झूठी एफआईआर होने पर क्या करें?

भारतीय न्याय प्रक्रिया में सर्वोच्च न्यायालय न्याय प्राप्ति का अंतिम पड़ाव है, परंतु वही संविधान उच्च न्यायालय को एक ऐसा अधिकार देता है जो सर्वोच्च न्यायालय के पास भी नहीं है। वह है कि उच्च न्यायालय झूठी या अन्याय संगत एफआईआर को रद्द करने का आदेश दे सकता है।

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भारतीय न्याय व्यवस्था में किसी घटना की पहली सूचना का पंजीकरण प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के रूप में किया जाता है। इसे भारतीय दंड प्रक्रिया (आईपीसी) की धारा 154 के अधीन पंजीकृत किया जाता है। परंतु, कई बार व्यवस्था में चूक और प्रशासनिक दिक्कतों के कारण झूठा प्रकरण पंजीकृत हो जाता है। ऐसी स्थिति में क्या करें कि, अपना बचाव हो सके? यह अत्यंत आवश्यक है।

तथ्यहीन या षड्यंत्र के अंतर्गत किसी व्यक्ति पर यदि कोई एफआईआर पंजीकृत होती है तो, यह उस व्यक्ति के लिए बड़ी दिक्कत देनेवाली होती है। ऐसे समय पर क्या करें और ऐसे एफआईआर को रद्द कराने के लिए क्या करना चाहिए यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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एफआईआर रद्द कराने के कानूनी अधिकार

आईपीसी 1973 के अंतर्गत उच्च न्यायालय को धारा 482 के अंतर्गत वह अधिकार प्राप्त है, जिसमें वह किसी भी झूठे या तथ्यहीन एफआईआर को रद्द कर सकता है। इसके साथ ही उच्च न्यायालय किसी भी मुकदमे को रद्द कर सकता है।

ये हो सकते हैं रद्द करने के लिए आधार

पीड़ित व्यक्ति को आईपीसी की धारा 482 के अंतर्गत एक याचिका उच्च न्यायालय में देनी पड़ती है। जहां निन्मलिखित बातें साबित करनी होती हैं…

तथ्यहीन आरोप
किसी एफआईआर के पंजीकृत करने के लिए जो आधार हैं, यदि वे तथ्यहीन हैं और उसकी तथ्यहीनता के प्रमाण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं तो, उच्च न्यायालय उस एफआईआर को रद्द करने का आदेश दे सकता है।

झूठा प्रकरण
ऐसे प्रकरण जिसके पंजीकरण में पीड़ित यह प्रमाण प्रस्तुत करने में सफल हो कि, संबंधित एफआईआर पुलिस और आरोपकर्ता की मिलीभगत या झूठे तथ्यों पर आधारित है तो उच्च न्यायालय ऐसे प्रकरण को रद्द करने का आदेश दे सकता है।

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