मिलिंद नार्वेकर: विधायकी या विपश्यना!

मातोश्री का अर्थ मिलिंद नार्वेकर और नार्वेकर मतलब मातोश्री यही समीकरण पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है। वे उद्धव ठाकरे के 'ब्लू आइ व्बॉय' कहे जाते हैं। जिसके कारण ठाकरे के करीब जाने के लिए नार्वेकर से समीकरण जोड़ना आवश्यक माना जाता है।

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मिलिंद नार्वेकर… महाराष्ट्र का वो चेहरा जो शिवसेना पक्ष प्रमुख का नाम आते ही आंखों के समक्ष आ जाता है। मिलिंद कई वर्षों से उद्धव ठाकरे के स्वीय सहायक रहे और देखते ही देखते शिवसेना के सचिव बन गए। अब चर्चा है कि मिलिंद नार्वेकर राज्यपाल नियुक्त विधायक बन सकते हैं। इसको लेकर शिवसेना के अंदरखाने में खुशियां भी पल्लवित हो रही हैं कि यदि नार्वेकर विधायक बनते हैं तो ये उनके लिए किसी विपश्यना में जाने से कम नहीं होगा। जबकि उन नेताओं के लिए स्वर्णिम अवसर होगा जिन्हें आज तक चाय तो मिली नहीं थी लेकिन प्याली ने जला जरूर दिया था।

‘मातोश्री’ में महत्व घटा
मातोश्री का अर्थ मिलिंद नार्वेकर और नार्वेकर मतलब मातोश्री यही समीकरण पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है। वे उद्धव ठाकरे के ‘ब्लू आइ व्बॉय’ कहे जाते हैं। जिसके कारण ठाकरे के करीब जाने के लिए नार्वेकर से समीकरण जोड़ना आवश्यक माना जाता है। मातोश्री के सूत्रों के अनुसार उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी यही ट्रेंड जारी रहा। लेकिन अब चित्र बदल रहा है। नार्वेकर का कद मातोश्री में कम होने की चर्चा रंगने लगी है। नेताओं में इसको लेकर कानाफूसी हो रही है। कुछ नेताओं का मानना है कि विधान परिषद में मिलिंद नार्वेकर को भेजकर उन्हें एक तरह से मातोश्री से दूर करने की कोशिश है।

अनिल-अरविंद इन, नार्वेकर आउट
मातोश्री में मिलिंद नार्वेकर का रुतबा कम होने के पीछे दो बड़े कारण सामने आए हैं। शिवसेना के कुछ कद्दावर पदाधिकारियों के अनुसार मातोश्री में जब से परिवहन मंत्री अनिल परब और सांसद अरविंद सावंत की एंट्री हुई है तभी से नार्वेकर की मातोश्री से दूरियां बढ़नी शुरू हो गई हैं। इस बात को शिवसेना के नेता भी मानते हैं लेकिन मुंह खोले कौन? एक शीर्ष नेता ने हिंदुस्थान पोस्ट से अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हाल के दिनों में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, अनिल परब और अरविंद सावंत की सलाह अधिक लेते हैं। संजय राऊत के बाद इस कार्य को मजबूती से यही दोनों नेता कर रहे हैं यह देखने में भी आ रहा है।

मंत्री, विधायकों ने कसी नार्वेकर की नकेल
मिलिंद नार्वेकर को नकेल लगने का जो सबसे बड़ा कारण बना वो है फोन न उठाना। उनके बारे में ये शिकायत महाविकास आघाड़ी के मंत्रियों से लेकर विधायकों ने भी की है। कई मंत्रियों ने तो कैबिनेट की बैठक में ही उद्धव ठाकरे से यह कह दिया कि आप व्यस्त रहते हैं ये हमें पता है लेकिन आपके सचिव को तो फोन उठाना चाहिए। वे भी न तो फोन उठाते हैं और न ही बाद में फोन का उत्तर देते हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे हैं। उन्होंने पुणे में एक दौरे के बीच मुख्यमंत्री को फोन किया लेकिन फोन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। अंत में राजेश टोपे ने मिलिंद नार्वेकर को फोन लगाया लेकिन उन्होंने भी दो बार फोन नहीं उठाया तीसरी बार कॉल करने पर उठाया तो राजेश टोपे ने मुख्यमंत्री से बात करवाने को कहा जिस पर उन्होंने कहा कि हां, जोड़ता हूं लेकिन राजेश टोपे इंतजार ही करते रह गए वो फोन जुड़ा ही नहीं।

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पहले भी लग चुके हैं आरोप
उद्धव ठाकरे से मिलने न देने का आरोप मिलिंद नार्वेकर पर नया नहीं है। शिवसेना के पूर्व नेता व पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ते समय ये आरोप किया था कि मिलिंद नार्वेकर ने मेरी मुलाकात उद्धव ठाकरे से नहीं होने दी। उन्होंने तो ये भी आरोप लगाया था कि मिलिंद की संलिप्तता आर्थिक कदाचार में है। इतना ही नहीं तो मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने तो मिलिंद नार्वेकर को ही लक्ष्यित करके कहा था कि मेरे विट्ठल को पंडों की चंडाल चौकड़ी ने घेर रखा है। इसके आलावा पूर्व सांसद मोहन रावले ने भी मिलिंद नार्वेकर पर टिप्पणी करते हुए खुलासा किया था कि मिलिंद नार्वेकर ने मेरी और उद्धव ठाकरे की भेंट चार साल तक नहीं होने दी।

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मातोश्री गए थे शाखा प्रमुख बनने
मातोश्री में मिलिंद नार्वेकर का प्रवेश बहुत ही रोचक रहा है। नार्वेकर मूलरूप से शिवसैनिक रहे हैं। मालाड के लिबर्टी गार्डन में गट प्रमुख के रूप में उन्होंने काम शुरू किया था। 1992 के चुनावों के पहले शाखा प्रमुख के पद के लिए मिलिंद मातोश्री गए थे। बस, उस दिन के बाद मिलिंद मातोश्री के ही होकर रह गए। वे उद्धव ठाकरे के स्वीय सहायक बने और अब शिवसेना के सचिव हैं। उनका दबदबा ऐसा जमा कि कभी शाखा प्रमुख का पद मांगने गए मिलिंद से शिवसेना में पदाधिकारी की नियुक्ति से लेकर मंत्री बनने के लिए शिवसैनिक पैरवी लगवाते हैं। ऐसी स्थिति में मिलिंद नार्वेकर यदि विधायक नियुक्त होते हैं और मातोश्री में उनकी मौजूदगी कम होती है तो मिलिंद के लिए ये किसी विपश्यना से कम नहीं होगी।

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