अक्षय तृतीया: विभिन्न प्रांतों से आए श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई श्रद्धा की डुबकी, की ये कामना!

मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया तिथि को ही सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था, द्वापर युग का अंत हुआ था और अक्षय तृतीया को ही कलयुग का प्रारंभ हुआ था।

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अक्षय तृतीया के अवसर पर देश के विभिन्न प्रांतों से आए श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी घाट पर गंगा में श्रद्धा की डुबकी लगा भरत मंदिर में विराजमान भगवान विष्णु के दर्शन कर 108 परिक्रमा की।

3 मई को अक्षय तृतीया के अवसर पर देश के विभिन्न प्रांतों से आए श्रद्धालुओं ने जहां गंगा में आस्था की डुबकी लगाकर गरीबों में दान पुण्य किया, वही भरत मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की 108 परिक्रमा कर सुख शांति की कामना की ।

 यह है मान्यता
ऐसी मान्यता है कि भरत मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की 108 परिक्रमा किए जाने पर वही पुण्य प्राप्त होता है, जो भगवान बद्री विशाल के दर्शन करने से मिलता है। इसलिए मान्यता है कि भगवान बद्री विशाल की यात्रा प्रारंभ करने से पहले श्रद्धालु ऋषिकेश में भरत मंदिर की 108 परिक्रमा करते हैं। भगवान गिरी आश्रम के पीठाधीश्वर बाबा भूपेंद्र गिरी का कहना था कि सनातन धर्म में वैशाख मास का काफी महत्व है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। इस दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। यह पर्व शोभन, मातंग और लक्ष्मी योग में मनाया जा रहा है। इस पर्व पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग होना विशेष शुभ रहेगा।

अक्षय तृतीया को ही हुआ था कलयुग का प्रारंभ
मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया तिथि को ही सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था, द्वापर युग का अंत हुआ था और अक्षय तृतीया को ही कलयुग का प्रारंभ हुआ था। इस लिए इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया का पर्व बेहद शुभ और सौभाग्यशाली माना जाता है।इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का बहुत महत्व है। भरत मंदिर में मंगलवार की सुबह 4:00 बजे से परिक्रमा करने के उपरांत नगर के धार्मिक संस्थाओं द्वारा प्रसाद वितरण किया गया।

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