इंसानों की सुरक्षा और पशु अधिकारों की बहस के बीच एक अनसुलझी समस्या ‘कुत्तों का आतंक’

कुत्तों से पीड़ित लोगों का समूह जब भी कभी इस तरह की घटनाओं के विरुद्ध आवाज उठाता है, तो एक अन्य पक्ष भी सामने आ जाता है । वह पक्ष है पशु प्रेमियो का । पशु प्रेमी कुत्तों के अधिकारों की आवाज बुलंद करने लगते हैं। जबकि पीड़ित लोग इंसानों की सुरक्षा की बात करते हैं।

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कुत्तों से हो रहे आकस्मिक हादसे (sudden accidents) पूरे देश में देखे-सुने जा रहे हैं। इसमें ज्यादातर मामले आवारा कुत्तों के कारण बनते हैं। पिछले दिनों वाघ बकरी टी ग्रुप (Wagh Bakri Tea Group) के कार्यकारी निदेशक पराग देसाई (Parag Desai) की मौत हो गई। बताया गया कि वे एक रोज मॉर्निंग वॉक के समय आवारा कुत्तों के हमलों से बचने के प्रयास करते गिर गये थे, जिससे उनके सिर में गंभीर चोट आ गई थी। यह मामला देश के अधिकांश मीडिया माध्यमों में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ। वाघ बकरी ग्रुप के पराग देसाई देश के एक नामचीन उद्योगपति थे, जिससे यह मामला सभी का ध्यान खींचा। लेकिन आज सच्चाई यही है कि महानगरों से लेकर गांव तक कुत्तों के आतंक से आम नागरिक डरा हुआ सा है।

स्कूल – कोचिंग जाते लगा रहता है भय
आवारा कुत्तों (stray dogs) के आतंक का आलम यह है कि चाहे शहर हो गांव हर जगह लोगों को घरों से बाहर निकलने में एक अनजाना सा भय बना रहता है। बच्चों के स्कूल या कोचिंग जाने-आने के दौरान परिजनों में आवारा कुत्तों का भय बना रहता है। बहुत से अभिभावक तो स्कूल या कोचिंग सेंटर बिल्कुल पास होने की स्थिति में भी बच्चों को अकेला नहीं छोड़ पाते । क्योंकि वे रास्ते में आवारा कुत्तों की चहलकदमी देख चुके रहते हैं। ऐसे में असहायता का एक पहलू यह भी है कि अपार्टमेंट सिस्टम में रहने वाले परिवारों के पास सुरक्षा के संसाधन भी नहीं रहते और महानगरीय जीवन शैली में स्टीक लेकर चलना सहज भी नहीं हो सकता। गांवों में तो स्थिति और भी चिंताजनक है। वहां तो सबकुछ व्यक्तिगत सुरक्षा के उपाय या भगवान भरोसे का हाल है।

नाइट शिफ्ट या अर्ली मॉर्निंग वालों को खतरा
महानगरों में बहुत से लोग नाइट शिफ्ट और अर्ली मॉर्निंग शिफ्ट में काम करते हैं। ऐसे में आफिस के लिए स्टेशन जाते या देर रात घर लौटते वक्त सुनसान सड़कों पर आवारा कुत्तों का डर लगातार बना रहता है। कुत्तों के हमलों से राहगीर ही नहीं वाहन चालक भी भयाक्रांत दिखते हैं और कई बार दुर्घटना के शिकार भी हो जाते हैं। रास्ते में आते-जाते दो पहिया वाहनों के पीछे कुत्ते भौंकते हुए इस तरह से दौड़ते हैं कि वाहन चालक असंतुलित हो जाते हैं । कुत्तों से पीड़ित लोगों का समूह जब भी कभी इस तरह की घटनाओं के विरुद्ध आवाज उठाता है, तो एक अन्य पक्ष भी सामने आ जाता है । वह पक्ष है पशु प्रेमियो का । पशु प्रेमी कुत्तों के अधिकारों की आवाज बुलंद करने लगते हैं। जबकि पीड़ित लोग इंसानों की सुरक्षा की बात करते हैं।

गाजियाबाद में पिछले दिनों 24 घंटे में 183 लोगों को कुत्ते काटने की खबरें आईं। इसी अवधि में अस्पतालों में 386 लोग वैक्सीन की डोज लेने आए। घायलों में 22 बुजुर्ग और 19 बच्चों का समावेश था। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के सभी भागों से जब तब कुत्तों के आतंक की खबरें आ ही जाती हैं ।

क्‍या कहता है कानून ?
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा-38 के तहत आवारा कुत्तों को संरक्षित किया गया है। साथ ही पशु जन्म नियंत्रण (डॉग्‍स) नियम, 2001 के अनुसार, कुत्तों को उनके क्षेत्र से स्थानांतरित भी नहीं जा सकता। किसी भी तरह के आवारा जानवरों के साथ बुरे व्यवहार को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा-428 और 429 अपराध ठहराती है।
वहीं दिल्ली हाई कोर्ट ने 2021 के एक आदेश में जानवरों को कानून सम्मत व्यवहार का अधिकारी बताते हुए अबोल जीवों की सुरक्षा को सरकारी और गैर सरकारी संगठनों की नैतिक जिम्मेदारी बताया।

एंटीरेबीज वैक्सीनेशन की समस्या
पालतू और आवारा कुत्तों में लोगों को ज्यादा खतरे की आशंका आवार कुत्तों से ही रहती है। क्योंकि पालतू कुत्तों के संदर्भ में एंटीरेबीज वैक्सीनेशन को अनिर्वाय किया गया है। इसका उल्लंघन करने पर दंड स्वरूप जुर्माने का प्रावधान है। इससे पालतू कुत्तों से खतरा उतना ज्यादा नहीं होता। लेकिन आवारा कुत्तों की जिम्मेदारी किसी निश्चित व्यक्ति की नहीं होती। ऐसे में उसके एंटीरेबीज वैक्सीनेशन को लेकर एक समस्या बनी रहती है। साथ ही उस पर नजर रखने वाला भी कोई नहीं होता।

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