दाभोलकर-पानसरे हत्या: थढ़ानी की किताब ने मीडिया नैरेटिव की खोली पोल, सामने आईं जांच की कई कमियां

दाभोलकर मर्डर के बाद कई हिंदू एक्टिविस्ट हिरासत में लिए गये और कइयों के फोन रिकॉर्ड खंगाले गये। लेकिन अंततः जांच टीम को कहना पड़ा कि हमें इस मामले में हिंदू संगठनों का कोई हाथ नहीं मिला।

774

हिंदू संगठनों को लेकर चलाए जा रहे एक खास नैरेटिव का पर्दाफाश करने के लिए अमित थढ़ानी ने एक पुस्तक लिखी है, जिसका नाम है ‘दाभोलकर-पानसरे हत्याः तपासातील रहस्ये?’ हिंदुस्थान पोस्ट के सलाहकार मयूर पारिख से इस पुस्तक पर चर्चा करते हुए अमित थढ़ानी ने बताया कि लोगों को यह बताना जरुरी है कि मामला क्या है? मीडिया में क्या बताया गया? और कोर्ट में क्या कहा गया? क्योंकि मीडिया और कोर्ट दोनों जगहों पर तथ्य से परे बातें कहीं गईं हैं।

दाभोलकर मर्डर केस में 2013 में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया। साथ ही कोर्ट में फोरेंसिक जांच के बाद एक हथियार भी पेश किया गया, जिनके बारें में कहा कि इसी से गोली चलाई गई। लेकिन एक डेढ़ माह बाद ही दोनों को छोड़ दिया गया। सीबीआई ने कहा कि इन लोगों के खिलाफ हमारे पास कोई सबूत नहीं है।

सबसे बड़ा सवाल
वर्ष 2016 में एक और चार्जशीट फाइल हुई, जिसमें जांच एजेंसी की ओर से काफी पेचीदा स्टोरी गढ़ी गई, जिसमें कहा गया कि दो हथियारों में से एक का उपयोग दाभोलकर, पानसरे और कलबुर्गी की हत्या में किया गया। अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि दाभोलकर मर्डर के बाद ही जो हथियार सीबीआई की कस्टडी में थे, वही हथियार फिर अगले मर्डर के लिए किसी के हाथ कैसे लग गये?

एक और कहानी
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए अमित थढ़ानी ने बताया कि वर्ष 2018 की तीसरी चार्जशीट में दो नये आरोपी बनाये गये। उन पर आरोप लगा कि उन्होंने हथियारों के टुकड़े-टुकड़े करके पानी में फेंक दिए। फिर काफी शोर शराबे के साथ मीडिया के सामने आठ करोड़ रुपये खर्च करके बरामद हथियार पेश किये गये। लेकिन वो हथियार तो पूरे मुकम्मल थे। जबकि सीबीआई की चार्जशीट में हथियार को टुकड़े-टुकड़े कर पानी में फेंकने की बात कही गयी थी। ऐसे में यह स्वाभाविक सवाल उठता है कि पानी में हथियार एसेंबल कैसे हो गया। बाद में फोरेंसिक जांच में वह मैच नहीं हुआ।

टार्गेट के अनुसार जांच का डायरेक्शन भी तय
इन हत्याओं के बाद मीडिया सहित राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाओं का मंतव्य बताते हुए थढ़ानी ने कहा कि सच्चाई जानने की कोशिश किए बगैर ही चारों हत्याओं को विचारधारा की हत्या के रूप में प्रचारित किया जाने लगा। फिर टार्गेट के अनुसार ही पूरी जांच का डायरेक्शन भी तय कर दिया गया।

हिंदू संगठनों का हाथ नहीं
दाभोलकर मर्डर के बाद कई हिंदू एक्टिविस्ट हिरासत में लिए गये और कइयों के फोन रिकॉर्ड खंगाले गये। लेकिन अंततः जांच टीम को कहना पड़ा कि हमें इस मामले में हिंदू संगठनों का कोई हाथ नहीं मिला। एक और पहलू देखिए कि एक ही विटनेस के आधार पर पुणे पुलिस और सीबीआई टीम की ओर से तैयार आरोपियों के स्केच बिल्कुल अलग-अलग लोगों के हैं।

चारों हत्याएं आपस में रिलेटेड नहीं
मयूर परिख ने जब थढ़ानी से उनकी पुस्तक का निष्कर्ष पूछा तो अमित थढ़ानी ने कहा कि ये चारों हत्याएं आपस में रिलेटेड नहीं है, जैसा कि अब तक प्रचारित किया जाता रहा है। पानसरे कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे। कलबुर्गी का क्षेत्र लिंगायत लिटरेचर था। उन्होंने इस पर काफी कुछ लिखा था। इसके लिए कलबुर्गी को काफी धमकियां भी मिल चुकी थीं। उनको लिंगायतों के खिलाफ ही पुलिस प्रोटेक्शन मिली थी। कलबुर्गी की हत्या से कुछ दिनों पहले ही उनकी पुलिस सुरक्षा हटी थी। ऐसे में पहला शक किस तरफ जानी चाहिए? लेकिन कर्नाटक में रहकर कौन-सी सियासी पार्टी लिंगायतों की तरफ जांच मोड़ेगी।

UP के 70 आदिवासी मजदूरों को कर्नाटक में बनाया गया बंधक? पढ़िये पूरा प्रकरण

गौरी लंकेश के नक्सलियों से करीबी संबंध
गौरी लंकेश नक्सल रिपोर्टिंग से जुड़ी थीं। नक्सलियों से उनके काफी नजदीकी संबंध थे। यही कारण था कि सिद्धारमैया सरकार ने नक्सलियों के समर्पण के लिए गौरी लंकेश से संपर्क किया था। गौरतलब बात यह है कि जिस दिन गौरी लंकेश की हत्या हुई, उसी दिन उनका ट्वीट आया कि हम कामरेडों को आपस में नहीं लड़ना चाहिए। हमें शांति के साथ अपने शत्रुओं पर ध्यान देना चाहिए। फिर उसी दिन शाम को गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई। इस तरह यह बिल्कुल साफ है कि दाभोलकर, पानसरे, गौरी लंकेश और कलबुर्गी की हत्या अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग कारणों से की है।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.