जलवायु सम्मेलन 2021ः पीएम की इन घोषणाओं के बाद ग्लासगो में बजा भारत का डंका

पीएम मोदी ने अगली पीढ़ी को जागरूक करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में जलवायु परिवर्तनकी नीतियों को शामिल करने की आवश्यकता जताई।

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भारत 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करेगा, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र सीओपी -26 विश्व जलवायु सम्मेलन में यह बात कही। मोदी ने विश्व भर के नेताओं को आश्वासन देते हुए कहा, “भारत अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाएगा और 2030 तक अक्षय ऊर्जा के माध्यम से अपनी जरूरतों का 50 प्रतिशत पूरा करेगा।”

जलवायु परिवर्तन की नीतियों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकताःपीएम
पीएम मोदी ने अगली पीढ़ी को जागरूक करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में जलवायु परिवर्तन नीतियों को शामिल करने की आवश्यकता भी व्यक्त की। प्रधानमंत्री ने 1 नवंबर को सीओपी -26 सम्मेलन में भाग लेने वाले विश्व भर के नेताओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा, “हमें बदलाव को विकास नीतियों और योजनाओं का अहम हिस्सा बनाना है। भारत में नल का पानी, स्वच्छ भारत मिशन और उज्ज्वला योजनाओं ने न केवल नागरिकों को लाभान्वित किया है, बल्कि उनके जीवन स्तर को भी ऊंचा किया है।”

विकासशील देशों को मदद करने का बाइडेन का आश्वासन
पीएम ने जोर देकर कहा कि जलवायु परिवर्तन के संकट का समाधान न केवल संकट के समाधान के तौर पर बल्कि इसके कारण होने वाले परिणाम पर भी होना चाहिए। मोदी से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का भाषण था। उन्होंने विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करने में मदद करने का संकल्प लिया। सम्मेलन का उद्घाटन ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन ने किया। उन्होंने पृथ्वी की वर्तमान स्थिति की तुलना जेम्स बॉन्ड की कहानी से की। उन्होंने कहा कि उनकी हालत जेम्स बॉन्ड जैसी ही थी, जो बम को तब डिफ्यूज करने की कोशिश करता है, जब धरती विनाश के कगार पर होती है।

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 ब्रिटेन ने बढ़ाया मदद का हाथ
फिलहाल यूके भारत में सभी हरित परियोजनाओं के लिए विश्व बैंक से अतिरिक्त 7550 मिलियन ‘हरित गारंटी’ प्रदान करेगा। इसकी घोषणा कॉप-26 सम्मेलन में की गई। ब्रिटेन की हरित गारंटी से भारत की स्वच्छ ऊर्जा, परिवहन और शहरी विकास के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा मिलेगा। ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि स्वच्छ प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में प्रगति की गति अविश्वसनीय है, लेकिन कोई भी देश हमारे ग्रह को बचाने की दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहिए।

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