मुंबई विरार की ऐसी ट्रेन यात्रा, जिसमें महिला गैंग का है साम्राज्य! जानिये आपबीती

मुंबई की लाइफ लाइन कही जानेवाली लोकल ट्रेन कैसे लाइफ थ्रेटनिंग हो जाती है, इसकी एक आपबीती यहां प्रस्तुत है।

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ट्रेन यात्रा के उस एक घंटे में महिला ही बन जाती हैं महिलाओं की शत्रु… जी हां, मायानगरी की आपाधापी में घर-परिवार के साथ करियर को भी संवारने का दबाव महिलाओं पर होता है। सुबह कार्यालय पहुंचने की जल्दी और शाम को घर लौटने की, इसके लिए हम महिलाएं क्या नहीं झेलतीं। इसमें सबसे दुखदायी है कार्यालय से घर पहुंचने के लिए मुंबई से विरार की ट्रेन यात्रा, जहां महिला डिब्बे में महिलाएं ही दूसरी महिलाएं की शत्रु बन जाती हैं। मुंबई से विरार के बीच की इस ट्रेन यात्रा में महिलाओं की गैंग का बोलबाला रहता है।

ऐसी यात्रा, जहां महिलाएं हो जाती हैं महिलाओं की शत्रु और महिलाएं हो जाती हैं महिलाओं से असुरक्षित। मैं बात कर रही हूं मुंबई मायानगरी की। जहां महिलाएं हो या पुरूष यहां सभी के लिए सबसे दुखदायी है कार्यालय से घर पहुंचने के लिए मुंबई से विरार की ट्रेन में यात्रा करना।

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ट्रेन का सफर
मैं, मुंबई से विरार के बीच प्रतिदिन यात्रा करती हूं। रेलवे की मेल ट्रेन का पास है, वैतरना से चर्चगेट। जिस ट्रेन से मैं सफर करती हूं, वह ट्रेन संख्या 59023 है। इस यात्रा का अनुभव मुझ जैसी शांत महिला के लिए संघर्ष है, क्योंकि, महिला डिब्बे में बोलबाला उन्हीं का होता है, जो समूह (गैंग) में होती हैं और लड़ने में सक्षम होती हैं। बैठने की वरीयता उन्हीं को मिलती है, जिसका गिरोह होता है। हम जैसी को तो खड़े होने की जगह मिलने मात्र से ही संतुष्ट हो जाना पड़ता है। क्योंकि हमारे पास और कोई विकल्प भी नहीं होता है। एक दिन मैं कार्यालय से घर के लिए दादर से वलसाड जाने वाली ट्रेन में चढ़ी, इसमें महिलाओं के लिए सामान्य डिब्बा लगा होता है। तब मुझे यह पता नहीं था कि, इन डिब्बों में भी महिलाओं का गुट होता है। मुझे एक खाली सीट दिखी और मैं उस पर बैठ गई। कुछ देर ही हुआ था, एक महिला मेरे पास आकर बोली यह मेरी सीट है मैं रोज यहां बैठती हूं। मैंने कहा पर मैं भी रोज इसी ट्रेन से सफर करती हूं और मेरा भी इस ट्रेन का पास है। उस महिला ने कहा कि, तुम्हें तो मैंने पहली बार देखा है और उस महिला ने मुझे बहुत परेशान किया और समूहों में बैठी सारी महिलाओं ने बारी-बारी से मेरा पास देखा फिर जिस सीट पर मैं बैठी थी उस सीट से मुझे परेशान करके उठा कर वह महिला खुद बैठ गई और उस दिन मैंने खड़े-खड़े ही सफर किया। दूसरे दिन की बात है जब बोरिवली से बहुत सारी महिलाएं चढ़ीं उनके बीच सीट को लेकर कुछ अन-बन हो गई और धीरे -धीरे बात इतनी बढ़ गई कि मामला गंभीर हो गया। मैंने देखा कि एक महिला ने दूसरी महिला के कपड़े फाड़ दिए। फिर किसी महिला ने पूलिस को कॉल लगाया और शिकायत की। उसके बाद मेरा स्टेशन आया और मैं उतर गई। दूसरे दिन मुझे उन्हीं महिलाओं से सुनने में आया की मार-पीट तक बात आ गई थी।

कैसा होता है मुंबई के ट्रेन का अनुभव?
अब तो ये हर दिन की कहानी है, प्रतिदिन मुझे अलग प्रकार के दृश्य देखने को मिलते हैं। जैसे मेरी यह प्रतिदिन दिनचर्या में शामिल हो गई हो। मेरे तीसरे दिन का अनुभव यह रहा कि जो विरार की लड़की और महिलाएं होती हैं उन्हें वलसाड, डहाणू और पालघर से आनेवाली महिलाएं बैठने नहीं देती हैं। मुझे यह जानने की उत्सुकता थी कि, आखिर ऐसा क्यों है? मैंने कुछ महिलाओं से जानने की कोशिश भी की। एक महिला ने बताया कि आप यदि कभी-कभी सफर करती हैं तो वो आपको बैठने को देंगी पर, यदि आप रोजाना सफर करती हैं तो कभी सीट की उम्मीद न करें। उनका समूह आपको बैठने नहीं देगा। मैं रोज शाम ऑफिस के बाद उसी ट्रेन से जाती थी। हर शाम बैठने को लेकर भिन्न-भिन्न प्रकार के दृश्य देखने को मिलते थे। कभी मुझे हंसी भी आती थी और कभी मैं उन लड़ाई के दृश्यों को देखकर डर भी जाती थी। पर उसी ट्रेन से जाना मुझे हर दिन होता था। उन महिलाओं को देखकर मैं सोच में पड़ जाती थी कि क्या इनमें सच में थोड़ी बहुत भी इंसानियत है या नहीं, सीट के लिए ये महिलाएं नीचे के स्तर तक आ जाती हैं।

ट्रेन में अबतक का सफर
इस ट्रेन में अब तक के सफर में मैंने खुद को इन झगड़ों से बहुत अलग रखा है। मुझे सीट मिलती तो मैं खुश हो जाती और ना मिले तो मैं उस माहौल के अनुकूल खुद को बना लेती थी। अब मैंने मान लिया था कि मुंबई की ट्रेन में सीट मिलना भी एक लक जैसा है और इसे स्वीकार कर लेना ही मेरी सबसे बड़ी समझदारी होगी। जब मुझे सीट नहीं मिलती तो मैं कानों मे हेड फोन लगाकर अपने पसंद के गाने सुनते हुए सफर करती थी। और गानें सुनने की वजह से अपने रोज के इस सफर को एंजॉय करने लगी। मुझे पता नहीं चलता और मैं अपने विरार स्टेशन पहुंच जाती। ऐसा रहा मेरा ट्रेन में अब तक का सफर।

शिकायत नहीं करती
इस यात्रा में गलत व्यवहार की शिकार हुई महिलाओं से मैंने प्रयत्न किया कि, शिकायत करें परंतु, कोई आगे आने को तैयार नहीं है। सबका कहना है, जैसे लोकल ट्रेन के महिला डिब्बे में पुलिस तैनात होते हैं, वैसे ही यहां हो जाए तो महिला गिरोह पर लगाम लग जाएगा, लेकिन इस मांग को प्रशासन तक पहुंचाने के लिए कोई साथ देने को तैयार नहीं है। जिसके बाद मैंने इस व्यथा को इस पटल पर रखने का निर्णय किया और आशान्वित हूं, रेलवे प्रशासन तक यह बात अवश्य पहुंचेगी।

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