‘मगज’ खराब कर सकता है कोरोना!

रिसर्चरों को कोरोना संक्रमित कई मरीजों के दिमाग में गंभीर समस्याएं देखने को मिली हैं। इसके अंतर्गत दिमाग में सूजन, मनोविकृति और बेहोशी में बड़बड़ाने का आदि हो जाना सम्मिलित है। शोधकर्ताओं के अनुसार कोरोना संक्रमित मरीज का दिमाग काम करना बंद कर सकता है, दिमाग की नसों को क्षति पहुंच सकता है।

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कोरोना संक्रमण से ग्रसित होना पूरे परिवार के लिए शारीरिक त्रास से अधिक मानसिक आघात होता है। इसका पता चलते ही परिवार में और कौन-कौन संक्रमित हुआ है इसके लिए दौड़ धूप मच जाती है। इसकी पूरी जानकारी मिलने के बाद संक्रमित का इलाज शुरू होता है। कोरोना के इलाज की इस प्रक्रिया में जटिलताएं भी बहुत सारी हैं। डॉक्टरों के समक्ष नए संक्रमितों में नए लक्षण भी मिलते हैं। इसमें मस्तिष्क (मगज) पर पड़नेवाला प्रभाव सबसे बुरा होता है। इसके अलावा को-मॉर्बिडिटीज अपने आप में खतरे की घंटी है।

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संलग्न रोग बढ़ाते हैं खतरा

को-मॉर्बिटीज यानी पहले से ही संलग्न रोग जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, थायरॉइड, हृदय रोग आदि… ये मरीज का खतरा और डॉक्टर की परेशानी बढ़ा देते हैं। इसके साथ ही कोरोना वायरस के परिवर्तनशील संक्रमण से स्थिति बिगड़ जाती है। कोरोना वायरस का अध्ययन अब भी वैज्ञानिक कर रहे हैं। इसको लेकर एक नई दिक्कत के लक्षण वैज्ञानिकों को मिले हैं। इसके अनुसार यह वायरस मस्तिष्क पर बुरा परिणाम डाल सकता है। जिसके कारण ऐसी परेशानी खड़ी हो सकती है जिसका इलाज हो सकता है संभव ही न हो।

रिसर्चरों को कोरोना संक्रमित कई मरीजों के दिमाग में गंभीर समस्याएं देखने को मिली हैं। इसके अंतर्गत दिमाग में सूजन, मनोविकृति और बेहोशी में बड़बड़ाने का आदि हो जाना सम्मिलित है। शोधकर्ताओं के अनुसार कोरोना संक्रमित मरीज का दिमाग काम करना बंद कर सकता है, दिमाग की नसों को क्षति पहुंच सकता है।

इस बारे में लंदन के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजी के डॉक्टर कहते हैं, कोरोना वायरस के चलते बड़े पैमाने पर लोगों के मस्तिष्क का नुकसान हो सकता है। ये स्थिति वैसी ही हो सकती है जैसी वर्ष 1918 में देखने को मिली थी। इस काल में स्पेनिश फ्लू के हमले बाद 1920 से 1930 के दशक में मस्तिष्क ज्वर ‘इंसेफेलाइटिस’ का प्रकोप देखने को मिला था।

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विशेषज्ञों के अनुसार दिमागी परेशानियों की वजह संक्रमण के कारण इंसानी शरीर में होने वाली ऑक्सीजन की कमी है। वहीं, कुछ मानते हैं कि यह वायरस सीधे मस्तिष्क में प्रवेश कर जाता है। ऐसी स्थिति में यह मस्तिष्क की तंत्रिकाओं पर हमला करता है। इस स्थिति में यह फेफड़ों और सांस लेने की प्रणाली में संक्रमण से ज्यादा घातक हो सकता है।

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