…और मतदान में जीत गई भांग!

मस्ती के लिए मद से बचकर नशा करनेवाले भांग आदि का सेवन करते हैं। इसे मादकता के कारण यूएन कमीशन ऑन नार्कोटिक ड्रग्स (सीएनडी) में 1961 के सिंगल कन्वेंशन के शेड्यूल IV में अति-नशीले ड्रग्स की श्रेणी में रखा गया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रस्ताव को मान्यता देने के लिए इसे सदस्य देशों के समक्ष प्रस्तुत किया।

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भारत के खेत-खलिहानों में घास के रूप में उपजनेवाली भांग को अब विश्व में नई पहचान मिल गई है। देश में इसे नशे के लिए कुछ लोग पीसकर पीते या खाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध ये वनस्पती अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में दवा के रूप में पहचानी जाएगी। भांग को नए वर्ग में वर्गीकृत करने के लिए एक मतदान भी हुआ जिसमें विरोध करनेवाले देशों की अपेक्षा इसके समर्थक अधिक निकले और भांग जीत गई।

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मस्ती के लिए मद से बचकर नशा करनेवाले भांग आदि का सेवन करते हैं। इसे मादकता के कारण यूएन कमीशन ऑन नार्कोटिक ड्रग्स (सीएनडी) में 1961 के सिंगल कन्वेंशन के शेड्यूल IV में अति-नशीले ड्रग्स की श्रेणी में रखा गया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रस्ताव को मान्यता देने के लिए इसे सदस्य देशों के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसमें 27 देशों ने भांग को दवाई की श्रेणी में वर्गीकृत करने के लि

ए मंजूरी दे दी जबकि, 25 देशों ने इसका विरोध किया।

भांग के पकौड़े, भांग की ठंडाई, भांग के पेड़े, भांग की बर्फी… ये मेन्यू कार्ड नहीं बल्कि ये वो रूप है जो भारतीय लोगों में प्रसिद्ध है। भांग में केन्नाबिनॉयड नामक तत्व पाया जाता है। इसका लगातार उपयोग व्यक्ति को इसका आदी बना देता है। इसीलिए इसे औषधि उपयोग के लिए वर्गीकृत किया गया है लेकिन सामान्य उपयोग के लिए ये अभी भी प्रतिबंधित है।

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भांग के अवगुण

  • दीर्घकालीन सेवन आदी बना देता है
  • सोचने की क्षमता पर दुष्प्रभाव
  • आती है शारीरिक कमजोरी
  • बढ़ाता है नपुंसकता
  • गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक
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