…और ऐड अनसोशल हो गया

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सोशल मीडिया का प्रभुत्व दिनों-दिन तेजी से पैर पसार रहा है। इस पर चंद घंटों में ही इनती प्रतिक्रियाएं मिल जाती हैं कि अपने पैर पर खड़ा होने के पहले ही कई मुद्दे धराशायी हो जाते हैं। ऐसा ही एक विज्ञापन के साथ भी हुआ जिसमें अंतर जातीय विवाह के दृश्य पर सोशल मीडिया में इतना विरोध हुआ कि कुछ घंटों में ही ऐड अनसोशल बना दिया गया।

नए रिश्तों की कहानी लिखनेवाले तनिष्क के विज्ञापन की डोर कमजोर निकली। इसे कमजोर करनेवाले सोशल मीडिया के उपयोगर्ताओं ने इसे अन-सोशल करार दे दिया। विज्ञापन था तो गहनों को बेचने के लिए लेकिन ये नए रिस्तों को जोड़ नहीं पाया और पुराना रिश्ता इसके दबाव में भुला दिया गया।

हम बात कर रहे हैं टाटा की, वही टाटा जिन्होंने कोविड-19 के डर से जब सब घरों में दुबके थे, संक्रमित अस्पतालों में सांस लेने के लिए भी जिंदगी से जंग लड़ रहे थे उस समय रतन टाटा ने पीएम केयर्स फंड में 15 सौ करोड़ रुपए का योगदान दिया था। इसके अलावा इस संस्था ने महाराष्ट्र के सीएम रिलीफ फंड में भी आर्थिक योगदान किया। इसके बाद जनता में रतन टाटा और उनका संस्थान टाटा सन्स हीरो बनकर उभरा। लेकिन उन्हीं के समूह की एक कंपनी ने 6 महीने बाद जब एक विज्ञापन जारी किया तो सोशल मीडिया के मंच ने उसे ऐसा अनसोशल बता दिया कि लोगों ने अपने दिलों से टाटा की सारी नेकी को ही टाटा कर दिया।
बता दें कि, टाटा ट्रस्ट परोपकारी कार्यों के लिए सबसे बड़ा ट्रस्ट है। जो पिछले 150 वर्षों से देश में औद्योगिक विकास की राह देश भक्ति और परोपकार की प्रतिबध्दताओं के साथ तय करता रहा है।

इन पर भी चला था हेट का हंटर
* सोशल मीडिया मंच पर हेट का हंटर चलना कोई नया नहीं हैं। हालिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस मंच से डिस्लाइक का स्वाद चखना पड़ा था।
अगस्त में प्रधानमंत्री मोदी के मन की बात पर लाइक्स से ज्यादा डिस्लाइक्स मिले। जानकारी के अनुसार बीजेपी के चैनलों में सबसे अधिक ‘भाजपा’ के चैनल पर 33 लाख सब्सक्राइबर हैं। इससे पोस्ट किये गए वीडियो को सबसे अधिक डिसलाइक मिले थे। इसी अनुसार ‘पीएमओ’ चैनल पर वीडियो को 26,000 लाइक्स और 47,000 डिसलाइक्स मिले थे। ‘पीआईबी’ पर इसे 3600 लाइक्स और 9400 डिसलाइक्स मिले हैं और वहीं, भाजपा पर इसे 36,000 लाइक्स और 3,08,000 डिसलाइक्स मिले।

* अगस्त 2020 में बेंगलुरू में कांग्रेसी विधायक के संबंधी द्वारा पोस्ट किये गए एक संदेश से एक विशेष समाज के लोगों ने उग्र रूप धारण कर लिया और काफी बवाल हुआ।

* नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में दिसंबर 2019 में सोशल मीडिया के मंच से बड़ा विरोध उठा था। इन विरोधों में सामाजिक सौहार्द को ठेस पहुंचाने वाले पोस्ट का जमकर प्रसार किया गया था। हालांकि, राज्य सरकारों ने ऐसे बहुत से पोस्ट के प्रेषककर्ताओं पर कार्रवाई भी की थी। अकेले यूपी में ही कराब 16 हजार से अधिक पोस्ट पर कार्रवाई की गई। जिसमें फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर समेत अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म शामिल हैं।

* 11 अगस्त 2012 को मुंबई के आजाद मैदान में भड़की हिंसा में सोशल मीडिया से भेजे गए संदेश ने बड़ा रोल अदा किया था। इस घटना में पुलिस कर्मी, सरकारी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया गया था। इस सिलसिले में 62 लोग गिरफ्तार किये गए थे।

इसके अलावा सैकड़ो ऐसी घटनाएं हैं जो सोशल मीडिया प्लेटफार्म से भेजे गए संदेशों के कारण भड़कीं जिसके कारण अब सुरक्षा एजेंसियों को सोशल मीडिया की साइट्स पर पैनी नजर रखनी पड़ रही है।

आबादी की पहुंच में अपना मोबाइल
सोशल मीडिया की पहुंच तक अब जनसंख्या का बड़ा हिस्सा है। एक अनुमान के अनुसार भारत की 125 करोड़ की जनसंख्या में से लगभग 70 करोड़ लोगों के पास फोन हैं, इनमें से 25 करोड़ लोग स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं। 15.5 करोड़ लोग हर महीने फेसबुक से जुड़ते हैं और 16 करोड़ लोग हर महीने व्हाट्सऐप पर सक्रिय रहते हैं।
इन परिस्थितियों में सोशल मीडिया पर प्रेषित संदेशों की लोगों तक पहुंच का दायरा बहुत बड़ा है। एक संदेश या वीडियो कुछ ही घंटे में देश-विदेश तक पहुंच जाता है। इसका कई बार बड़ा लाभ मिलता है जैसे हाल ही में नोएडा के गरीब भोजन विक्रेता बाबा को सोशल मीडिया ने ऐसी प्रसिद्धी दी कि उनके भोजन का चटखारा लगानेवालों की कतारें लगने लगीं। जबकि इससे हानि की भी घटनाएं बड़ीं हैं। जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी के मन की बात को डिस्लाइक करनेवाले अधिकांश पाकिस्तानी लिंक के निकले। वहीं देश के साथ 150 वर्षों से जुड़े रहनेवाले टाटा के एक ब्रान्ड के छोटे से विज्ञापन ने सभी नेक कार्यों को बट्टा लगा दिया।

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