नीतीश से क्यों दरका मतदाताओं का दिल ?

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बिहार चुनाव के एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं कि इस बार लालू के लाल तेजस्वी यादव का जादू चलेगा। लगता है, सुशासन बाबू के नाम से मशहूर 15 साल तक राज करनेवाले नीतीश कुमार से बिहार के मतदाताओं का दिल दरक गया है। सवाल यह है कि बिहार को बिजली, पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं देनेवाले सीएम नीतीश कुमार से आखिर मतदाता क्यों नाराज हो गए। पिछले एक महीने में तेजस्वी ने ऐसा क्या चमत्कार कर दिया कि मतदाता उनके वादों और इरादों पर ज्यादा फिदा हो गए?

कई बार आपा खो बैठे सुशासन बाबू
नीतीश कुमार को शायद इस बात का अहसास है कि इस बार का चुनाव उनके लिए आसान नहीं है। चुनाव प्रचार के दौरान उनके संबोधन, झुंझलाहट, थकान और संबोधन से इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। सारन की एक रैली में वह एक जनसभा को संबोधित करते समय आपा खो बैठे। सभा के दौरान कुछ लोग लालू जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। इससे गुस्साए नीतीश कुमार ने कहा, ‘वोट नहीं देना हो तो मत देना, लेकिन यहां से चले जाओ।’ नीतीश कुमार ने सासाराम की जनसभा के दौरान माना कि यह चुनाव पहले के चुनाव से अलग है।

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वोट देने की भावुक अपील पड़ी भारी
वोट देने की भावुक अपील, ‘यह मेरा अंतिम चुनाव है और अंक भला तो सब भला’, कर वे जहां विरोधियों को मौका दे बैठे, वहीं खुद को थका हुआ, निराश और सेवामुक्त होने की इच्छा रखनेवाले नेता की छवि जनता के सामने उजागर कर दी।

एंटी इंकंबेंसी और थकान
15 सालों से नीतीश कुमार ने बिहार को मूलभूत चीजें दी हैं- सड़क, पानी और बिजली। अब अगले कार्यकाल में वह खेतों तक पानी पहुंचाना चाहते हैं। क्या लोंगों को रोजगार देने में उन्हें अभी और 50 साल लगेंगे। साफ है कि उनके कार्यकाल में कई काम हुए लेकिन अब बिहार में रोजगार, उद्योग शुरू करने और पलायन रोकने को लेकर कदम उठाने की जरुरत है। कोरोना काल में काफी मजदूर लौट आए हैं और वे चाहते हैं कि बिहार में उनके लिए रोजगार के साधन उपलब्ध हों लेकिन नीतीश कुमार इस बारे में कुछ नही बोलते। उल्टा उन्होंने यह ऐलान कर लोगों को और निराश कर दिया कि बिहार में उद्योग-धंधे नहीं लग सकते। उन्होंने इस बारे में बोलते हुए कहा था कि वे कई बार कोशिश कर चुके हैं। बिहार में नये उद्योग-धंधे लगना संभव नहीं है।

17 लाख स्कील मैपिंग प्रवासी
बिहार सरकार के पास 17 लाख प्रवासियों की स्किल मैपिंग हैं और  सरकार ने उन्हें रोजगार देने का वादा भी किया है, लेकिन जो मुख्यमंत्री इस हद तक निराशा की बात कर सकता है, उससे जनता को क्या उम्मीद हो सकती है।

एलजेपी फैक्टर
शुरू में ऐसा लगा था कि एनडीए का गठबंधन सामने आएगा, लेकिन बाद में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार की आलोचना शुरू कर दी और वह गठबंधन से बाहर हो गए। बिहार में बवाल होता रहा लेकिन बीजेपी काफी दिनों तक मौन साधे रही। इस वजह से मतदाताओं में गलत संदेश गया और इससे जेडीयू के साथ बीजेपी को भी काफी नुकसान हुआ और कई सीटों पर समीकरण बदल गए।

तेजस्वी की बढ़ती लोकप्रियता
तेजस्वी यादव की लोकप्रियता पिछले एक महीने में तेजी से बढ़ी है। इसके कई कारण हैं। वे जहां युवा हैं, वहीं उन्होंने 10 लाख लोगों को नौकरी देने का वादा कर युवाओं को उम्मीद के सपने दिखाकर आकर्षित करने में सफल हुए हैं। उन्होंने अपने किसी भी चुनाव प्रचार में निराशा की बात नहीं की। नीतीश कुमार पर थकने का आरोप लगाते हुए उनके कार्यकाल की आलोचना भले ही की लेकिन उन्होंने बिहारियों को सपने को हमेशा जिंदा रखा और उन्हें पूरा करने के वादे का साथ इरादा भी दिखाया।

मतदाताओं ने किया माफ
आरजेडी के चुनावी बैनर पोस्टर पर से उन्होंने अपने पिता लालू यादव और माता व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की तस्वीरें हटाकर लोगों को एक नये आरजेडी के दर्शन कराए। मतदाताओं ने यह मानकर भी तेजस्वी को शायद माफ कर दिया कि पिता की सजा पुत्र को नहीं दिया जाना चाहिए।

संजय राऊत ने की तारीफ
तेजस्वी यादव की कर्मठता और जुझारुपन को देखते हुए शिवसेना सांसद संजय राऊत ने उनकी प्रशंसा की। उन्होंने तेजस्वी को होनहार नेता और मुख्यमंत्री का प्रबल दावेदार बताया। जबकि सुशांत सिंह राजपूत केस में नीतीश कुमार के हस्तक्षेप से राऊत उनसे पहले से ही नाराज हैं और जब भी मौका मिलता है, वे उनकी आलोचना करने से नहीं चूकते हैं।

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