटाले में कांग्रेस नेता सुनील केदार दोषी करार, 22 साल बाद आया फैसला

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नागपुर जिला मध्यवर्ती बैंक घोटाला मामले में आज फैसला सुनाया गया। इसमें कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री सुनील केदार दोषी पाए गए हैं।

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नागपुर जिला मध्यवर्ती बैंक घोटाला (Nagpur District Intermediate Bank Scam) में पूर्व मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस विधायक सुनील केदार (Sunil Kedar) को बड़ा झटका लगा है। जिला और सत्र न्यायालय (District and Sessions Court) ने 154 करोड़ के घोटाले (Scams) में केदार को मुख्य आरोपी (Accused) करार दिया है। इसके साथ ही पांच अन्य लोग भी दोषी साबित हुए हैं। तीन अन्य को कोर्ट ने साक्ष्य के आधार पर बरी कर दिया है।

गौरतलब हो कि 2002 में बैंक में 152 करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला सामने आया था। उस समय सुनील केदार बैंक के चेयरमैन थे। वह इस मामले में मुख्य आरोपी भी थे। मुंबई, कोलकाता और अहमदाबाद की कुछ कंपनियों ने बैंक फंड से 152 करोड़ रुपये के सरकारी बॉन्ड खरीदे थे। इसके बाद इन कंपनियों ने सरकारी बॉन्ड का भुगतान नहीं किया और बैंक को पैसा भी नहीं लौटाया। राज्य आपराधिक जांच विभाग के तत्कालीन उपाधीक्षक किशोर बेले इस घोटाले के जांच अधिकारी थे। जांच पूरी होने के बाद 22 नवंबर 2002 को अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया। यह मामला तब से लंबित था।

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2002 में हुआ था घोटाला
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नागपुर जिला मध्यवर्ती बैंक घोटाला मामले में आज फैसला सुनाया गया। इसमें कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री सुनील केदार दोषी पाए गए हैं। 2002 में नागपुर डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक में 150 करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला उजागर हुआ था। तब केदार बैंक के चेयरमैन थे। वह इस मामले में मुख्य आरोपी भी हैं। बाद में निजी कंपनी के दिवालिया हो जाने से बैंक में किसानों का पैसा भी डूब गया। केदार और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

क्या है पूरा मामला?
2001-2002 में, नागपुर डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक ने निजी कंपनियों होम ट्रेड लिमिटेड, इंद्रमणि मर्चेंट्स प्राइवेट लिमिटेड, सेंचुरी डीलर्स प्राइवेट लिमिटेड, सिंडिकेट मैनेजमेंट सर्विसेज और गिल्टेज मैनेजमेंट सर्विसेज की मदद से बैंक के फंड से सरकारी बांड (शेयर) खरीदे। हालांकि, बाद में बैंक को इन कंपनियों से खरीदी गई नकदी कभी नहीं मिली। आश्चर्य की बात यह है कि बांड खरीदने वाली ये निजी कंपनियाँ दिवालिया हो गईं।

आरोप है कि इन कंपनियों ने कभी भी बैंक को सरकारी नकदी नहीं दी और न ही बैंक को पैसा लौटाया। फिर आपराधिक मामला दर्ज किया गया और मामले की आगे की जांच सीआईडी को सौंपी गई। जांच पूरी करने के बाद सीआईडी ने 22 नवंबर 2002 को अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया। तब से यह मामला विभिन्न कारणों से लंबित था।

कोर्ट ने इन लोगों को दोषी पाया

  • सुनील केदार, (तत्कालीन बैंक अध्यक्ष)
  • अशोक चौधरी (तत्कालीन बैंक प्रबंधक)
  • केतन सेठ (मुख्य बैंड रिकॉर्ड्स)
  • सुदबू गुंडारे
  • नंदकिशोर शिक्षक
  • अमोल वर्मा

इन लोगों को बरी कर दिया गया

  • श्रीप्रकाश पोद्दार
  • सुरेश पेशकार
  • महेंद्र अग्रवाल

देखें यह वीडियो- 

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