मराठा आरक्षण: अब केंद्र सरकार पहुंची सर्वोच्च न्यायालय, जानें क्या है मामला?

मराठा समाज आरक्षण की मांग लंबे काल से कर रहा था। इसके अनुरूप भाजपा और शिवसेना की युति सरकार ने आरक्षण प्रदान किया था। लेकिन इस निर्णय की कानूनी वैधता को न्यायालय में चुनौती दी गई थी। जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार का निर्णय रद्द कर दिया।

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मराठा आरक्षण के विषय में केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर की है। केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मराठा आरक्षण के विषय में संविधान के 102वें संशोधन को लेकर जो निर्णय 5 मई को सुनाया उस पर यह याचिका दायर की है।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 342 ए के अंतर्गत 102वें संशोधन के लिए केंद्र सरकार को ही यह अधिकार है कि वह सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) लोगों की पहचान करे और उन्हें अनुच्छेद 342ए(1) के अंतर्गत सूचीबद्ध करे। इस सूची में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) लोगों का समावेश करे।

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ये है आदेश
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य अपनी न्यायिक व्यवस्थाओं के द्वारा राष्ट्रपति को या अनुच्छेद सूची में शामिल करने, सूची से बाहर करने या जाति और समुदाय में बदलाव करने के अंतर्गत होगा, जिसको अनुच्छेद 342(1) के अंतर्गत प्रकाशित किया गया है।

अनुच्छेद 342ए
अनुच्छेद 342ए को संविधान में 102वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया था। जो यह कहता है..
1) राष्ट्रपति किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संदर्भ में राज्यपाल की सलाह से सार्वजनिक सूचना के द्वारा निर्दिष्ट करें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों का इस, इस संविधान के अंतर्गत सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग का माना जाए उन राज्य या केंद्र शासित प्रदेशों के संदर्भ में
2) संसद कानून के द्वारा केंद्रीय सूची में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग जो क्लॉज (1) के अंतर्गत जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट हैं उन्हें सम्मिलित या बाहर कर सकती है।

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