Prime Minister ने किया संत रामभद्राचार्य की पुस्तकों का विमोचन, भारतीय संस्कृति को लेकर कही ये बात

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 अक्टूबर को कहा कि मेरा सौभाग्य है कि आज पूरे दिन मुझे अलग-अलग मंदिरों में प्रभु श्रीराम के दर्शन का अवसर मिला और संतों का आशीर्वाद भी मिला। विशेषकर संत रामभद्राचार्य जी का स्नेह जो मुझे मिलता है, वह अभिभूत कर देता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया में इन हजारों वर्षों में कितनी ही भाषाएं आईं और चली गईं। नई भाषाओं ने पुरानी भाषाओं की जगह ले ली, लेकिन हमारी संस्कृति आज भी उतनी ही अक्षुण्ण और अटल है।

प्रधानमंत्री शुक्रवार को चित्रकूट प्रवास के दौरान तुलसी पीठ सेवा न्यास में आयोजित सभा को संबोधित कर रहे थे। वे यहां दिवंगत अरविंद भाई मफतलाल के शताब्दी वर्ष समारोह में शामिल होने के लिए आए थे। समारोह के बाद प्रधानमंत्री तुलसी पीठ सेवा न्यास पहुंचे थे। यहां उन्होंने तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य महाराज से भी मुलाकात की। उन्होंने जगद्गुरु रामानंदाचार्य का आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर उन्होंने कांच मंदिर में दर्शन एवं पूजन कर रामभद्राचार्य की प्रशंसा की। उन्होंने संस्कृत के महत्व का भी उल्लेख किया। उन्होंने इस अवसर पर राम मंदिर के साथ ही चित्रकूट के विकास का भी उल्लेख किया।

भारत की संस्कृति की जड़ें उखाड़ने का कई बार किया गया प्रयास
प्रधानमंत्री ने कहा कि गुलामी के एक हजार साल के कालखंड में भारत को तरह-तरह से जड़ों से उखाड़ने के कई प्रयास हुए। हम आजाद हुए, लेकिन जिनके मन से गुलामी की मानसिकता नहीं गई, वे संस्कृत के प्रति बैर भाव पालते रहे। उन्होंने कहा, ‘कोई दूसरे देश की मातृभाषा जाने तो ये लोग प्रशंसा करेंगे, लेकिन संस्कृत भाषा जानने को ये पिछड़ेपन की निशानी मानते हैं। इस मानसिकता के लोग पिछले एक हजार साल से हारते आ रहे हैं और आगे भी कामयाब नहीं होंगे। संस्कृत परंपरा नहीं, हमारी प्रगति और पहचान की भाषा है। संस्कृत समय के साथ परिष्कृत तो हुई लेकिन प्रदूषित नहीं हुई।

स्वामी रामभद्राचार्य की देशवासियों का सपना पूरा करने में बड़ी भूमिका
उन्होंने कहा कि हर देशवासी का बहुत बड़ा सपना पूरा करने में स्वामी रामभद्राचार्य जी की बहुत बड़ी भूमिका रही है। अदालत से लेकर अदालत के बाहर तक जिस राम मंदिर के निर्माण के लिए स्वामी जी ने इतना योगदान दिया, वह भी जल्द तैयार होने जा रहा है। इस मौके पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रधानमंत्री से रामचरित मानस को राष्ट्र ग्रंथ घोषित करने की मांग की। इससे पहले प्रधानमंत्री जगद्गुरु का हाथ पकड़कर मंच तक ले गए। रामभद्राचार्य ने मोदी को सीने से लगा लिया। प्रधानमंत्री ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य की तीन पुस्तकों- पाणिनि अष्टाध्यायी, श्रीकृष्ण की राष्ट्रलीला और श्री रामानंदाचार्य चरितम् का विमोचन किया।

तीन पुस्तकों का विमोचन
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने बताया कि पाणिनि अष्टाध्यायी 900 पृष्ठ की है। इसका मूल आकार केवल 25 पृष्ठ का है। कृष्ण की रासलीला तो सारा संसार जानता है। भगवान की राष्ट्रलीला कितनी बड़ी है, इस पर मैंने पुस्तक लिखी है। तीसरी पुस्तक श्री रामानंदाचार्य चरितम् संस्कृत में महाकाव्य है। इससे पहले प्रधानमंत्री स्व. अरविंद भाई मफतलाल के शताब्दी वर्ष समारोह में शामिल हुए। यहां उन्होंने चित्रकूट को अलौकिक बताते हुए कहा कि यहां प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण नित्य निवास करते हैं। स्व. अरविंद भाई मफतलाल के नाम पर डाक टिकट जारी करते हुए बोले, ”मुझे खुशी है कि अरविंद भाई का परिवार उनकी परमार्थिक पूंजी को लगातार समृद्ध कर रहा है। मैं इसके लिए उनके परिवार के सभी सदस्यों को बधाई देता हूं।”

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प्रधानमंत्री ने किया विद्यार्थियों से संवाद
प्रधानमंत्री चित्रकूट में श्रीराम संस्कृत महाविद्यालय भी पहुंचे। यहां उन्होंने श्रीराम संस्कृत महाविद्यालय में कक्षाओं के निरीक्षण के दौरान विद्यार्थियों से संवाद किया और वेद पाठ भी सुना। उन्होंने सद्गुरु नेत्र चिकित्सालय जानकीकुंड भी देखा। सद्गुरु संघ सेवा ट्रस्ट की प्रदर्शनी और सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का उद्घाटन किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यपाल मंगू भाई पटेल भी उनके साथ रहे। मुख्यमंत्री चौहान ने स्व. मफतलाल के शताब्दी वर्ष समारोह में कहा कि जो देश के मन में है, वही मप्र के मन में भी है। प्रधानमंत्री के अंदर पीड़ित मानवता की सेवा की तड़प के दर्शन कोविड काल में हम सब ने किए हैं।

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